उच्च पदों के लिए उत्तरदायी घटकः
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■ लग्न / लग्नेश बली होने चाहिए ।
■ कुण्डली में शक्तिशाली राजयोग होने चाहिए । केन्द्रों के स्वामियों और त्रिकोण के स्वामियों के मध्य राशि परिवर्तन या युति , शक्तिशाली राजयोग बनाती है ।
■ नवमेश एवं दशमेश , चतुर्थेश एवं पंचमेश चतुर्थेश एवं नवमेश , पंचमेश एवं दशमेश , लग्नेश एवं नवमेश या दशमेश , दशमेश एवं षष्टेश , दशम भाव में पष्टेश , पष्टेश षष्टम में , नवमेश नवम या दशम में , ये सम्बन्ध अच्छे होते हैं ।
■ षष्टम भाव / षष्टेश महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि यह नवम से दशम है और दशम भाव से नवम है । सामान्यतः पदोन्नति , दशमेश एवं नवमेश की दशा में होती है लेकिन कभी - कभी षष्टेश की भुक्ति दशा में भी होती है । दशमेश चाहे अष्टम भाव में ही क्यों न स्थित हो , सदैव जीवनवृत्ति को आगे बढ़ाता है ।
■ चाहे योग कारक ग्रह दुष्ट भावों में ही स्थित हो लेकिन शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो तो इसकी दशा / अन्तर्दशा
■ जब षष्टम भाव का नवम एवं दशम भाव से सम्बन्ध होता है तो यष्टेश / षष्टम भाव से युति , स्थिति या दृष्टि द्वारा सम्बन्ध बनाने वाले ग्रह।
■ शुभ ग्रहों से दृष्ट , तृतीय और एकादश भाव में स्थित अशुभ ग्रहों की दशा / अन्तर्दशा में पदोन्नति होती है ।
■ बुध , दशम भाव का कारक है । यदि षष्टम या दशम से सम्बन्धित होता है तो पदोन्नति का कारण बनता है ।
पदोन्नन्ति का समय निर्धारण ब नौकरी की प्राप्ति
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दोहरा गोचरः
यदि कुण्डली में राजयोग हों और अनुकूल दशा / अन्तर्दशा भी चल रही हो तो गोचर के दोहरे प्रभाव का आंकलन करना चाहिए । यह दोहरा गोचर , शनि और बृहस्पति का निम्नलिखित अनुकूल गोचर है ।
A】बृहस्पतिः ★ गोचर में बृहस्पति को चन्द्रमा या लग्न से दशम भाव को दृष्ट करना चाहिए । लग्न या चन्द्रमा से त्रिकोण में बृहस्पति का गोचर भी अनुकूल स्थिति है लेकिन लग्न या चन्द्रमा से दशम भाव पर बृहस्पति के गोचर अथवा दृष्टि को अधिक महत्व देना चाहिए ।
B】शनिः★ जिस समय कुछ विशेष होने का विश्लेषण करना हो उस समय शनि को दशमेश को दृष्ट करना चाहिए । इसको घटना की पूर्णता के लिए एक आवश्यक घटक के रुप में लेना चाहिए
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