विष्णु_राहु_केतु:::::पुराण कथा अनुसार भगवान विष्णु ने सूर्य चंद्र के इशारे पर राहु पर सुदर्शन चक्र का वार कर उनके शरीर को दो भागों मे विभक्त किया.विष्णु कथा का तात्पर्य ज्योतिष शास्त्र से है.(1)भगवान विष्णु का ऐक नाम 'ज्योतिष'है.ज्योतिषी विष्णु स्वरूप हि है.(2) सूर्य याने पित्रु_पिता कि कृपा से हमे शरीर प्राप्त होता है.(3)चंद्र याने माता कि कृपा से हमारा शरीर बंधारण प्राप्त करता है.(4)राहु सिर्फ मस्तिष्क को इँगित करता है अर्थात मन का प्रतिनिधित्व करता है (5)केतु सिर्फ धड़ को_यानी सिर्फ शरीर यानी जन्मकुंडली के लग्न का प्रतिनिधित्व करता है.(6)सुदर्शन याने ठीक से देखना(7)महर्षि पराशर आदीने लग्न ऐवम चन्द्र कुन्डली दोनो को देखने का सूचन किया है.(8)जन्मलग्न कुन्डली से शरीर कि अवस्था_जन्मचन्द्र कुन्डली से मन कि अवस्था देखी जाती है.(9)हरेक विष्णु स्वरूप ज्योतिषी को लग्न कुन्डली का निरीक्षण करते समय सूर्य-लग्न-लग्नेष-केतु को ध्यान मे लेना चाहीये.(10) चन्द्र कुन्डली के निरीक्षण वक्त चन्द्र-चंद्रेश-राहु को ध्यान मे लेना चाहिये(11)मे ऊन दिव्यद्रष्टा भगवन वेद व्यास जी को आदरपूर्वक नमस्कार करता हूँ जिन्होंने ज्योतिषशास्त्र के गूढ़ रहस्य को कथा मे पिरोया ।
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