ईशान मुखी भवन / भूखण्ड का वास्तु
जिस भवन के सामने / मुख्य द्वार के सामने ईशान दिशा ( उत्तर पूर्व दिशा ) की ओर मार्ग होता है ऐसे भवन को ईशान मुखी भवन कहा जाता है। इस तरह के भवन के शुभ अशुभ के परिणाम का प्रभाव सीधे गृह स्वामी एवं उसकी संतान पर पड़ता है। वास्तु शास्त्र में ईशान दिशा को बहुत ही शुभ लेकिन संवेदनशील माना जाता है । हमारे प्राचीन वास्तुशास्त्रियों ने ईशान मुख के भवन / भूखण्ड की तुलना कुबेर देव की नगरी अलकापुरी से की है । अगर इस तरह का भवन वास्तु की अनुरूप हो तो यह धन, यश, वंश, धर्म, सद्बुद्धि आदि की वृद्धि अर्थात सभी प्रकार से शुभ फलों को प्रदान करने वाला होता है । लेकिन ध्यान रहे कि जहाँ इस दिशा के भवन बहुत ही लाभदायक होते है वहीँ इस दिशा के भवन में वास्तु दोष का सबसे अधिक कुप्रभाव भी पड़ता है जिससे भवन में रहने वाले व्यक्तियों की उन्नति बिलकुल रुक सी जाती है। ईशान मुखी भवन में निवास करने वाले अगर यहाँ पर बताये गए वास्तु के नियमों का पालन करेंगे तो उन्हें निश्चय ही सदैव शुभ फलों की प्राप्ति होती रहेगी ।
ईशान मुखी भवन का मुख्य द्वार सदैव ईशान, पूर्वी ईशान अथवा उत्तर दिशा की ओर ही रहना चाहिए ।
ईशान मुखी भवन में सामने की ओर रिक्त स्थान अवश्य ही होना चाहिए। यह दिशा बिलकुल साफ होनी चाहिए।इस दिशा में किसी भी तरह का कूड़ा कचरा, गन्दगी का ढेर नहीं होना चाहिए अन्यथा शत्रु हावी हो जाते है और अपयश का सामना भी करना पड़ सकता है ।
ईशान मुखी भवन में पश्चिम दिशा की अपेक्षा पूर्व में और दक्षिण दिशा की अपेक्षा उत्तर में अधिक खाली स्थान छोड़ने से भवन में रहने वालों को स्थाई रूप से धन ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है ।
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