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Tuesday, December 13, 2016

Amazing results of planet Rahu and it's remedy

राहु के आश्चर्यजनक फल

ज्योतिष अनुसार सूर्य से अधिक मंगल क्रूर है और मंगल से अधिक शनि क्रूर है परन्तु राहू शनि से भी अधिक क्रूर है !

राहू का फल तीसरे, छठे और ग्यारवे भाव में शुभ माना जाता है क्योंकि क्रूर ग्रह जब भी इन भावो में आ जाते है तो शुभ फल देते है पर भाइयों के सुख का नाश कर देते है ! यदि दवादश भाव मे राहु आ जाये तो अकसर यह देखा गया है कि जातक की या तो जेल यात्रा होती है और यदि द्वादश भाव का स्वामी और बृहस्पति बलवान हो तो यही जेल यात्रा विदेश यात्रा में बदल जाती है और यदि द्वादश भाव का स्वामी कमजोर हो और क्रूर ग्रहों से दृष्ट हो , इसके साथ यदि लग्नेश भी कमजोर हो तो व्यक्ति को हस्पताल की यात्रा करनी पड़ती है !

प्रत्येक भाव में राहु अलग अलग फल देता है और जिस ग्रह के साथ बैठ जाए तो उसके बुरे फल को कई गुना बढ़ा देता है ! राहु यदि शनि के साथ बैठ जाये तो पितृ दोष का निर्माण करता है और मंगल के साथ बैठ जाएँ तो अंगारक योग का निर्माण करता है ! यदि राहु सूर्य और चन्द्र के साथ बैठ जाएँ तो ग्रहण योग का निर्माण करता है ! शुक्र के साथ बैठ जाएँ तो स्त्री श्राप का निर्माण करता है और यदि गुरु के साथ बैठ जाएँ तो चंडाल योग का निर्माण करता है !
ऐसा देखा गया है कि राहु यदि अकेला बैठा हो तो उसका अशुभ फल कम ही मिलता है ! यदि राहु लग्न में आ जाएँ तो जन्म कुंडली में चाहे हजारों राज योग हो उनका नाश हो जाता है ! लग्न में बैठ कर राहु सूर्य का बल कम कर देता है , ऐसे जातको के पिता या तो स्वयं दुखी रहते है या उनकी अपने पिता से अनबन रहती है ! ऐसे जातकों पर अक्सर झूठा इल्जाम लग जाता है !
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राहु अथवा केतु दोनों हर स्थिति में स्वतंत्र फल देने में सक्षम नहीं हैं वरन् ये जिस राशि अथवा ग्रह के साथ युति संबंध में होते हैं तदनुसार फल प्रदान करते हैं। यानि यदि राहु अथवा केतु बुध के साथ बैठेंगे अथवा कन्या या मिथुन राशियों पर अकेले बैठेंगे तो इनमें इन राशियों व युति संबंध वाले ग्रहों के प्रभाव भी शामिल हो जाएंगे।
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तीसरे भाव में स्थित राहु पराक्रम में आशातीत बढ़ोत्तरी कर देता है। ऐसा राहु छोटे भाई को भी बहुत मजबूती देता है। यदि इस भाव में बैठे राहु को मित्र या शुभ ग्रहों की दृष्टि प्राप्त हो अथवा वह स्वयं उच्च या उच्चाभिलाषी हो तो अतिशय मात्रा में शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
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छठे भाव में मजबूत स्थिति में बैठा राहु शत्रु व रोग नाशक बन जाता है। यदि छ्ठे स्थान पर शुक्र अथवा गुरु आदि शुभ ग्रहों की दृष्टि हो या इस स्थान पर शुक्र व राहु की युति हो तो ऐसी दशा में विशिष्ट शुभ फल प्राप्त होते हैं। ऐसी दशा वाले जातक के शत्रु या तो होते नहीं और यदि होते हैं तो हार कर समर्पण कर देते हैं। यही नहीं ऐसा जातक शारीरिक रूप से काफी हृष्ट-पुष्ट होता है तथा बीमारी आदि समस्याएं उससे कोसों दूर होती हैं।
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एकादश स्थान पर मजबूत होकर बैठा राहु भी शुभता का द्योतक है। इस स्थिति में संबंधित जातक को व्यापार-उद्योग, सट्टा-लॉटरी, शेयर बाज़ार आदि में एकाएक भारी मात्रा में लाभ प्राप्त होता है। ऐसा जातक शत्रु नाशक तो होता ही है साथ ही जीवनोव्यापार में भी सफल रहता है।
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राहु की वक्र दृष्टि या अशुभ स्थिति इंसान को संकटापन्न कर देती है। विवेक-बुद्धि का ह्रास हो जाता है तथा ऐसी दशा में जातक निरुपाय रह जाता है। इसलिए वह स्वयं प्रयत्नहीन होकर उल्टे-बेढंगे निर्णय लेने लगता है। यहां पर पीड़ित जातक के बंधु-बांधवों को चाहिए कि यथाशक्ति उसे अवलंबन प्रदान करें तथा राहु की अशुभ दशा के आरंभ के पूर्व ही उससे बचने और निवारण के उपाय शुरू करवा दें।
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कलियुग में राहु का प्रभाव बहुत है अगर राहु अच्छा हुआ तो जातक आर.एस. या आई.पी.एस., कलेक्टर राजनैता बनता है। इसकी शक्ति असीम है। सामान्य रूप से राहु के द्वारा मुद्रण कार्य फोटोग्राफी नीले रंग की वस्तुए, चर्बी, हड्डी जनित रोगों से पीडि़त करता है। राहु के प्रभाव से जातक आलसी तथा मानसिक रूप से सदैव दुःखी रहता है। यह सभी ग्रहों में बलवान माना जाता है तथा वृष और तुला लग्न में यह योगकारक रहता है।

ग्रहों से निकलने वाली विभिन्न किरणों के विविध प्रभाव के कारण प्राणी के स्थूल एवं सूक्ष्म शरीर में अनेक भौतिक एवं रासायनिक परिवर्तन होते रहते है. इनमें कुछ प्रभाव क्षणिक होते है. जो ग्रहों के अपने कक्ष्या में निरंतर संचरण के कारण बनते मिटते रहते है. किन्तु कुछ ग्रह अपना स्थाई प्रभाव छोड़ देते है. जैसे रोग व्याधि आदि ग्रह नक्षत्रो के संचरण के अनुरूप आते है. तथा समाप्त हो जाते है. प्रायः इनका सदा ही स्थाई कुप्रभाव देखने में नहीं आया है. किन्तु चोट-चपेट एवं दुर्घटना आदि में अँग भंग या विकलांगता स्थाई हो जाते है.
ऐसे ग्रहों में मंगल, राहू, केतु एवं शनि के अतिरिक्त सूर्य भी गणना में आता है. राहू अन्तरंग रोग या धीमा ज़हर या मदिरापान आदि व्यसन देता है. मंगल शस्त्राघात या ह्त्या आदि देता है. केतु गर्भाशय, आँत, एवं गुदा संबंधी रोग देता है. शनि मानसिक संताप, बौद्धिक ह्रास, रक्त-क्षय, राज्यक्षमा आदि देता है. सूर्य कुष्ट, नेत्र रोग एवं प्रजनन संबंधी रोग देता है. वैसे तों अशुभ स्थान पर बैठने से गुरु राजकीय दंड, अपमान, कलंक, कारावास आदि देता है. किन्तु यह अशुभ स्थिति में ही संभव है

लग्न में बैठ कर राहु पंचम, सप्तम और नवम भाव को देखता है और उनके शुभ फल को कम कर देता है !
यदि लग्न में राहु आ जाएँ तो इसका सबसे सरल उपाय है बिल्ली की नाल को किसी कपडे में बांध कर अपने घर में किसी संदूक या अलमारी में छूपा कर रखे ! पर यदि बिल्ली की नाल (जेर)न मिले तो एक सुखा नारियल लगातार 43 दिन बहते पानी में बहाये और प्रत्येक जन्म दिन पर एक ताम्बे की थाली में गेहूँ डालकर किसी मजदुर को दान करे !

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