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Wednesday, December 21, 2016

Gadant Constellation, Jyeshta, Mool, Ashwini Constellation Remedy for child

मूल नक्षत्र एवं उनके चरणों के प्रभाव
अश्विनी
प्रथम चरण --पिता को कष्ट व भय
द्वितीय चरण ---परिवार में सुख एवं ऐश्वर्या
त्रितय चरण ---सरकार से लाभ एवं मंत्री पद की प्राप्ति
चतुर्थ चरण ---परिवार को राज सम्मान व जातक को ख्याति
मघा
प्रथम चरण ---माता को कष्ट
द्वितीय ----पिता को भय
तृतीय ---परिवार में सुख
चतुर्थ ---जातक को धन विद्या का लाभ

ज्येष्ठा
प्रथम चरण ---बड़े भाई को कष्ट
द्वितीय ---छोटे भाई को कष्ट
तृतीय ---माता को कष्ट
चतुर्थ ---स्वयं का नाश
मूल नक्षत्र
प्रथम चरण ---पिता को कष्ट
द्वितीय --माता को कष्ट
तृतीय --धन नाश
चतुर्थ---सुख शांति आएगी
आश्लेषा नक्षत्र
प्रथम चरण ---शांति और सुख आएगा
द्वितीय ---धन नाश
तृतीय ---मातरिकष्ट
चतुर्थ--पिता को कष्ट

रेवती नक्षत्र
प्रथम चरण ---राजकीय सम्मान
द्वितीय ----माता पिता को कष्ट
तृतीय ---धन व आश्वर्य की प्राप्ति
चतुर्थ---परिवार में अनेक कष्ट

मूलों का शुभ या अशुभ प्रभाव आठ वर्ष की आयु तक ही होता है
इस से उपर आयु वाले जातकों के लिए मूल शांति व उपचार की आवश्यकता नहीं है



Which Nakashtra your child born ?
 मूल नक्षत्र शांति और उपाय शास्त्रों की मान्यता है कि संधि क्षेत्र हमेशा नाजुक और अशुभ होते हैं।
 जैसे मार्ग संधि (चौराहे-तिराहे), दिन-रात का संधि काल, ऋतु, लग्न और ग्रह के संधि स्थल आदि को शुभ नहीं मानते हैं। इसी प्रकार गंड-मूल नक्षत्र भी संधि क्षेत्र में आने से नाजुक और दुष्परिणाम देने वाले होते हैं । शास्त्रों के अनुसार इन नक्षत्रों में जन्म लेने वाले बच्चों के सुखमय भविष्य के लिए इन नक्षत्रों की शांति जरूरी है।
 मूल शांति कराने से इनके कारण लगने वाले दोष शांत हो जाते हैं।
 क्या हैं गंड मूल नक्षत्र राशि चक्र में ऎसी तीन स्थितियां होती हैं, जब राशि और नक्षत्र दोनों एक साथ समाप्त होते हैं।  यह स्थिति "गंड नक्षत्र" कहलाती है।

Monday, December 19, 2016

कुंवारी कन्या के विवाह हेतु - Astrology remedy for marriage

 कुंवारी कन्या के विवाह हेतु

१.       यदि कन्या की शादी में कोई रूकावट आ रही हो तो पूजा वाले 5 नारियल लें ! भगवान शिव की मूर्ती या फोटो के आगे रख कर “ऊं श्रीं वर प्रदाय श्री नामः” मंत्र का पांच माला जाप करें फिर वो पांचों नारियल शिव जी के मंदिर में चढा दें ! विवाह की बाधायें अपने आप दूर होती जांयगी !
 २.      प्रत्येक सोमवार को कन्या सुबह नहा-धोकर शिवलिंग पर “ऊं सोमेश्वराय नमः” का जाप करते हुए दूध मिले जल को चढाये और वहीं मंदिर में बैठ कर रूद्राक्ष की माला से इसी मंत्र का एक माला जप करे ! विवाह की सम्भावना शीघ्र बनती नज़र आयेगी

Not able to find the reason- look for Rahu

Not able to find the reason- look for Rahu

Rahu is the planet of mystery and confusion. But it has lot of ambitions. Wherever it is placed it causes mystery in that area. In vedic astrology, rahu is significator of smoke. As you know smoke reduces the visibility and can mix with anything.
Hence when rahu is placed in Lagna, it affects the decision making power. The thought making process is not very clear. Similarly in 2nd house rahu may look to hoard lot of money but purpose is not known.
If one extend the same principle to 6th house of diseases, rahu can causes unexplained diseases. Thats why rahu represents cancer disease.

Rahu is after material gains but he is confused about the means.

know aobut your husband's house and astrology yoga

पति का मकान कहां एवं कैसा होगा
लड़की की जन्म लग्न कुंडली में उसके लग्न भाव से तृतीय भाव पति का भाग्य स्थान होता है। इसके स्वामी के स्वक्षेत्री या मित्रक्षेत्री होने से पंचम और राशि वृद्धि से या तृतीयेश से पंचम जो राशि हो, उसी राशि का श्वसुर का गांव या नगर होगा। प्रत्येक राशि में 9 अक्षर होते हैं। राशि स्वामी यदि शत्रुक्षेत्री हो, तो प्रथम, द्वितीय अक्षर, सम राशि का हो, तो तृतीय,चतुर्थ अक्षर मित्रक्षेत्री हो, तो पंचम, षष्ठम अक्षर, अपनी ही राशि का हो तो सप्तम, अष्टम अक्षर, उच्च क्षेत्री हो, तो नवम अक्षर प्रसिद्ध नाम होगा। तृतीयेश के शत्रुक्षेत्री होने से जिस राशि म े ंहा े उसस े चतु र्थ राशि ससुराल या भवन की होगी। यदि तृतीय से शत्रु राशि में हो और तृतीय भाव में शत्रु राशि म े ंपड़ ाहो ,ता े दसवी ं राशि ससु रके गांव की होगी। लड़की की कुंडली में दसवां भाव उसके पति का भाव होता है। दशम भाव अगर शुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो, या दशमेश से युक्त या दृष्ट हो, तो पति का अपना मकान होता है। राहु, केतु, शनि, से भवन बहुत पुराना होगा। मंगल ग्रह में मकान टूटा होगा। सूर्य, चंद्रमा, बुध, गुरु एवं शुक्र से भवन सुंदर, सीमेंट का दो मंजिला होगा। अगर दशम स्थान में शनि बलवान हो, तो मकान बहुत विशाल होगा।

11th House and astrology

ज्योतिष विज्ञानं के अनुसार कुंडली का ग्यारवाँ भाव
कुंडली के ग्यारहवें भाव को वैदिक ज्योतिष में लाभ भाव कहा जाता है तथा कुंडली का यह भाव मुख्य तौर पर जातक के जीवन में होने वाले वित्तिय तथा अन्य लाभों के बारे में बताता है। ग्यारहवें भाव के द्वारा बताए जाने वाले लाभ जातक द्वारा उसकी अपनी मेहनत से कमाए पैसे के बारे में ही बताएं, यह आवश्यक नहीं। कुंडली के इस भाव द्वारा बताए जाने वाले लाभ बिना मेहनत किए मिलने वाले लाभ जैसे कि लाटरी में इनाम जीत जाना, सट्टेबाज़ी अथवा शेयर बाजार में एकदम से पैसा बना लेना तथा अन्य प्रकार के लाभ जो बिना अधिक प्रयास किए ही प्राप्त हो जाते हैं, भी हो सकते हैं

कुंडली के ग्यारहवें भाव के बलवान होने पर तथा इस भाव पर एक या एक से अधिक शुभ ग्रहों का प्रभाव होने पर जातक अपने जीवन में आने वाले लाभ प्राप्ति के अवसरों को शीघ्र ही पहचान जाता है तथा इन अवसरों का भरपूर लाभ उठाने में सक्षम होता है जबकि कुंडली के ग्यारहवें भाव के बलहीन होने पर जातक अपने जीवन में आने वाले लाभ प्राप्ति के अधिकतर अवसरों को सही प्रकार से समझ नही पाता तथा इस कारण इन अवसरों से कोई विशेष लाभ नहीं उठा पाता।

Remedy related to money and promotion

प्रमोशन और रूकाहुआ धन प्राप्ति प्रयोग:-किसी भी रविवार को बड़ के पेड़ के पास जाये जिसकी बड़ी बड़ी जड़ें लटक रही हो।उस पेड़ के पास जाकर सबसे पहले अपने गुरु या माता पिता को याद करके प्रणाम करें।अब सूर्य देवता का ध्यान करके और अपना नाम और गोत्र और अपनी मनोकामना मन में बोलकर बड़ के पेड़ की दो जड़ो को जो सबसे ज्यादा पतली हो दोनों को पकड़ कर उसमे गांठ लगानी हे।यह प्रयोग तीन महीने में एक बार ही करना हे इस प्रयोग से उच्च अधिकारियो से सम्पर्क बढ़ता हे।घन आने के रास्ते भी खुल जाते हे।जो विधार्थी सरकारी नोकरी के प्रयत्न कर रहे हे उनके लिए यह प्रयोग अवश्य कार्य करेगा

Remedy for Saturn

शनिदेव शांति के लिये तांत्रिक उपाय
1- काली गाय की सेवा करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं। उसके सिर पर रोली लगाकर सींगों में कलावा बांधकर धूप-आरती करनी चाहिए। फिर परिक्रमा करके गाय को बूंदी के चार लड्डू खिला दें।
2- हर शनिवार उपवास रखें। सूर्यास्त के बाद हनुमानजी का पूजन करें। पूजन में सिंदूर, काली तिल्ली का तेल, इस तेल का दीपक एवं नीले रंग के फूल का प्रयोग करें।
3- शनिवार के दिन बंदरों और काले कुत्तों को लड्डू खिलाने से भी शनि का कुप्रभाव कम हो जाता है अथवा काले घोड़े की नाल या नाव में लगी कील से बना छल्ला धारण करें।
4- शुक्रवार की रात काले चने पानी में भिगो दे। शनिवार को ये चने, कच्चा कोयला, हल्की लोहे की पत्ती एक काले कपड़े में बांधकर मछलियों के तालाब में डाल दें। यह टोटका पूरा एक साल करें। इस दौरान भूल से भी मछली का सेवन न करें।
5- शनिवार के दिन अपने दाहिने हाथ के नाप का उन्नीस हाथ लंबा काला धागा लेकर उसको बंटकर माला की भांति गले में पहनें। इस प्रयोग से भी शनि का प्रकोप कम होता है।
6- चोकरयुक्त आटे की 2 रोटी लेकर एक तेल और दूसरी घी से चुपड़ दें। तेल वाली रोटी पर थोड़ा मिष्ठान रखकर काली गाय को खिला दें इसके बाद दूसरी रोटी भी खिला दें और शनिदेव का स्मरण करें।
7- सवा किलो काला कोयला, एक लोहे की कील एक काले कपड़े में बांधकर अपने सिर पर से घुमाकर बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें।
8- शनिवार के दिन हनुमानजी को चोला चढ़ाएं। चोले में सरसो या चमेली के तेल का उपायोग करें और इन तेलों से ही दीपक भी जलाएं।

DAGDHA NAKSHATRA

DAGDHA NAKSHATRA: For commencement of any work, this Nakshatra is considered as inauspicious. Therefore, commencing any work in this Nakshatra is prohibited if the days on which, this Nakshatra falls are as under-
Sunday - Bharani
Monday - Chitra
Tuesday - Uttarashadha
Wednesday - Dhanishtha
Thursday - Uttaraphalguni
Friday - Jyeshtha
Saturday - Revati


YOGA (COMBINATIONS)
There are 27 Yogas in all. They are as under
1) VISHAKUMBHA, 2) PREETI, 3) AAYUSHMAN, 4) SAUBHAGYA, 5) SHOBHANA, 6) ATIGANDA, 7) SUKARMA, 8) DHRITI, 9) SHOOLA, 10) GAND, 11) VRIDDHI, 12) DHRUVA, 13) VYAGHAATA, 14) HARSHANA, 15) VAJRA, 16) SIDDHI, 17) VYATIPAATA, 18) VARIYAANA, 19) PARIGHA, 20) SHIVA, 21) SIDDHA, 22) SADDHYA, 23) SHUBHA, 24) SHUKLA, 25) BRAHMA, 26) INDRA, 27) VAIDHRITI.

Your signature and astrology remedy

1. जो लोग हस्ताक्षर का पहला अक्षर बड़ा लिखते हैं, वे अद्भुत प्रतिभा के धनी होते हैं। ऐसे लोग किसी भी कार्य को अपने अलग ही अंदाज से पूरा करते हैं। अपने कार्य में पारंगत होते हैं। पहला अक्षर बड़ा बनाने के बाद अन्य अक्षर छोटे-छोटे और सुंदर दिखाई देते हों तो व्यक्ति धीरे-धीरे किसी खास मुकाम पर पहुंच जाता है। ऐसे लोगों को जीवन में सभी सुख-सुविधाएं प्राप्त हो जाती हैं।

2. जो लोग जल्दी-जल्दी और अस्पष्ट हस्ताक्षर करते हैं, वे जीवन में कई प्रकार की परेशानियों का सामना करते हैं। ऐसे लोग सुखी जीवन नहीं जी पाते हैं। हालांकि, ऐसे लोगों में कामयाब होने की चाहत बहुत अधिक होती है और इसके लिए वे श्रम भी करते हैं। ये लोग किसी को धोखा भी दे सकते हैं। स्वभाव से चतुर होते हैं, इसी वजह से इन्हें कोई धोखा नहीं दे सकता।

3. कुछ लोग हस्ताक्षर तोड़-मरोड़ कर या टुकड़े-टुकड़े या अलग-अलग हिस्सों में करते हैं, हस्ताक्षर के शब्द छोटे-छोटे और अस्पष्ट होते हैं जो आसानी से समझ नहीं आते हैं। सामान्यत: ऐसे लोग बहुत ही चालाक होते हैं। ये लोग अपने काम से जुड़े राज किसी के सामने जाहिर नहीं करते हैं। कभी-कभी ये लोग गलत रास्तों पर भी चल देते हैं और किसी को नुकसान भी पहुंचा सकते हैं।

4. जो लोग कलात्मक और आकर्षक हस्ताक्षर करते हैं, वे रचनात्मक स्वभाव के होते हैं। इन्हें किसी भी कार्य को कलात्मक ढंग से करना पसंद होता है। ऐसे लोग किसी न किसी कार्य में हुनरमंद होते हैं। इन लोगों के काम करने का तरीका अन्य लोगों से एकदम अलग होता है। ऐसे हस्ताक्षर वाले लोग पेंटर या कलाकार भी हो सकते हैं।
आनन्द ही आनन्द

5. कुछ लोग हस्ताक्षर के नीचे दो लाइन खींचते हैं। ऐसे सिग्नेचर करने वाले लोगों में असुरक्षा की भावना अधिक होती है। किसी काम में सफलता मिलेगी या नहीं, इस बात का संदेह सदैव रहता है। पैसा खर्च करने में इन्हें काफी बुरा महसूस होता है अर्थात ये लोग कंजूस भी हो सकते हैं।

6. जो लोग हस्ताक्षर करते समय नाम का पहला अक्षर थोड़ा बड़ा और पूरा उपनाम लिखते हैं, वे अद्भुत प्रतिभा के धनी होते हैं। ऐसे लोग जीवन में सभी सुख-सुविधाएं प्राप्त करते हैं। ईश्वर में आस्था रखने वाले और धार्मिक कार्य करना इनका स्वभाव होता है। ऐसे लोगों का वैवाहिक जीवन भी सुखी होता है।

7. जिन लोगों के सिग्नेचर मध्यम आकार के अक्षर वाले, जैसी उनकी लिखावट है, ठीक वैसे ही हस्ताक्षर हो तो व्यक्ति हर काम को बहुत ही अच्छे ढंग से करता है। ये लोग हर काम में संतुलन बनाए रखते हैं। दूसरों के सामने बनावटी स्वभाव नहीं रखते हैं। जैसे ये वास्तव में होते हैं, ठीक वैसा ही खुद को प्रदर्शित करते हैं।

8. जो लोग अपने हस्ताक्षर को नीचे से ऊपर की ओर ले जाते हैं, वे आशावादी होते हैं। निराशा का भाव उनके स्वभाव में नहीं होता है। ऐसे लोग भगवान में आस्था रखने वाले होते हैं। इनका उद्देश्य जीवन में ऊपर की ओर बढ़ना होता है। इस प्रकार हस्ताक्षर करने वाले व्यक्ति अन्य लोगों का प्रतिनिधित्व करने की इच्छा रखते हैं।

9. जिन लोगों के हस्ताक्षर ऊपर से नीचे की ओर जाते हैं, वे नकारात्मक विचारों वाले हो सकते हैं। ऐस लोग किसी भी काम में असफलता की बात पहले सोचते हैं।

10. जिन लोगों के हस्ताक्षर एक जैसे लयबद्ध नहीं दिखाई देते हैं, वे मानसिक रूप से अस्थिर होते होते हैं। इन्हें मानसिक कार्यों में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। साथ ही, इनके विचारों में परिवर्तन होते रहते हैं। ये लोग किसी एक बात पर अडिग नहीं रह सकते हैं।

11. जिन लोगों के हस्ताक्षर सामान्य रूप से कटे हुए दिखाई देते हैं, वे नकारात्मक विचारों वाले होते हैं। इन्हें किसी भी कार्य में असफलता पहले नजर आती है। इसी वजह से नए काम करने में इन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

12. यदि कोई व्यक्ति हस्ताक्षर के अंत में लंबी लाइन खींचता है तो वह ऊर्जावान होता है। ऐसे लोग दूसरों की मदद के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। किसी भी काम को पूरे मन से करते हैं और सफलता भी प्राप्त करते हैं।

13. जो लोग हस्ताक्षर करते समय अपना मिडिल नेम पहले लिखते हैं, वे अपनी पसंद-नापंसद को अधिक महत्व देते हैं। इसके बाद कार्यों को पूरा करने में लग जाते हैं।

14. जो लोग हस्ताक्षर में सिर्फ अपना नाम लिखते हैं, सरनेम नहीं लिखते हैं, वे लोग स्वयं के सिद्धांतों पर कार्य करने वाले होते हैं। आमतौर पर ऐसे लोग किसी और की सलाह मानते नहीं हैं, ये लोग सुनते सबकी हैं, लेकिन करते करते अपने मन की हैं।
आनन्द ही आनन्द

हस्ताक्षर करते समय करें ये उपाय…

क्या आप जानते हैं धन संबंधी मामलों में आपके हस्ताक्षर भी काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। गलत तरीके से सिग्नेचर करने पर आपको कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जबकि जो लोग सही तरीके से हस्ताक्षर करते हैं, उन्हें कार्यों में सफलता मिल सकती है।
ज्योतिष में हस्ताक्षर के संबंध में कुछ ध्यान रखने योग्य बातें बताई हैं। आप बहुत धन कमाते हैं और फिर भी बचत नहीं होती है तो अपने हस्ताक्षर के नीचे की ओर पूरी लाईन खीचें तथा उसके नीचे दो बिंदू बना दें, इन बिंदुओं को धन बढ़ने के साथ-साथ बढ़ाते रहें। याद रखें अधिकतम छ: बिंदू लगाए जा सकते हैं।

सोमवार यानि चन्द्रवार

सोमवार यानि चन्द्रवार

सोमवार का दिन ज्योतिष अनुसार चन्द्र ग्रह के साथ सम्बन्धित है ,यही चन्द्रमा ही जीवन में क्षण भर में परिवर्तन ला देता है , कई बार ज्योतिष के माहिर कुंडली के भयंकर दोष ढूंढते हैं / शनि के साढेसाती / राहु के श्राप / कालसर्प दोष आदि को मुख्य रूप से विवेचित करते रहते हैं परन्तु सबसे खतरनाक चाल चन्द्रमा की है जो हर ढाई दिन में राशि परिवर्तन कर जाते हैं और मनुष्य का स्वभाव बदल देते हैं ( mood swing ) की बीमारी चन्द्रमा से ही होती है / डिप्रेशन , चिड़चिड़ा पैन भी चन्द्रमा ही दे हैं / आत्महत्या करने वालो की कुंडली में ९९% बुध के साथ चन्द्रमा ही खराब होता है ।

चन्द्रमा शनि के साथ हो तो विषयोग बनाता है ।
चन्द्रमा राहु-केतु के साथ हो तो ग्रहण दोष बनाता है ।
चन्द्रमा और बुध की जोड़ी भी कुंडली को खराब ही करती है ।
चन्द्रमा और शुक्र अति संवेदनशील बना देते हैं ।
चन्द्रमा और गुरु की जोड़ी लग्न अनुसार यदिं अशुभ ग्रह से दृष्ट  न हो तो ही शुभ फल प्रदान करती है  ।
चन्द्रमा और मंगल की जोड़ी भी लग्न अनुसार यदिं अशुभ ग्रह से दृष्ट  न हो तो ही शुभ फल प्रदान करती है  ।

चन्द्रमा कुंडली के छठे / आठवें / बारवें भाव में हो तो भी जातक असन्तुलित स्वभाव का मानसिक रोगी होता है।

चन्द्रमा को काबू करना बहुत जटिल कार्य है क्योंकि चन्द्रमा भोलेनाथ के मस्तक पर स्थित है और भोलेनाथ ठहरे अति भोले भाले , जिद्दी स्वभाव जिन्हें योगी से गृहस्थी में माँ पार्वती बड़े जतन से ही ला सकी  थी इसलिए सोमवार को शंकर - पार्वती जी के युगल जोड़ी की दर्शन करना और छोटी कन्या को दूध पिलाना चाहिए या फिर दूध का बन्द पैकेट शिवमंदिर में छोड़ देना चाहिए ताकि पुजारी वो दूध का स्वयम प्रयोग कर सके या  दान  कर दे ।

अतिआवश्यक : शिवलिंग  पर कच्चा दूध केवल किसी अनुष्ठान में वहीँ चढ़ाना चाहिए जहां शिवलिंग की स्थापना कच्ची जगह किसी पेड़ के नीचे की गयी हो  जहां दूध धरती में समा  सके / जहां  शिवलिंग पर चढ़ता हुआ दूध गन्दी नाली में बहता हो वहां दूध  चढ़ाने वाला परेशान ही रहेगा क्योंकि दूध चन्द्रमा है तो गन्दी नाली राहु है और जिसने राहु और चन्द्रमा को मिला दिया वो मानसिक पीड़ा में ही रहता है , इसीलिए कई बार लोग कहते हैं की मन्दिर जाने वाले अधिक परेशान रहते हैं क्योंकि उन्हें अपनी गलती का पता नही होता या कोई बताता ही नही ।

चन्द्रमा का रत्न  मोती है जो हर किसी को नही धारण करना चाहिए क्योंकि दुष्ट ग्रह से पीड़ित चन्द्रमा हो तो पहले दुष्ट ग्रह का उपाय करना होता है न की मोती धारण करना , मैंने बहुत से लोगों को तो केवल मोती उतरवा कर ही उनकी " मानसिक पीड़ा " से मुक्ति दिलवाई है..

Dream Astrology

सपने का भविष्य फल तथा उनसे प्राप्त होने वाले संभावित फल

1- सांप दिखाई देना- धन लाभ
2- नदी देखना- सौभाग्य में वृद्धि
3- नाच-गाना देखना- अशुभ समाचार मिलने के योग
4- नीलगाय देखना- भौतिक सुखों की प्राप्ति
5- नेवला देखना- शत्रुभय से मुक्ति
6- पगड़ी देखना- मान-सम्मान में वृद्धि
7- पूजा होते हुए देखना- किसी योजना का लाभ मिलना
8- फकीर को देखना- अत्यधिक शुभ फल
9- गाय का बछड़ा देखना- कोई अच्छी घटना होना
10- वसंत ऋतु देखना- सौभाग्य में वृद्धि
11- स्वयं की बहन को देखना- परिजनों में प्रेम बढऩा
12- बिल्वपत्र देखना- धन-धान्य में वृद्धि
13- भाई को देखना- नए मित्र बनना
14- भीख मांगना- धन हानि होना
15- शहद देखना- जीवन में अनुकूलता
16- स्वयं की मृत्यु देखना- भयंकर रोग से मुक्ति
17- रुद्राक्ष देखना- शुभ समाचार मिलना
18- पैसा दिखाई- देना धन लाभ
19- स्वर्ग देखना- भौतिक सुखों में वृद्धि
20- पत्नी को देखना- दांपत्य में प्रेम बढ़ना
21- स्वस्तिक दिखाई देना- धन लाभ होना
22- हथकड़ी दिखाई देना- भविष्य में भारी संकट
23- मां सरस्वती के दर्शन- बुद्धि में वृद्धि
24- कबूतर दिखाई देना- रोग से छुटकारा
25- कोयल देखना- उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति
26- अजगर दिखाई देना- व्यापार में हानि
27- कौआ दिखाई देना- बुरी सूचना मिलना
28- छिपकली दिखाई देना- घर में चोरी होना
29- चिडिय़ा दिखाई देना- नौकरी में पदोन्नति
30- तोता दिखाई देना- सौभाग्य में वृद्धि
31- भोजन की थाली देखना- धनहानि के योग
32- इलाइची देखना- मान-सम्मान की प्राप्ति
33- खाली थाली देखना- धन प्राप्ति के योग
34- गुड़ खाते हुए देखना- अच्छा समय आने के संकेत
35- शेर दिखाई देना- शत्रुओं पर विजय
36- हाथी दिखाई देना- ऐेश्वर्य की प्राप्ति
37- कन्या को घर में आते देखना- मां लक्ष्मी की कृपा मिलना
38- सफेद बिल्ली देखना- धन की हानि
39- दूध देती भैंस देखना- उत्तम अन्न लाभ के योग
40- चोंच वाला पक्षी देखना- व्यवसाय में लाभ
41- स्वयं को दिवालिया घोषित करना- व्यवसाय चौपट होना
42- चिडिय़ा को रोते देखता- धन-संपत्ति नष्ट होना
43- चावल देखना- किसी से शत्रुता समाप्त होना
44- चांदी देखना- धन लाभ होना
45- दलदल देखना- चिंताएं बढऩा
46- कैंची देखना- घर में कलह होना
47- सुपारी देखना- रोग से मुक्ति
48- लाठी देखना- यश बढऩा
49- खाली बैलगाड़ी देखना- नुकसान होना
50- खेत में पके गेहूं देखना- धन लाभ होना
51- किसी रिश्तेदार को देखना- उत्तम समय की शुरुआत
52- तारामंडल देखना- सौभाग्य की वृद्धि
53- ताश देखना- समस्या में वृद्धि
54- तीर दिखाई- देना लक्ष्य की ओर बढऩा
55- सूखी घास देखना- जीवन में समस्या
56- भगवान शिव को देखना- विपत्तियों का नाश
57- त्रिशूल देखना- शत्रुओं से मुक्ति
58- दंपत्ति को देखना- दांपत्य जीवन में अनुकूलता
59- शत्रु देखना- उत्तम धनलाभ
60- दूध देखना- आर्थिक उन्नति
61- धनवान व्यक्ति देखना- धन प्राप्ति के योग
62- दियासलाई जलाना- धन की प्राप्ति
63- सूखा जंगल देखना- परेशानी होना
64- मुर्दा देखना- बीमारी दूर होना
65- आभूषण देखना- कोई कार्य पूर्ण होना
66- जामुन खाना- कोई समस्या दूर होना
67- जुआ खेलना- व्यापार में लाभ
68- धन उधार देना- अत्यधिक धन की प्राप्ति
69- चंद्रमा देखना- सम्मान मिलना
70- चील देखना- शत्रुओं से हानि
71- फल-फूल खाना- धन लाभ होना
72- सोना मिलना- धन हानि होना
73- शरीर का कोई अंग कटा हुआ देखना- किसी परिजन की मृत्यु के योग
74- कौआ देखना- किसी की मृत्यु का समाचार मिलना
75- धुआं देखना- व्यापार में हानि
76- चश्मा लगाना- ज्ञान में बढ़ोत्तरी
77- भूकंप देखना- संतान को कष्ट
78- रोटी खाना- धन लाभ और राजयोग
79- पेड़ से गिरता हुआ देखना किसी रोग से मृत्यु होना
80- श्मशान में शराब पीना- शीघ्र मृत्यु होना
81- रुई देखना- निरोग होने के योग
82- कुत्ता देखना- पुराने मित्र से मिलन
83- सफेद फूल देखना- किसी समस्या से छुटकारा
84- उल्लू देखना- धन हानि होना
85- सफेद सांप काटना- धन प्राप्ति
86- लाल फूल देखना- भाग्य चमकना
87- नदी का पानी पीना- सरकार से लाभ
88- धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाना- यश में वृद्धि व पदोन्नति
89- कोयला देखना- व्यर्थ विवाद में फंसना
90- जमीन पर बिस्तर लगाना- दीर्घायु और सुख में वृद्धि
91- घर बनाना- प्रसिद्धि मिलना
92- घोड़ा देखना- संकट दूर होना
93- घास का मैदान देखना- धन लाभ के योग
94- दीवार में कील ठोकना- किसी बुजुर्ग व्यक्ति से लाभ
95- दीवार देखना- सम्मान बढऩा
96- बाजार देखना- दरिद्रता दूर होना
97- मृत व्यक्ति को पुकारना- विपत्ति एवं दुख मिलना
98- मृत व्यक्ति से बात करना- मनचाही इच्छा पूरी होना
99- मोती देखना- पुत्री प्राप्ति
100- लोमड़ी देखना- किसी घनिष्ट व्यक्ति से धोखा मिलना
101- गुरु दिखाई देना- सफलता मिल सकती है।।

केतु ग्रह के महादशा में ये सब संकेत आते हैं और कमजोर केतु में भी ये संकेत होते हैं ....

केतु ग्रह के महादशा में ये सब संकेत आते हैं  और कमजोर केतु में भी ये संकेत होते हैं ....

1.आत्मबल कमजोर
2.नींद में कमी
3.आमदनी के स्रोत्र में बदलाव
4.ऐयासी की समस्या
5.डरना चौकना
6.गाली गलौज़ करना
7.फोड़े फुंसी से परेशान
8.बाबासीर की समस्या
9.कुत्ता से डर
10.तंत्र मंत्र से परेशान

इसका उपाय कुंडली देखकर करे तो बढ़िया होगा वैसे साधारण उपाय ये है।
1.फटे जूता चप्पल का दान
2.कुत्ता को रोटी खिलाबे
3.नीले खुले आकाश का ध्यान
4.कुश के आसन पर बैठे
5.अश्वगंधा का प्रयोग
6.मंगल को मजबूत करें

Tuesday, December 13, 2016

Vastu and auspicious directions

वास्तु शास्त्र के कुछ आसान उपायों द्वारा जाने कि किस काम के लिए कौन-सी दिशा होती है शुभ 

वास्तु शास्त्र में ऊर्जा का विशेष महत्त्व है। वास्तु शास्त्र में हर दिशा का संबंध किसी न किसी खास ऊर्जा से माना जाता है इसलिए वास्तु के अनुसार, काम की दिशा भी हमारी सफलता-असफलता का कारण बन सकती है। इसलिए वास्तु में हर काम के लिए एक निश्चित दिशा का महत्व माना जाता है। यदि वास्तु के इन नियमों का पालन किया जाए तो मनुष्य को हर काम में सफलता मिलती है। 

1. पढाई करते समय विद्यार्थी का मुंह पूर्व दिशा की ओर हो तो यह सबसे अच्छा माना जाता है। 
2. घर के मंदिर में पूजा करते समय व्यक्ति का मुंह पश्चिम दिशा की ओर होना शुभ होता है। यदि ऐसा संभव न हो तो मुंह पूर्व दिशा की ओर भी रख सकते हैं।
3. दुकान या ऑफिस में काम करते समय वहां के मुखिया का मुंह हमेशा उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए। इससे काम में हमेशा सफलता मिलती है। 
4. खाना बनाते समय ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि खाना बनाने वाले का मुंह पूर्व या उत्तर-पूर्व दिशा की ओर हो। 
5. सोते समय दक्षिण दिशा की ओर सिर होना चाहिए। इसके अलावा किसी भी अन्य दिशा में सिर करके सोना अशुभ माना जाता है। 
6. खाना खाते समय मुंह पूर्व और उत्तर दिशा की ओर होना सबसे अच्छा होता है। इससे शरीर को भोजन से मिलने वाली ऊर्जा पूरी तरह से मिलती है। 
7. किसी भी नए काम की शुरुआत उत्तर दिशा की ओर मुंह रखकर ही करनी चाहिए। उत्तर दिशा को सफलता की दिशा माना जाता है। 
8. घर में टी.वी. ऐसी जगह लगाना चाहिए कि टी.वी. देखते हुए घर के सदस्यों का चेहरा दक्षिण या उत्तर-दक्षिण दिशा की ओर हो। 
9. घर की उत्तर ओर दक्षिण दिशा की ओर मेन गेट नहीं बनाना चाहिए, न ही इन दिशाओं में बालकनी होनी चाहिए। अगर ऐसा हो तो उन पर हमेशा पर्दा लगाकर रखें।

Amazing results of planet Rahu and it's remedy

राहु के आश्चर्यजनक फल

ज्योतिष अनुसार सूर्य से अधिक मंगल क्रूर है और मंगल से अधिक शनि क्रूर है परन्तु राहू शनि से भी अधिक क्रूर है !

राहू का फल तीसरे, छठे और ग्यारवे भाव में शुभ माना जाता है क्योंकि क्रूर ग्रह जब भी इन भावो में आ जाते है तो शुभ फल देते है पर भाइयों के सुख का नाश कर देते है ! यदि दवादश भाव मे राहु आ जाये तो अकसर यह देखा गया है कि जातक की या तो जेल यात्रा होती है और यदि द्वादश भाव का स्वामी और बृहस्पति बलवान हो तो यही जेल यात्रा विदेश यात्रा में बदल जाती है और यदि द्वादश भाव का स्वामी कमजोर हो और क्रूर ग्रहों से दृष्ट हो , इसके साथ यदि लग्नेश भी कमजोर हो तो व्यक्ति को हस्पताल की यात्रा करनी पड़ती है !

प्रत्येक भाव में राहु अलग अलग फल देता है और जिस ग्रह के साथ बैठ जाए तो उसके बुरे फल को कई गुना बढ़ा देता है ! राहु यदि शनि के साथ बैठ जाये तो पितृ दोष का निर्माण करता है और मंगल के साथ बैठ जाएँ तो अंगारक योग का निर्माण करता है ! यदि राहु सूर्य और चन्द्र के साथ बैठ जाएँ तो ग्रहण योग का निर्माण करता है ! शुक्र के साथ बैठ जाएँ तो स्त्री श्राप का निर्माण करता है और यदि गुरु के साथ बैठ जाएँ तो चंडाल योग का निर्माण करता है !
ऐसा देखा गया है कि राहु यदि अकेला बैठा हो तो उसका अशुभ फल कम ही मिलता है ! यदि राहु लग्न में आ जाएँ तो जन्म कुंडली में चाहे हजारों राज योग हो उनका नाश हो जाता है ! लग्न में बैठ कर राहु सूर्य का बल कम कर देता है , ऐसे जातको के पिता या तो स्वयं दुखी रहते है या उनकी अपने पिता से अनबन रहती है ! ऐसे जातकों पर अक्सर झूठा इल्जाम लग जाता है !
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राहु अथवा केतु दोनों हर स्थिति में स्वतंत्र फल देने में सक्षम नहीं हैं वरन् ये जिस राशि अथवा ग्रह के साथ युति संबंध में होते हैं तदनुसार फल प्रदान करते हैं। यानि यदि राहु अथवा केतु बुध के साथ बैठेंगे अथवा कन्या या मिथुन राशियों पर अकेले बैठेंगे तो इनमें इन राशियों व युति संबंध वाले ग्रहों के प्रभाव भी शामिल हो जाएंगे।
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तीसरे भाव में स्थित राहु पराक्रम में आशातीत बढ़ोत्तरी कर देता है। ऐसा राहु छोटे भाई को भी बहुत मजबूती देता है। यदि इस भाव में बैठे राहु को मित्र या शुभ ग्रहों की दृष्टि प्राप्त हो अथवा वह स्वयं उच्च या उच्चाभिलाषी हो तो अतिशय मात्रा में शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
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छठे भाव में मजबूत स्थिति में बैठा राहु शत्रु व रोग नाशक बन जाता है। यदि छ्ठे स्थान पर शुक्र अथवा गुरु आदि शुभ ग्रहों की दृष्टि हो या इस स्थान पर शुक्र व राहु की युति हो तो ऐसी दशा में विशिष्ट शुभ फल प्राप्त होते हैं। ऐसी दशा वाले जातक के शत्रु या तो होते नहीं और यदि होते हैं तो हार कर समर्पण कर देते हैं। यही नहीं ऐसा जातक शारीरिक रूप से काफी हृष्ट-पुष्ट होता है तथा बीमारी आदि समस्याएं उससे कोसों दूर होती हैं।
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एकादश स्थान पर मजबूत होकर बैठा राहु भी शुभता का द्योतक है। इस स्थिति में संबंधित जातक को व्यापार-उद्योग, सट्टा-लॉटरी, शेयर बाज़ार आदि में एकाएक भारी मात्रा में लाभ प्राप्त होता है। ऐसा जातक शत्रु नाशक तो होता ही है साथ ही जीवनोव्यापार में भी सफल रहता है।
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राहु की वक्र दृष्टि या अशुभ स्थिति इंसान को संकटापन्न कर देती है। विवेक-बुद्धि का ह्रास हो जाता है तथा ऐसी दशा में जातक निरुपाय रह जाता है। इसलिए वह स्वयं प्रयत्नहीन होकर उल्टे-बेढंगे निर्णय लेने लगता है। यहां पर पीड़ित जातक के बंधु-बांधवों को चाहिए कि यथाशक्ति उसे अवलंबन प्रदान करें तथा राहु की अशुभ दशा के आरंभ के पूर्व ही उससे बचने और निवारण के उपाय शुरू करवा दें।
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कलियुग में राहु का प्रभाव बहुत है अगर राहु अच्छा हुआ तो जातक आर.एस. या आई.पी.एस., कलेक्टर राजनैता बनता है। इसकी शक्ति असीम है। सामान्य रूप से राहु के द्वारा मुद्रण कार्य फोटोग्राफी नीले रंग की वस्तुए, चर्बी, हड्डी जनित रोगों से पीडि़त करता है। राहु के प्रभाव से जातक आलसी तथा मानसिक रूप से सदैव दुःखी रहता है। यह सभी ग्रहों में बलवान माना जाता है तथा वृष और तुला लग्न में यह योगकारक रहता है।

ग्रहों से निकलने वाली विभिन्न किरणों के विविध प्रभाव के कारण प्राणी के स्थूल एवं सूक्ष्म शरीर में अनेक भौतिक एवं रासायनिक परिवर्तन होते रहते है. इनमें कुछ प्रभाव क्षणिक होते है. जो ग्रहों के अपने कक्ष्या में निरंतर संचरण के कारण बनते मिटते रहते है. किन्तु कुछ ग्रह अपना स्थाई प्रभाव छोड़ देते है. जैसे रोग व्याधि आदि ग्रह नक्षत्रो के संचरण के अनुरूप आते है. तथा समाप्त हो जाते है. प्रायः इनका सदा ही स्थाई कुप्रभाव देखने में नहीं आया है. किन्तु चोट-चपेट एवं दुर्घटना आदि में अँग भंग या विकलांगता स्थाई हो जाते है.
ऐसे ग्रहों में मंगल, राहू, केतु एवं शनि के अतिरिक्त सूर्य भी गणना में आता है. राहू अन्तरंग रोग या धीमा ज़हर या मदिरापान आदि व्यसन देता है. मंगल शस्त्राघात या ह्त्या आदि देता है. केतु गर्भाशय, आँत, एवं गुदा संबंधी रोग देता है. शनि मानसिक संताप, बौद्धिक ह्रास, रक्त-क्षय, राज्यक्षमा आदि देता है. सूर्य कुष्ट, नेत्र रोग एवं प्रजनन संबंधी रोग देता है. वैसे तों अशुभ स्थान पर बैठने से गुरु राजकीय दंड, अपमान, कलंक, कारावास आदि देता है. किन्तु यह अशुभ स्थिति में ही संभव है

लग्न में बैठ कर राहु पंचम, सप्तम और नवम भाव को देखता है और उनके शुभ फल को कम कर देता है !
यदि लग्न में राहु आ जाएँ तो इसका सबसे सरल उपाय है बिल्ली की नाल को किसी कपडे में बांध कर अपने घर में किसी संदूक या अलमारी में छूपा कर रखे ! पर यदि बिल्ली की नाल (जेर)न मिले तो एक सुखा नारियल लगातार 43 दिन बहते पानी में बहाये और प्रत्येक जन्म दिन पर एक ताम्बे की थाली में गेहूँ डालकर किसी मजदुर को दान करे !

Question Should i wear gemstone of rahu ketu ?

Question Should i wear gemstone of rahu ketu ?
Ans...

आचार्यों ने ग्रहों की शांति के पांच पांच प्रकार के उपाय बताए हैं जिनमें मंत्र मणि औषधि दान और  स्नान आदि आदि है लेकिन राहु और केतु छाया ग्रह हैं इस कारण से उनका रतन धारण नहीं किया जाना चाहिए यह बात कुछ अटपटी सी नजर आती है क्योंकि राहु भी यदि लग्न में वृषभ कर्क या वृश्चिक राशि में स्थित हो तो कुंडली में व्याप्त बालारिष्ट योगों को भी भंग करने वाला कहा गया है तथा केंद्र में यदि त्रिकोणेश के साथ और त्रिकोण में केंद्रेश के साथ स्थित हो तो राजयोग कारक कहा गया है और महर्षि पराशर जी के अनुसार यदि अकेले राहु केतु केंद्र में स्थित हो तो स्वयं ही योगकारक हो जाते हैं यदि वह किसी भी ग्रह से युत ना हो तो ऐसे में उनका रतन धारण करना अशूभ कैसे कहा जा सकता है इसलिए शास्त्र के मतानुसार जो भी ग्रह शुभ फल प्रदान करने में सक्षम हो उनके रतन धारण करने से उनके शुभ फलों में वृद्धि हुआ करती है और यदि कोई ग्रह अशुभ फल देने वाला हो तो उसके रतन धारण करने से अशुभ फलों में कमी हुआ करती है इसलिए राहु और केतु के रतन धारण किए जा सकते हैं यह मत ना तो मेरा है ना किसी और का यह हमारे परवर्ती आचार्यों का मत है जिसे आप और मैं नकार नहीं सकते  वैसे तो सूर्य भी ग्रह नहीं है एक तारा है और चंद्रमा भी ग्रह नहीं है एक उपग्रह है यदि इस प्रकार गणित प्रक्रिया का सहारा लिया जाएगा तो हमारे पास नौ ग्रहों की बजाय मात्र 5 ग्रही बचेंगे वैसे भी राहु और केतु का प्रभाव जातक के ऊपर प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से हमेशा से नजर आता रहा है इसलिए इन्हें कम महतव दिया जाना चाहिए यह बात सर्वदा अनुचित है ।

Education and astrology planet

ग्रहों के अनुसार विद्या अध्ययन

सूर्य -
मेडिसिन, रसायन शाश्त्र (Chemistry), अल्केमी, ज्योतिष, भूगोल शाश्त्र ( geography).

चन्द्रमा -
टेक्सटाइल, केमिकल इंजीनियरिंग, इंजीनियरिंग, साइकोलॉजी, वाटर अथवा हाइड्रोलिक इंजीनियरिंग, संगीत शिक्षा, मार्केटिंग।

मंगल -
सर्जरी, मैकेनिकल और सिविल इंजीनियरिंग, मशीन, स्ट्रक्चरल डिज़ाइन, आर्किटेक्चर, फिजिक्स, मिलिट्री सर्विस, मार्शल आर्ट एवं योगा।

बुध -
गणित, इंजीनियरिंग, ज्योतिष, कॉमर्स, पुराणिक अध्ययन, ऑडिटिंग,लॉजिक, (journalism), मास कम्युनिकेशन एंड एडवरटाइजिंग, एस्ट्रोनॉमी, पब्लिक स्पीकिंग ।

बृहस्पति -
वकालत(Law), मेडिसिन, मिलिट्री साइंस, एडमिनिस्ट्रेशन, इंस्ट्रक्शनल टेक्निक्स, दर्शन शास्त्र (Philosophy), धर्म शास्त्र, पोलिटिकल साइंस,बिज़नस मैनेजमेंट, बैंकिंग, एस्ट्रोलॉजी।

शुक्र -

रसायन शास्त्र(Chemistry), इलेक्ट्रॉनिक्स, कंप्यूटर विज्ञान, एग्रीकल्चर, डेरी फार्मिंग, वेटरनरी साइंस, केमिकल इंजीनियरिंग, टेक्सटाइल, प्लास्टिक, नेवल साइंस, पोल्ट्री, म्यूजिक, फॉरेन लिटरेचर, लॉजिक, ग्रामर, सेक्सओलॉजी, नपथ्रोलिजि, ऑप्थल्मोलॉजी, गायनेकोलॉजी ।

शनि -
जियोलॉजी, पेट्रोकेमिकल इंजीनियरिंग, रिफाइनरी तकनीक, सिविल इंजीनियरिंग, माइनिंग, इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग, सेनेटरी इंजीनियरिंग, लेबर लॉ, इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग।

राहु -
रेडियोलोजी, फोटोग्राफी, स्पेस साइंस, तंत्र विद्या और इसके राशी अधिपति के अनुसार विषय।

केतु -
वेद अध्ययन, ज्योतिष, और विषय केतु के राशी अधिपति के अनुसार

Friday, December 9, 2016

विवाह मुहूर्त विचार


विवाह मुहूर्त विचार
विवाह के माह
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वृश्चिक के सूर्य में कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी से कार्तिक में ,मार्गशीष में ,मकर के सूर्य में पोष तथा माघ में ,कुम्भ के सूर्य में फाल्गुन में ,मेष के सूर्य में चैत्र एवम वैशाख ,ज्येष्ठ और आषाढ़ शुक्ल पक्ष दशमी तक वृषभ मिथुन के सूर्य में विवाह /लग्न करने चाहिए
अन्य आचार्यो के मत अनुसार धनु के सूर्य में मार्गशीर्ष में तथा मीन के सूर्य में फाल्गुन में विवाह कहे गए हे ..यह धनार्क ,मिनार्क समय में गुजरात ,सौराष्ट्र ,कच्छ प्रान्त में विवाह नही लिए जाते और महाराष्ट्र में मार्गशीर्ष ,माघ ,फाल्गुन,वैशाख और ज्येष्ठ माह में विवाह मुहूर्त दिए जाते हे
दक्षिण में धनिष्ठा नवक(वैशाख कृष्ण पक्ष में धनिष्ठा नक्षत्र में चन्द्र प्रवेश से रोहिणी नक्षत्र तन ९ दिन मड़ा पंचक आता हे )प्रवेश से निवृति तक अन्य होलाष्टक में मुहूर्त नही देते
परन्तु खास कर गुरु और शुक्र के अस्त जितने दिन का हो उतने दिन विवाह कार्य के लिए निषिद्ध हे
प्रथम गर्भ से उत्पन्न लड़का जयेष्ठ कहा गया हे और प्रथम गर्भ से उत्पन्न लड़की जयेष्ठा अत:ज्येष्ठ माह में ज्येष्ठ लड़का और लड़की का विवाह नही करना चाहिए

विवाह में वार तिथि
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विवाह मुहूर्त में सभी वार ग्राह्य हे तिथि में कृष्ण पक्ष १३,१४,अमावस्या ,शुक्लपक्ष की प्रतिपदा वर्ज्य हे रिक्त तिथि (४,९,१४ )तिथियो में सामान्य शुभ कार्य त्याज्य होते हे पर विवाह मुहूर्त में माध्यम फलदायक हे अत:रिक्ता तिथि वर्ज्य करनेका कोई कारन नही हे क्षय वृद्धि तिथि त्याज्य हे

विवाह नक्षत्र 

रोहिणी ,मृगशीर्ष ,मघा ,ऊ.फा,हस्त,स्वाति,अनुराधा,मूल,ऊ.षाढा,ऊ.भाद्र,तथा रेवती यह ग्यारह और
अन्य मत अनुसार अश्विनी,चित्रा,श्रवण,धनिष्ठा,यह पन्द्रह नक्षत्र योग्य हे
खास कर क्रूर नक्षत्र में गृह हो एवं जिस नक्षत्र में ग्रहण हुआ हो वह नक्षत्र त्याज्य हे
विष्कुभादी योगो में अशुभ योगो का काल त्याज्य हे
विष्टि,शकुनी ,चतुष्पद ,नाग,और किस्तुघ्न यह पांच करण त्याज्य हे

दिन शुद्धि
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तिथि,वार,नक्षत्र के दोष से होने वाले दघ्ध योग ,मृत्यु,यमघंट,काल्मुखी जेसे अशुभ योग विवाहादि कार्यो में त्याज्य नही हे
सूर्य ,चन्द्र और लग्न तथा नवमांश शुध्धि हो तो शास्त्र नियम अनुसार कोई भी दोष मानने का कारण नही हे गुरु/शुक्र लोप पूर्वे वार्द्यक्य तिन दिन ,एवं दर्शन के बाद बाल्यावस्था के तिन दिन त्याज्य हे

.नक्षत्र दोष अपवाद

मृग,ऊ.फा,चित्रा,ऊ.षाढा,धनिष्ठा,विवाह में यह दो राशि वाले नक्षत्र हे इस नक्षत्र में या कोई दो राशि वाले नक्षत्र में क्रूर गृह हो यद्यपि राशि भिन्न हो तो उस राशी नक्षत्र का भाग लेने में हरकत नही हे ,पाप गृह भुक्त और पाप गृह भोग्य नक्षत्र पर से चन्द्र,सूर्य कोई भी शुभ गृह एक बार पसार हो जाने के बाद उसका दोष हल्का बनता हे

विवाह समय कुंडली लग्न  शुद्धि
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सूर्य ३,६,८ भाव ,चन्द्र २,३,४ भाव मंगल ३,६ भाव गुरु ८,१२ भाव को छोड़कर शुक्र १,२,४,५,९,१० भाव शनि,राहू ,केतु ३,६,८ भाव में शुभ हे ११ भाव में हरेक गृह शुभ हे कोई भी लग्न स्वीकार्य हे सिर्फ नवमांश लग्न शुभ होना चाहिए

अशुभ योग
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लग्न में सूर्य ,१,८,१० भाव में चन्द्र मंगल,अष्टमभाव में शुक्र ,लग्न में शनि राहू केतु ,लग्नेश ६,८ भाव में शुभ नहीं हे सप्तम भाव में कोई भी गृह अशुभ हे ,राहू चतुर्थ भाव और बुध १० भाव में हो तो नही लेना चाहिए

5th house and child astrology

।।स्त्री पुरुष में सन्तानोत्पत्ति क्षमता।।

संतान प्राप्ति के संबंध में सर्वप्रथम स्त्री एवम् पुरुष दोनो की सन्तानोत्पत्ति  क्षमता का विचार करना आवश्यक है ।जिस प्रकार फसल उत्पादन के लिए नमी व उपजाऊ भूमि तथा उत्तम बीज आवश्यक हैं उसी प्रकार स्त्री की कोख को भूमि (क्षेत्र) तथा पुरुष की उत्पादन क्षमता को "बीज" माना जाता है।भूमि और बीज दोनो ही उत्तम हों तो भरपूर फसल होती है परंतु इसके विपरीत भूमि उपजाऊ हो और बीज दोषपूर्ण हो अथवा भूमि अनुपजाऊ हो और बीज उत्तम हो तो बीज का अंकुरण संभव नहीं । इस संबंध में पुरुष में बीज व स्त्री में क्षेत्र की उपयुक्तता को जांचने हेतु प्राचीन ऋषि महर्षियों ने सूत्र प्रतिपादित किया है।

स्त्री का क्षेत्र-
स्त्री के लिए चंद्र गर्भधारण शक्ति एवं आर्द्र भूमि का परिचायक  है ।मंगल रक्त का परिचायक है तथा गुरू संतान प्रदायक है।उपरोक्त तीनो ग्रहों  के
राश्यंशो को जोड़ना है तथा उसी का नवमांश निकाल लें।प्राप्त राश्यंश तथा नवांश सम राशि तथा सम नवांश मे हो तो स्त्री की प्रजनन क्षमता उत्तम होती है।राशि और नवांश में से एक सम तथा एक विषम होने पर मध्यम तथा राशि और नवांश दोनो विषम होने पर स्त्री में प्रजनन क्षमता का अभाव होता है।

पुरुष का बीज-
पुरुषों के लिए सूर्य शक्ति अथवा ओज का , शुक्र वीर्य शुक्राणुओं का तथा गुरु संतान का कारक है उपर्युक्त विधि से तीनों के राश्यंशो का योग करके राशि तथा नवमांश निकाले ।प्राप्त राशि व नवांश दोनो विषम संज्ञक में पड़े तो पुरुष के वीर्य में संतानोत्पादक क्षमता उत्तम होती है।एक विषम व एक सम मे होने पर मध्यम तथा दोनों सम में होने पर संतानोत्पादक क्षमता का अभाव होता है।

जन्म कुंडली में शुक्र जिस स्थान पर बैठा हो उससे छठे आठवें स्थान पर शनि हो तो प्रजनन क्षमता की कमी रहती है किसी शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो इस समस्या से बचाव होता है

Atmakarka- gives the clue for salvation

Atmakarka- gives the clue for salvation


Jaimini astrology has given a beautiful concept of charakarakas to understand the purpose of this birth. Atmakaraka is one that important planet which can give the clue for real desire of an individual.
Atma literally mean SOUL. So atmakaraka signifies the propeller of soul. The planet which attains the highest degree in the chart is designated as ATMAKARKA. Rahu and ketu are not considered in chara karaka categories. So only 7 planets can be your atmakaraka. It's very easy.. you can find yourself.

How to use it. Suppose Sun is your atmakaraka, so you need to overcome your ego to get moksha. Similarly moon  represents emotions, mars- desire, Jupiter- superiority, Venus- relationship, mercury- professionalism and Saturn represents  service. You find your atmakaraka and know what attribute of life you need to overcome to live peacefully.

Relation of 8th house or Lord of 8th House in astrology

प्राय: ज्योतिष में अष्टम भाव को अशुभ भाव के रूप में परिभाषित किया गया है। किसी ग्रह का संबंध अष्टम भाव से होने पर उसके कुफल ही कहे गए हैं लेकिन वास्तविकता ऐसी नहीं है। जितने भी सफल व्यक्ति हुए उनमें से अनेक व्यक्तियों की जन्मपत्रियों में अष्टमेश का संबंध पंचम अथवा लग्न पंचम अथवा लग्न भाव से रहा है। ऐसे योग वाले व्यक्तियों के पास कोई न कोई कला अवश्य रहती है जो उन्हें ईश्वर से उपहार स्वरूप प्राप्त होता है। पंचमेश और अष्टमेश का आपसी का संबंध होने पर आकस्मिक धन प्राप्ति के योग बनते हैं। ऐसे योग में व्यक्ति शेयर मार्केट, सट्टेबाजी अथवा लॉटरी द्वरा धन प्राप्त कर सकता है।
जन्मपत्रिका में अष्टम भाव को मृत्यु का भाव कहा जाता है। मृत्यु का भाव होने के साथ ही यह भाव गूढ़ विद्या तथा अकस्मात धन प्राप्ति का भाव भी कहलाता है। इसके अतिरिक्त अष्टम भाव से आयु निर्णय, मृत्यु का कारण, दुर्गम स्थान में निवास, संकट, पूर्वाजित धन का नष्ट होना, किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति का प्राप्त होना, पूर्वजों से प्राप्त संपत्ति, मन की पीड़ा, मानसिक क्लेश, मृत्यु का कष्टपूर्वक होना, गुप्त विद्या व पारंपरिक विद्याओं में निपुणता, अचानक धनप्राप्ति, लम्बी यात्राएं, विदेश में जाकर नौकरी करना, गड़े खजाने की प्राप्ति, कुएं आदि स्थानों में गिरने से मृत्यु आदि का भी विचार किया जाता है।
अष्टम भाव से त्रिकोण का संबंध उत्तम होता है। अष्टम भाव का लग्न या पंचम भाव से संबंध होने पर व्यक्ति गूढ़ विद्याओं व पारंपरिक विद्याओं को जानने वाला तथा किसी विशेष कला में पारंगत होता है। अष्टमेश द्वाददेश के साथ संबंध बनाते हुए यदि पंचम भाव से युति करे तो व्यक्ति घर से दूर अथवा विदेश में प्रवास कर अध्ययन करता है तथा धनार्जन भी घर से दूर रहकर करता है। ऐसे व्यक्ति का मस्तिष्क बहुत ही कुशाग्र होता है। वह हर तथ्य को बारीकी के साथ सोचता और समझता है। वह ईश्वर की सत्ता को स्वीकार करता है तथा किसी भी प्रकार की समस्या में पड़ने पर अपने धैर्य को नहीं छोड़ता है। अष्टम भाव में विपरीत राजयोग होने पर व्यक्ति निश्चित रूप से अपने कार्य क्षेत्र में उन्नति करता है। अष्टमेश का सबंध नवम भाव से बहुत ही उत्तम होता है। ऐसे व्यक्ति दर्शन के विशेष ज्ञाता होता है। कई बड़े दार्शनिक, संत एवं सन्यासियों की जन्मपत्रिका में इस प्रकार के योग देखे जाते हैं। ऐसे योग में व्यक्ति में पूर्वानुमान की क्षमता बहुत ही दृढ़ होती है। प्रत्येक कार्य करते हुए उसके दूरगामी परिणामों को वह देख लेता है। अष्टम भाव अथवा अष्टमेश का संबंध धन एवं कर्म भाव के साथ होने पर व्यक्ति शीघ्र उन्नति करता है। यह उन्नति किसी प्रकार के हथकंडों को अपनाकर प्राप्त की हुई होती है। जो व्यक्ति अपने जीवन में गलत राह चुनकर उन्नति प्राप्त करते हैं, उनकी जन्मपत्रिका में यह योग देखा जा सकता है। ऐसे योग में व्यक्ति अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर अपनी कुशाग्र गति से येन-केन-प्रकारेण सफलता प्राप्त कर लेता है।
अष्टम भाव अथवा अष्टमेश का लाभ भाव से संबंध आकस्मिक लाभ को दर्शाता है। हालांकि स्वास्थ्य की दृष्टि से यह योग उत्तम नहीं होता है परन्तु आर्थिक दृष्टि से यह योग अत्यंत उत्तम है। व्यक्ति को अनपेक्षित धन की प्राप्ति होती है तथा पूर्वजों से धन प्राप्ति के योग बनते हैं। अष्टम भाव का शेष भावों से संबंध भी शुभ तथा अशुभ दोनों ही परिणाम प्रदान करने वाला होता है। हालांकि स्वास्थ्य की दृष्टि से अष्टमेश का प्रबल होना उत्तम नहीं माना जाता है परन्तु प्रबल अष्टमेश का त्रिकोण भाव से संबंध बनाना मनुष्य को रहस्यमयी बनाता है।
स्त्री की जन्मपत्रिका में अष्टम भाव से उसके होने वाले जीवनसाथी की आयु का विचार किया जाता है। अष्टमेश की दशा-अंतर्दशा उसके जीवन में होने वाले बड़े परिर्वतन को दर्शाती है। इस दशा में उसके विवाह होने के योग भी बनते हैं। इसी भाव से पूर्वजों का भी विचार किया जाता है। पितृदोष का विचार भी इसी भाव से किया जाता है। मनुष्य के पूर्वार्जित कर्मों तथा मनुष्य की आयु का विचार भी इसी भाव से किया जाता है।
सामान्य तौर पर फलकथन में इस भाव के महत्व पर ध्यान नहीं दिया जाता है। जब मनुष्य किसी बड़े दु:ख में पड़ता है तभी अष्टम भाव की तरफ ध्यान जाता है। मनुष्य की उन्नति में इस भाव का बहुत ही महत्व है। यह बहुत ही विचित्र भाव है जो अपने गर्भ में अनेक प्रकार के फलों को समेट कर रखता है। चूंकि जन्मपत्रिका में सभी भावों और भावेशों के आपसी तालमेल से ही किसी व्यक्ति के जीवन में घटित होने वाली घटनाओं का निर्माण होता है। अत: फलादेश कथन में इस भाव के महत्व को .

8th house is the Fortune House of God's Willing.Its lord if situated in the naxatra of 1/5/9 lord-jatak becomes wealthy during favourable gochara n mahadasha.

Thursday, December 8, 2016

Interesting fact about Pushya or Pushyami Constellation - Nakshatra

           🌹पुष्य नक्षत्र से जुड़ी बाते🌹

 सभी नक्षत्रों में पुष्य नक्षत्र को बहुत शुभ माना जाता है। आज हम आपको पुष्य नक्षत्र से जुड़ी ऐसी खास बातें बता रहे हैं, जो बहुत कम लोग जानते हैं। ये हैं पुष्य नक्षत्र से जुड़ी 10 खास बातें।

☉ पुष्य नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग सर्वगुण संपन्न, भाग्यशाली तथा विशेष होते हैं। दिखने में यह सुंदर, स्वस्थ, सामान्य कद-काठी के तथा चरित्र में विद्वान, चपल, स्त्रीप्रिय व बोल-चाल में चतुर होते हैं। इस नक्षत्र में जन्में लोग जनप्रिय और नियम पर चलने वाले होते हैं तथा खनिज पदार्थ, पेट्रोल, कोयला, धातु, पात्र, खनन संबंधी कार्य, कुएं, ट्यूबवेल, जलाशय, समुद्र यात्रा, पेय पदार्थ आदि में क्षेत्रों में सफलता हासिल करते हैं।

☉प्राचीन काल से ही ज्योतिषी 27 नक्षत्रों के आधार पर गणनाएं कर रहे हैं। इनमें से हर एक नक्षत्र का शुभ-अशुभ प्रभाव मनुष्य के जीवन पर पड़ता है। नक्षत्रों के इन क्रम में आठवें स्थान पर पुष्य नक्षत्र को माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, पुष्य नक्षत्र में खरीदी गई कोई भी वस्तु बहुत लंबे समय तक उपयोगी रहती है तथा शुभ फल प्रदान करती है, क्योंकि यह नक्षत्र स्थाई होता है।

☉पुष्य को नत्रक्षों का राजा भी कहा जाता है। यह नक्षत्र सप्ताह के विभिन्न वारों के साथ मिलकर विशेष योग बनाता है। इन सभी का अपना एक विशेष महत्व होता है। रविवार, बुधवार व गुरुवार को आने वाला पुष्य नक्षत्र अत्यधिक शुभ होता है। ऋग्वेद में इसे मंगलकर्ता, वृद्धिकर्ता, आनंद कर्ता एवं शुभ कहा गया है।

☉हिंदू पंचांग के हर महीने में अपने क्रम के अनुसार विभिन्न नक्षत्र चंद्रमा के साथ संयोग करते हैं। जब यह क्रम पूर्ण हो जाता है तो उसे एक चंद्र मास कहते हैं। इस प्रकार हर महीने में पुष्य नक्षत्र का शुभ योग बनता है। दीपावली के पहले आने वाला पुष्य नक्षत्र इसलिए खास माना जाता है, क्योंकि दीपावली के लिए की जाने वाली खरीदी के लिए यह विशेष शुभ होता है जिससे कि जो भी वस्तु इस दिन आप खरीदते हैं वह लंबे समय तक उपयोग में रहती है।

☉नक्षत्रों के संबंध में एक कथा भी हमारे धर्म ग्रंथों में मिलती है। उसके अनुसार ये 27 नक्षत्र भगवान ब्रह्मा के पुत्र दक्ष प्रजापति की 27 कन्याएं हैं, इन सभी का विवाह दक्ष प्रजापति ने चंद्रमा के साथ किया था। चंद्रमा का विभिन्न नक्षत्रों के साथ संयोग पति-पत्नी के निश्चल प्रेम का ही प्रतीक स्वरूप है। इस प्रकार चंद्र वर्ष के अनुसार, महीने में एक दिन चंद्रमा पुष्य नक्षत्र के साथ भी संयोग करता है।

☉पुष्य नक्षत्र के देवता बृहस्पति हैं जो सदैव शुभ कर्मों में प्रवृत्ति करने वाले, ज्ञान वृद्धि एवं विवेक दाता हैं तथा इस नक्षत्र का दिशा प्रतिनिधि शनि हैं जिसे ‘स्थावर’ भी कहते हैं जिसका अर्थ होता है स्थिरता। इसी से इस नक्षत्र में किए गए कार्य चिर स्थायी होते हैं।

☉पुष्य नक्षत्र अपने आप में अत्याधिक प्रभावशील एवं मानव का सहयोगी माना गया है। पुष्य नक्षत्र शरीर के अमाशय, पसलियां व फेफड़ों को विशेष रूप से प्रभावित करता है। पुष्य नक्षत्र शुभ ग्रहों से प्रभावित होकर इन अंगों को दृढ़, पुष्ट तथा निरोगी बनाता है। जब यह नक्षत्र दुष्ट ग्रहों के प्रभाव में होता है तब इन अंगों को बीमार व कमजोर करता है।

☉ हिंदू पंचांग के अनुसार, जब पूर्ण चंद्रमा चित्रा नक्षत्र से संयोग करता है तो उस महीने को हम चैत्र नाम कहते हैं। इसी तरह जब पूर्ण चंद्रमा पुष्य नक्षत्र से संयोग करता है वह मास पौष नाम से जाना जाता है। इस तरह पुष्य नक्षत्र साल के 12 महीनों में से एक का निर्धारण करता है।

☉प्राचीन ज्योतिष ग्रंथों के अनुसार, पुष्य नक्षत्र के सिरे पर बहुत से बारीक तारे हैं जो कांति वृत्त के अत्यधिक समीप हैं। मुख्य रूप से इस नक्षत्र के तीन तारे हैं जो एक तीर (बाण) की आकृति के समान आकाश में दिखाई देते हैं। इसके तीर की नोक कई बारीक तारा समूहों के गुच्छ (पुंज) के रूप में दिखाई देती है।

☉आकाश में इसका गणितीय विस्तार 3 राशि 3 अंश 20 कला से 3 राशि 16 अंश 40 कला तक है। यह नक्षत्र विषुवत रेखा से 18 अंश 9 कला 56 विकला उत्तर में स्थित है। इस नक्षत्र में शिल्प, चित्रकला, पढ़ाई व वाहन खरीदना उत्तम माना जाता है। इसमें मंदिर निर्माण, घर निर्माण आदि काम भी शुभ माने गए हैं।