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Monday, August 7, 2017

Aspect of Rahu and Ketu in Astrology

महर्षि पराशरजी ने राहु केतु की 5_7_9 द्रष्टि गिनी है और यवनाचार्यजी ने 'कूजवत केतु/शनीवत राहु' ऐसा कहा है । केतु की मंगल समान 4_7_8 द्रष्टि/राहु की शनीवत 3_7_10 द्रष्टि गीननी चाहिये ।

JAIMINI ASTROLOGY

JAIMINI ASTROLOGY:

Jaimini astrology is another major branch of Prashara astrology which was lost for 3000 years and was only revived in the 20th century by gurus like Sri Sri K.N. Rao who is considered the best Vedic astrology in the world including the best Jaimini astrologer in the world; but this science never gained as much attention as regular Vedic Astrology until recent years. Sri Rao accounts his understanding and introduction to Jamini astrology through a hidden gem known as "Vemuri Rama Murthy" in Andhra Pradesh, which is described in his book "Jaimini's Chara dasha". Many astrologers who came on my Youtube channel were also experts in Jaimini and always emphasized using both system together side by side to confirm events from the past. This is called composite approach. When looking at a horoscope through aspects of Prashara which are 80% of the whole game, you should also give a quick glance to Jamini aspects including Chara dasha. I have made understanding Jamini aspects very easy through my videos and will do the same in this book.

SRI K N RAO states: It has been customary at the end of an astrological debate, actually a quarrel (these days about Jaimini dashas) -- astrologers come away claiming victory. Starting with a Sanskrit shloka or sutra, a fatuous rhetorical war path, they end up abusing each other. Involved in such quarrels, you find yourself between a precipitous rock and a deep sea. My argument offends them. I asked them how they can claim to know Jaimini astrology without using Karakas. I have said that it is original research, not available anywhere else except in my two deeply researched books on Chara Dasha and Mandook Dasha which I tested and rested before writing them.  To say that you know and do Jaimini astrology without using Karakas is like saying that you do Parashari without using seven grahas  (leaving out Rahu and Ketu).

Jaimini astrology is epic in scale, mythic in symbolism and operates through subtlest hints which are sub-atomic. Imagination is needed to unravel aphorisms. Jaimini astrology is the greatest branch of astrology ever found anywhere in the world, dazzling in its vast range but bafflingly recondite. One lifetime is not sufficient to grasp it. Even with what little one grasps, one begins to give a false impression of being a seer. Instead of quarreling let us arrive at a consensus.

Different types of Astrology Yogas form by Rahu and Ketu

राहु -केतु निर्मित शुभाशुभ योग
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१...अष्ट लक्ष्मी योग ....जन्मांग में राहु छठे स्थान में
और वृहस्पति केंद्र में हो तो अष्ट लक्ष्मी योग बनता
हैं | इस योग के कारण जातक धनवान होता हैं और
उसका जीवन सुख शांति के साथ व्यतीत होता हैं |
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२..मोक्ष योग ...जन्मांग में वृहस्पति और केतु का
युति दृष्टि सम्बन्ध हो तो मोक्ष योग होता हैं |
यदि केतु गुरु की राशी और वृहस्पति उच्च राशी कर्क
में हो तो मोक्ष की सम्भावना बढ़ जाती हैं |
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३..परिभाषा योग ...तीसरे छठे ,दसवे या ग्यारहवे
भाव में राहु शुभ होकर स्थित हो तो परिभाषा
योग का निर्माण करता हैं | ऐसा राहु जातक को
कई प्रकार की परेशानियों से बचा लेता हैं | इनमे
स्थित राहु दुसरे ग्रहों के अशुभ प्रभाव को भी कम
करता हैं |
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४..अरिष्ट भंग योग ..मेष ,वृष या कर्क लग्न में राहु
नवम ,दशम या एकादश भाव में स्थित हो तो अरिष्ट
भंग योग बनता हैं जो अपने नाम के अनुसार ही कई
प्रकार के अरिष्टो का नाश करता हैं |
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५...लग्न कारक योग ...यदि लग्नेश अपनी उच्च राशी
या स्वराशी में हो और राहु लग्नेश की राशी में
स्थित हो तो लग्न कारक योग बनता हैं | यह योग
भी जातक को शुभ फल प्रदान करता हैं |
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६..कपट योग ...जन्मांग में चौथे भाव में शनि और
बारहवे भाव में राहु हो तो कपट योग बनता हैं | ऐसे
जातक पर विश्वास सोच समझकर करना चाहिए |
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७..पिशाच योग ..लग्न में चन्द्र और राहु स्थित हो
तो पिशाच योग बनता हैं | ऐसे जातको को नजर
दोष ,तंत्र कर्म ,उपरी बाधा के कारण परेशानी
होती हैं | इन्हे योग्य ज्योतिषाचार्य का परामर्श
अवश्य समय रहते प्राप्त कर लेना चाहिए |
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८..काल सर्प योग ..जब राहु और केतु के मध्य सभी
ग्रह आ जाये तो काल सर्प योग बनता हैं | यह योग
ज्यादातर कष्ट कारक होता हैं | २० प्रतिशत यह
योग विशेष ग्रह स्थितियों के कारण शुभ फल भी
देता हैं |
.
९..राहु और चन्द्र की युति से चन्द्र ग्रहण होने पर
चन्द्र मन और कल्पना का कारक होकर पीड़ित
होता हैं | तब जातक का मन किसी कार्य में नही
लगेगा तो पतन निश्चित हैं |ऐसे जातक मानसिक रोग
,पागलपन के शिकार भी होते हैं | सूर्य ग्रहण होने पर
जातक आत्मिक रूप से परेशां रहता हैं |जातक को
राजकीय सेवा में परेशानी रहती हैं और जातक को
पिता की तरफ से भी परेशानी रहती हैं .
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६. मंगल राहु का योग होने पर जातक की तर्क शक्ति
प्रभावित रहती हैं- ऐसा जातक आलसी भी होता
हैं जिससे प्रगति नही कर पाता | ऐसा जातक हिंसक
भी होता हैं |अपने क्रोध पर ये नियंत्रण नही कर
पाते| इनमे वासना भी अधिक रहती हैं |
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७.बुध राहु का योग होने पर जड़त्व योग का निर्माण
होता हैं | यदि बुध कमजोर भी हो तो बोध्धिक
कमजोरी के कारण प्रगति नही कर पायेगा |इस योग
वाला जातक सनकी ,चालाक होता हैं कई बार ऐसे
जातक भयंकर बीमारी से भी पीड़ित रहते हैं |
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८. गुरु राहू का योग होने पर चांडाल योग का
निर्माण होता हैं |गुरु ज्ञान और पुण्य का कारक हैं
यदि जातक शुभ प्रारब्ध के कारण सक्षम होगा तो
अज्ञान और पाप प्रभाव के कारण शुभ प्रारब्ध के
फल को स्थिर नही रख पायेगा |जातक में सात्विक
भावना में कमी आ जाती हैं |
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९.शुक्र राहू योग से अमोत्वक योग का निर्माण
होता हैं | शुक्र को प्रेम और लक्ष्मी का कारक
माना जाता हैं |प्रेम में कमी और लक्ष्मी की कमी
सभी असफलताओ का मूल हैं |ऐसे जातक में
चारित्रिक दोष भी रहता हैं
.
१०.शनि राहू योग से नंदी योग बनता हैं शनि राहू
दोनों पृथकता करक ग्रह हैं | इसीलिए इनका प्रभाव जातक को निराशा की और ले जायेगा |

Rahu and Ketu in Astrology

विष्णु_राहु_केतु:::::पुराण कथा अनुसार भगवान विष्णु ने सूर्य चंद्र के इशारे पर राहु पर सुदर्शन चक्र का वार कर उनके शरीर को दो भागों मे विभक्त किया.विष्णु कथा का तात्पर्य ज्योतिष शास्त्र से है.(1)भगवान विष्णु का ऐक नाम 'ज्योतिष'है.ज्योतिषी विष्णु स्वरूप हि है.(2) सूर्य याने पित्रु_पिता कि कृपा से हमे शरीर प्राप्त होता है.(3)चंद्र याने माता कि  कृपा से हमारा शरीर बंधारण प्राप्त करता है.(4)राहु सिर्फ मस्तिष्क को इँगित करता है अर्थात मन का प्रतिनिधित्व करता है (5)केतु सिर्फ धड़ को_यानी सिर्फ शरीर यानी जन्मकुंडली के लग्न का प्रतिनिधित्व करता है.(6)सुदर्शन याने ठीक से देखना(7)महर्षि पराशर आदीने लग्न ऐवम चन्द्र कुन्डली दोनो को देखने का सूचन किया है.(8)जन्मलग्न कुन्डली से शरीर कि अवस्था_जन्मचन्द्र कुन्डली से मन कि अवस्था देखी जाती है.(9)हरेक विष्णु स्वरूप ज्योतिषी को लग्न कुन्डली का निरीक्षण करते समय सूर्य-लग्न-लग्नेष-केतु को ध्यान मे लेना चाहीये.(10) चन्द्र कुन्डली के निरीक्षण वक्त चन्द्र-चंद्रेश-राहु को ध्यान मे लेना चाहिये(11)मे ऊन दिव्यद्रष्टा भगवन वेद व्यास जी को आदरपूर्वक नमस्कार करता हूँ जिन्होंने ज्योतिषशास्त्र के गूढ़ रहस्य को कथा मे पिरोया ।

Lines on Forehead and Astrology

ललाट की रेखाएं

हाथ की रेखाओं के अतिरिक्त आपके मस्तक की रेखाएं भी बहुत कुछ बोलती हैं। यह बात अलग है कि सामान्य तौर पर इन्हें नजर अंदाज कर दिया जाता है। अगर हाथ की रेखाओं के साथ मस्तिष्क(ललाट) रेखाओं का भी अध्ययन कर लिया जाए तो भविष्य जानने में और भी आसानी रहती है,तथा प्रामाणिकता भी असंदिग्ध रहती है। इसकी पहचान निम्न प्रकार से है।
1- ललाट में बालों के नीचे जो पहली रेखा है वह शनि रेखा है।
2-इसके नीचे वाली रेखा गुरु रेखा है।
3-तीसरी रेखा मंगल रेखा है।
4- चौथी रेखा का स्वामी सूर्य है जो मान-सम्मान और यश प्रदान करता है।
5-मस्तक की पांचवीं रेखा का स्वामी शुक्र है जो आपको जीवन के सारे सुख उपलब्ध कराता है।
6- छठी रेखा के स्वामी बुध हैं।
7- सातवीं रेखा जो इन सबके नीचे है ,वह चंद्र का स्थान है।
इन रेखाओं के अतिरिक्त दाहिने नेत्र के ऊपरी भाग में उठी हुई एक छोटी सी रेखा सूर्य रेखा कही जाती है और बाईं तरफ ऐसी ही रेखा चंद्र रेखा कही जाती है।
शनि रेखा- यदि शनि रेखा सीधी हो तो व्यक्ति बुद्धिमान होता है और अगर यह टेढ़ी-मेढ़ी हो तो चिड़चिड़े स्वभाव का होता है।
गुरु रेखा-यदि यह सीधी हो तो जातक ईमानदार होता है परंतु टेढ़ी या टूटी हो तो वह अनैतिक कार्य करने वाला होता है।
मंगल रेखा- यदि यह रेखा सीधी है तो व्यक्ति को सभी क्षेत्रों में सफलता मिलती है ,परंतु टेढी-मेढ़ी हो तो हर काम में असफलता का सामना करना पड़ता है।
सूर्य रेखा-यदि यह रेखा सीधी हो तो व्यक्ति बुद्धिमान तथा जीवन में सफलता प्राप्त करने वाला होता है। यदि यह टेढ़ी हो तो लोभी और कंजूस होता है।
चंद्र रेखा- यह रेखा सीधी है तो जातक बुद्धिमान,चतुर तथा सूक्ष्मदर्शी होता है,परंतु टेढ़ी-मेढ़ी हो तो कमजोर दिमाग वाला माना जाता है।
शुक्र रेखा-यह रेखा सीधी हो तो जातक सत्य पथ पर चलने वाला तथा समस्त प्रकार के सुखों को भोगने वाला होता है। इसके विपरीत रेखा छिन्न-भिन्न हो तो प्रेम के क्षेत्र में बदनाम होता है।
बुध रेखा- यदि बुध रेखा सीधी है तो व्यक्ति सफल भाषण देने वाला और सामने वाले को प्रभावित करने वाला होता है। यह रेखा टेढ़ी हो तो वह असत्यवादी तथा धोखेबाज होता है।
*अन्य चिन्ह*
1-ललाट में त्रिशूल है तो व्यक्ति दीर्घायु होता है।
2- जिसके ललाट में सीप जैसा चिन्ह होता है वह अध्यापक तथा आदर्श व्यक्ति होता है।
3- ललाट पर नीली नसें दिखती हों तो वह व्यक्ति खोटी नीयत वाला होता है तथा भरोसेमंद नहीं होता।
4-मस्तक पर स्वास्तिक के चिन्ह वाले करोड़पति होते हैं।
5- छोटी ललाट वाले लोग मंदबुद्धि व धनहीन होते हैं।
6-ऊंचे मस्तक वाले राजा के समान जीवन व्यतीत करते हैं।
7- गोलाकार ललाट वाले कंजूस होते हैं।
8- जिनके माथे पर अर्द्धचंद्र हो वे प्रसिद्ध उद्योगपति होते हैं।
9- माथे पर वज्र या धनुष का चिन्ह स्पष्ट दिखाई दे तो व्यक्ति अतुल संपत्ति का स्वामी होता है।
10- त्रिशूल व शंख के चिन्ह वाला व्यक्ति अत्यंत सौभाग्यशाली होता हैं।।

Malefic planet in Astrology

नवम में यदि पाप ग्रह हो तो व्यक्ति भाग्यशाली होता है.किन्तु नवमेश पर पाप,शत्रु,अथवा नीच ग्रह की दृष्ट हो तो जातक बहुत कष्टदायी जीवन  जीता है..लेकिन  इसमें शर्त है कि यह स्तिथि छठे भाव  में हो.
ऐसे ही एक और योग...चतुर्थेश नवमेश के साथ छठे होने पर व्यक्ति का पिता रसिक व चरित्रहीन तक होता है.
व्यक्ति का दशम भाव की राशि पिता की कुण्डली में भी यही राशि हो तो  व्यक्ति पितृ भक्त तथा आज्ञाकारी होता है.

Moon and Ketu Conjunction in Astrology

What happens when ketu moon conjucts or aspects in vaidic astrology

Moon is  mind ,mental tendacy, piece of mind as natural 4th lord  emotion sensitive nd benific planet

Ketu is planet of spirituality , intuition, isolation , separative mindless nd malefic planet

Whenever both planets are in conjuction mind becomes detached native becomes isolated and absent minded Becoz Ketu absorbs moon's energy and ketu is planet of detachment nd isolation

Ketu is mindless planet nd keeps native wandering  all of a sudden native changes because of good or bad experience

Ketu has tendency to make native do  something that is out of box

As ketu is separative planet so any planet is under ketu has to bear isolation even if the  ascendent lord is with ketu  native has to bear isolation

ketu with moon its very difficult to handle situation  to native because moon is fluctuating planet
Ketu can give insomnia to native lack of sleep nd piece of mind as moon is natural 4th Lord  and 4th house is piece of mind

Plus point is ketu is intuitive and  moon is mind so this kind native is sharp minded

Rahu from opposite aspect gives tendacy of illusion and at the same time  ketu gives detachment tendacy thats  why it's very difficult to understand such native

If Saturn has influence to this conjuction then native may have anxiety nd Depressions sort of fear disinterest with life nd makes native  psychic

If lagna lord nd 12th house is influencing this conjuction then the native is 101% under salvation/ moksha

Overall this conjunction is not good in 1st nd 7th axis.

Interesting information about Retro planets

Some knowledge about Retro planets

Retro planets indicates psychic process not manageable by conscious ego.

However, it can be managed through enormous efforts.

General Information about Planet in Retro in birth chart>>>>>>>>>>>>>>>>

Mercury
#Tends to think in form of symbols and insights; Prefers Reflective analysis
#Mind works more on Sub conscious level
#Profound, Creative and discovering possibilities
#Worthy to listen to such people
#Whatever they say may not apply to matter at hand but is ultimately correct

Venus
#Do not find enjoyment in things which most people like
#Likes things which most people dislike
#Finds hard to adjust to social condition
#Unconventional love expression;Attracted to people who take advantage of them
#Have idealistic image for love,sex and marriage

Mars
#Stubborn and unyielding physical force
#Rebels against their own desires; Outside Calm , inside Volcano eruption
#Often stop in the middle of the project to recapitulate
#Good at planning and organising - make good doctors and scientist
#Sub consciously seek for excuse if they fail in project they handle

Jupiter
#Unique ability in handling project which others have abandoned; An Eye for quality
#Find success in failure of others;Revive failed project
#Predict disaster where other see success and vice versa
#Uses subtle psychological warfare method to achieve material goal
#They usually become surprised when failed project convert into successful one

Saturn
#Have strong sense that fate will control destiny
#Lacks self assertion, alone,usually shy and introverted and misunderstood
#Impression that nothing could surprise them
#Change job, Old soul, handle responsibility early,dissatistication in career
#Find security in intellectual and spiritual matters

#Sharing knowledge from "Retrograde Planet "by Grace Inglis

Moon Astrology - Moon in Different Houses - Remedy for Moon

जानिए आपकी कुंडली में चन्द्रमा का प्रभाव,महत्त्व और फल तथा उपाय —

ऋग्वे द में कहा गया है कि ‘चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत:।‘ 

अर्थात चंद्रमा जातक के मन का स्वामी होता है। मन का स्वा मी होने के कारण यदि जन्म कुंडली में चंद्रमा की स्थिति ठीक न हो या वह दोषपूर्ण स्थिति में हो तो जातक को मनऔर मस्तिष्क से संबंधी परेशानियां होती हैं। चन्द्रमा मां का सूचक है और मन का कारक है | इसकी राशि कर्क होती हैं |

भारत में प्रत्येक जन्मपत्री में दो लग्न बनाये जाते हैं। एक जन्म लग्न और दूसरा चन्द्र लग्न। जन्म लग्न को देह समझा जाये तो चन्द्र लग्न मन है। बिना मन के देह का कोई अस्तित्व नहीं होता और बिना देह के मन का कोई स्थान नहीं  है। देह और मन हर प्राणी के लिए आवश्यक है इसीलिये लग्न और चन्द्र दोनों की स्थिति देखना ज्योतिष शास्त्र में बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। सूर्य लग्न का अपना महत्व है। वह आत्मा की स्थिति को दर्शाता है। मन और देह दोनों का विनाश हो जाता है परन्तु आत्मा अमर है।

 

चन्द्र ग्रहों में सबसे छोटा ग्रह है। परन्तु इसकी गति ग्रहों में सबसे अधिक है। शनि एक राशि को पार करने के लिए ढ़ाई वर्ष लेता है, बृहस्पति लगभग एक वर्ष, राहू लगभग 18 महीने और चन्द्रमा सवा दो दिन – कितना अंतर है। चन्द्रमा की तीव्र गति और इसके प्रभावशाली होने के कारण किस समय क्या घटना होगी, चन्द्र से ही पता चलता है।  विंशोत्तरी दशा, योगिनी दशा, अष्टोतरी दशा आदि यह सभी दशाएं चन्द्र की गति से ही बनती है।  चन्द्र जिस नक्षत्र के स्वामी से ही दशा का आरम्भ होता है। 

अश्विनी नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक की दशा केतु से आरम्भ होती है क्योंकि अश्विनी नक्षत्र का स्वामी केतु है। इस प्रकार जब चन्द्र भरणी नक्षत्र में हो तो व्यक्ति शुक्र दशा से अपना जीवन आरम्भ करता है क्योंकि भरणी नक्षत्र का स्वामी शुक्र है। अशुभ और शुभ समय को देखने के लिए दशा, अन्तर्दशा और प्रत्यंतर दशा देखी जाती है। यह सब चन्द्र से ही निकाली जाती है। 

ग्रहों की स्थिति  निरंतर हर समय बदलती  रहती है। ग्रहों की बदलती स्थिति का प्रभाव विशेषकर चन्द्र कुंडली से ही देखा जाता है। जैसे शनि चलत में चन्द्र से तीसरे, छठे और ग्यारहवें भाव में हो तो शुभ फल देता है और दुसरे भावों में हानिकारक होता है। बृहस्पति चलत में चन्द्र लग्न से दूसरे, पाँचवे, सातवें, नौवें और ग्यारहवें भाव में शुभ फल देता है और दूसरे भावों में इसका फल शुभ नहीं होता। इसी प्रकार सब ग्रहों का चलत में शुभ या अशुभ फल देखना के लिए चन्द्र लग्न ही देखा जाता है। कई योग ऐसे होते हैं तो चन्द्र की स्थिति से बनते हैं और उनका फल बहुत प्रभावित होता है।

चन्द्र से अगर शुभ ग्रह छः, सात और आठ राशि में हो तो यह एक बहुत ही शुभ स्थिति है।  शुभ ग्रह शुक्र, बुध और बृहस्पति माने जाते हैं।  यह योग मनुष्य जीवन सुखी, ऐश्वर्या वस्तुओं से भरपूर, शत्रुओं पर विजयी , स्वास्थ्य, लम्बी आयु कई प्रकार से सुखी बनाता है। 

जब चन्द्र से कोई भी शुभ ग्रह जैसे शुक्र, बृहस्पति और बुध दसवें भाव में हो तो व्यक्ति दीर्घायु, धनवान और परिवार सहित हर प्रकार से सुखी होता है।चन्द्र  से कोई भी ग्रह जब दूसरे या बारहवें भाव में न हो तो वह अशुभ होता है। अगर किसी भी शुभ ग्रह की दृष्टि चन्द्र पर न हो तो वह बहुत ही अशुभ होता है। 

इस प्रकार से चन्द्र की स्थिति से 108 योग बनते हैं और वह चन्द्र लग्न से ही बहुत ही आसानी के साथ देखे जा सकते हैं।

चन्द्र का प्रभाव पृथ्वी, उस पर रहने वाले प्राणियों और पृथ्वी के दूसरे पदार्थों पर बहुत ही प्रभावशाली होता है। चन्द्र के कारण ही समुद्र मैं ज्वारभाटा उत्पन्न होता है। समुद्र पर पूर्णिमा और अमावस्या को 24 घंटे में एक बार चन्द्र का प्रभाव देखने को मिलता है। किस प्रकार से चन्द्र सागर के पानी को ऊपर ले जाता है और फिर नीचे ले आता है।  तिथि बदलने के साथ-साथ सागर का उतार चढ़ाव भी बदलता  रहता है। 

प्रत्येक व्यक्ति में 60 प्रतिशत से अधिक पानी होता है। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है चन्द्र के बदलने का व्यक्ति पर कितना प्रभाव पड़ता होगा।  चन्द्र के बदलने के साथ-साथ किसी पागल व्यक्ति की स्थिति को देख कर इस बात का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।

चन्द्र साँस की नाड़ी और शरीर में खून का कारक है। चन्द्र की अशुभ स्थिति से व्यक्ति को दमा भी हो सकता है।  दमे के लिए वास्तव में वायु की तीनों राशियाँ मिथुन, तुला और कुम्भ इन पर अशुभ ग्रहों की दृष्टि, राहु और केतु का चन्द्र संपर्क, बुध और चन्द्र की स्थिति यह सब देखने के पश्चात ही निर्णय लिया जा सकता है।

चन्द्र माता का कारक है। चन्द्र और सूर्य दोनों राजयोग के कारक होते हैं। इनकी स्थिति शुभ होने से अच्छे पद की प्राप्ति होती है। चन्द्र जब धनी बनाने पर आये तो इसका कोई मुकाबला नहीं कर सकता।

चन्द्र खाने-पीने के विषय में बहुत प्रभावशाली है। अगर चन्द्र की स्थिति ख़राब हो जाये  तो व्यक्ति कई नशीली वस्तुओं का सेवन करने लगता है। 

जातक पारिजात के आठवें अध्याय के 100वे श्लोक में लिखा है चन्द्र उच्च का वृष राशि का हो तो व व्यक्ति मीठे पदार्थ खाने का इच्छुक होता है।  जातक पारिजात के अध्याय ६, श्लोक ८१ में  लिखा है कि चन्द्र खाने-पीने की आदतों पर प्रभाव डालता है।  इसी प्रकार बृहत् पराशर होरा के अध्याय ५७ श्लोक ४८ में लिखा है कि अगर चन्द्र की स्थिति निर्बल हो तो शनि की अंतरदशा में व्यक्ति को समय से खाना नहीं मिलता।

किसी भी कुंडली में चंद्र अशुभ होने पर माता को किसी भी प्रकार का कष्ट या स्वास्थ्य को खतरा होता है, दूध देने वाले पशु की मृत्यु हो जाती है | स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है. घर में पानी की कमी आ जाती है या नलकूप, कुएं आदि सूख जाते हैं | इसके प्रभाव से मानसिक तनाव, मन में घबराहट, मन में तरह तरह की शंका और सर्दी बनी रहती है. व्यक्ति के मन में आत्महत्या करने के विचार भी बार-बार आते रहते हैं ||

अगर मन अच्छा है, मनोबल ऊँचा है तब व्यक्ति के भीतर आत्मविश्वास भी बढ़ता है और वह विपरीत परिस्थितियो में भी डटा रहता है लेकिन यदि किसी व्यक्ति का मन कमजोर है या वह बहुत जल्दी परेशान हो जाता है इसका अर्थ है कि कुण्डली में उसका चंद्रमा कमजोर अवस्था में है || आज हम कमजोर चंद्रमा की बात करेगें. चंद्रमा जब कुंडली के 6,8 या 12वें भाव में अकेला स्थित होता है तब कमजोर हो जाता है. व्यक्ति का मन हमेशा अशांत रहता है ||ग्रहों में चंद्रमा को स्त्री स्वरूप माना गया है। भगवान शिव ने चंद्रमा को मस्तक पर धारण किया हुआ है, इसलिए भगवान शिव को चंद्रमा का देवता कहा गया है। जिस प्रकार सूर्य हमारे व्यक्तित्व को आकर्षक बनाते हैं, उसी प्रकार चंद्रमा हमारे मन को मजबूत करते हैं। चंद्रमा हमारे मन का कारक है। चंद्रमा हमारी माता का भी कारक है। जिनकी कुंडली में चंद्रमा उच्च का होता है, उनको अपनी मां का भरपूर प्यार मिलता है। जिनकी कुंडली में चंद्रमा दूर होता है, उनको मां का प्यार उतना नहीं मिल पाता। जिसकी कुंडली में चंद्रमा अच्छा होता है, उसको बलवान कुंडली माना जाता है। चंद्रमा की उच्च स्थिति मन में सकारात्मक विचारों का प्रवाह करती है। ऐसे जातक जो भी कार्य करने की ठान लेते हैं, उसको सफलतापूर्वक सम्पादित करके ही दम लेते हैं। जिनकी कुंडली का स्वामी चंद्र होता है, उनकी कल्पनाशक्ति गजब की होती है।

जिस प्रकार सूर्य का प्रभाव आत्मा पर पूरा पड़ता है, ठीक उसी प्रकार चन्द्रमा का भी मनुष्य पर प्रभाव पड़ता है. खगोलवेत्ता ज्योतिष काल से यह मानते आ रहे हैं कि ग्रह तथा उपग्रह मानव जीवन पर पल-पल पर प्रभाव डालते हैं. जगत की भौतिक परिस्थिति पर भी चंद्रमा का प्रभाव होता है || 

चंद्रमा का घटता बढ़ता आकार जिस प्रकार पृथ्‍वी पर समुद्र में ज्वार भाटा का कारक बनता है उसी प्रकार इसका प्रभाव मनुष्‍य के तन और मन पर भी पड़ता है | चन्द्रमा जैसे-जैसे कृष्ण पक्ष में छोटा व शुक्ल पक्ष में पूर्ण होता है वैसे-वैसे मनुष्य के मन पर भी चन्द्र का प्रभाव पड़ता है | सूर्य के बाद धरती के उपग्रह चन्द्र का प्रभाव धरती पर पूर्णिमा के दिन सबसे ज्यादा रहता है। जिस तरह मंगल के प्रभाव से समुद्र में मूंगे की पहाड़ियां बन जाती हैं और लोगों का खून दौड़ने लगता है उसी तरह चन्द्र से समुद्र में ज्वार-भाटा उत्पत्न होने लगता है। 

जितने भी दूध वाले वृक्ष हैं सभी चन्द्र के कारण उत्पन्न हैं। चन्द्रमा बीज, औषधि, जल, मोती, दूध, अश्व और मन पर राज करता है। लोगों की बेचैनी और शांति का कारण भी चन्द्रमा है। 

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क्या है चंद्रमा के प्रभाव आपकी कुंडली में—

कुंडली में चंद्रमा की स्थिति और उस पर दूसरे ग्रहों के प्रभावों के आधार पर इस बात की गणना करना बहुत आसान हो जाता है कि मनुष्य की मानसिक स्थिति कैसी रहेगी। अपने ज्योेतिषीय अनुभव में कई बार यह देखा है कि कुंडली में चंद्र का उच्च या नीच होना व्यक्ति के स्वा्भाव और स्वपरूप में साफ दिखाई देता है।

कुछ जन्म कुंडलियां  जिनमें चंद्रमा के पीडित या नीच होने पर जातक को कई परेशानियां हो रही थीं-

1- सिर दर्द व मस्तिष्क पीडा- जन्म कुंडली में अगर  चंद्र 11, 12, 1,2 भाव में नीच का होऔर पाप प्रभाव में हो, या सूर्य अथवा राहु के साथ हो तो मस्तिष्क पीडा रहती हैं । इस  जातक  को 28  वे वर्ष में मस्तिष्क पीडा शुरु हुई थी, जो कि 7 साल तक रही । इस दौरान जातक ने अनेक उपाय करवाये ।

2- डिप्रेशन या तनाव- चंद्र जन्म कुंडली में 6, 8, 12 स्थान में शनि के साथ हो । शनि का प्रभाव दीर्घ अवधी तक फल देने वाला माना जाता हैं, तथा चंद्र और शनि का मिलन उस घातक विष के समान प्रभाव रखने वाला होता हैं जो धीरे धीरे करके मारता हैं। शनि नशो(Puls) का कारक होता हैं, इन दोनो ग्रहो का अशुभ स्थान पर मिलन परिणाम डिप्रेशन व तनाव उतपन्न करता हैं ।

3- भय व घबराहट (Phobia)- चंद्र व चतुर्थ भाव का मालिक अष्टम स्थान में हो, लग्नेश निर्बल हो तथा चतुर्थ स्थान में मंगल,केतु, व्ययेश, तृतियेश तथा अष्टमेश में से किन्ही दो ग्रह या ज्यादा का प्रभाव चतुर्थ स्थान में हो तो इस भयानक दोष का प्रभाव व्यक्ति को दंश की तरह चुभता रहता हैं। चतुर्थ स्थान हमारी आत्मा या चित का प्रतिनिधित्व करता हैं, ऐसे में इस स्थान के पाप प्रभाव में होने पर उसका प्रभाव सीधे सीधे हमारे मन व आत्मा पर पडता हैं ।

4- मिर्गी के दौरे-चंद्र राहु या केतु के साथ हो तथा लग्न में कोई वक्री ग्रह स्थित हो तो मिर्गी के दौरे पडते हैं।

5- पागलपन या बेहोशी- चतुर्थ भाव का मालिक  तथा लग्नेश पीडित हो या पापी ग्रहो के प्रभाव में हो,  चंद्रमा सूर्य के निकट हो तो पागलपन या मुर्छा के योग बनते हैं। इस योग में मन  व बुद्धि को नियंत्रित करने वाले सभी कारक पीडित होते हैं । चंद्र, लग्न, व चतुर्थेश इन पर पापी प्रभाव का अर्थ हैं व्यक्ति को मानसिक रोग होना। लग्न को सबसे शुभ स्थान माना गया हैं परन्तु इस स्थान में किसी ग्रह के पाप प्रभाव में होने से उस ग्रह के कारक में हानी दोगुणे प्रभाव से होती हैं ।

 6- आत्महत्या के प्रयास – अष्टमेश व लग्नेश वक्री या पाप प्रभाव में हो तथा चंद्र के तृतिय स्थान में होने से व्यक्ति बार बार अपने को हानि पहुंचाने की कोशिश करता हैं । या फिर तृतियेश व लग्नेश शत्रु ग्रह हो, अष्टम स्थान में चंद अष्टथमेश के साथ होतो जन्म कुंडली में आत्म हत्या के योग बनते हैं । कुछ ऐसे ही योग हिटलर की पत्रिका में भी थे जिनकी वजह से उसने आत्मदाह किया।

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कुंडली के बारह भावों में चंद्रमा का फल—-

1. पहले लग्न में चंद्रमा हो तो जातक बलवान, ऐश्वर्यशाली, सुखी, व्यवसायी, गायन वाद्य प्रिय एवं स्थूल शरीर का होता है.  

2. दूसरे भाव में चंद्रमा हो तो जातक मधुरभाषी, सुंदर, भोगी, परदेशवासी, सहनशील एवं शांति प्रिय होता है. 

3. तीसरे भाव में अगर चंद्रमा हो तो जातक पराक्रम से धन प्राप्ति, धार्मिक, यशस्वी, प्रसन्न, आस्तिक एवं मधुरभाषी होता है.

4. चौथे भाव में हो तो जातक दानी, मानी, सुखी, उदार, रोगरहित, विवाह के पश्चात कन्या संततिवान, सदाचारी, सट्टे से धन कमाने वाला एवं क्षमाशील होता है.  

5. लग्न के पांचवें भाव में चंद्र हो तो जातक शुद्ध बुद्धि, चंचल, सदाचारी, क्षमावान तथा शौकीन होता है. 

6. लग्न के छठे भाव में चंद्रमा होने से जातक कफ रोगी, नेत्र रोगी, अल्पायु, आसक्त, व्ययी होता है. 

7. चंद्रमा सातवें स्थान में होने से जातक सभ्य, धैर्यवान, नेता, विचारक, प्रवासी, जलयात्रा करने वाला, अभिमानी, व्यापारी, वकील एवं स्फूर्तिवान होता है. 

8. आठवें भाव में चंद्रमा होने से जातक विकारग्रस्त, कामी, व्यापार से लाभ वाला, वाचाल, स्वाभिमानी, बंधन से दुखी होने वाला एवं ईर्ष्यालु होता है. 

9. नौंवे भाव में चंद्रमा होने से जातक संतति, संपत्तिवान, धर्मात्मा, कार्यशील, प्रवास प्रिय, न्यायी, विद्वान एवं साहसी होता है. 

10. दसवें भाव में चंद्रमा होने से जातक कार्यकुशल, दयालु, निर्मल बुद्धि, व्यापारी, यशस्वी, संतोषी एवं लोकहितैषी होता है.

11. लग्न के ग्यारहवें भाव में चंद्रमा होने से जातक चंचल बुद्धि, गुणी, संतति एवं संपत्ति से युक्त, यशस्वी, दीर्घायु, परदेशप्रिय एवं राज्यकार्य में दक्ष होता है. 

12. लग्न के बारहवें भाव में चंद्रमा होने से जातक नेत्र रोगी, कफ रोगी, क्रोधी, एकांत प्रिय, चिंतनशील, मृदुभाषी एवं अधिक व्यय करने वाला होता है.  

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चंद्रमा का विभिन्न भावों में फल, दोष और निवारण —

चन्द्र का पहले भाव में फल—

सामान्य तौर पर कुण्डली का पहला घर मंगल और सूर्य के प्रभाव के अंतर्गत आता है. जब चंद्रमा यहां स्थित हो तो यह भाव मंगल, सूर्य और चंद्रमा के संयुक्त प्रभाव में होगा. ये तीनों आपस में मित्र हैं और तीनो यहां की स्थिति के अनुसार परिणाम देंगे. सूर्य और मंगल इस घर में स्थित चंद्रमा को पूर्ण सहयोग देंगे. ऐसा जातक रहमदिल होगा और उसके भीतर उसकी मां के सभी लक्षण और गुण मौजूद होंगे. वह या तो भाइयों में बडा होगा या फिर उसके साथ ऐसा बर्ताव किया जाता होगा. जातक पर उसकी मां का आशिर्वाद हमेशा रहता है साथ ही वह अपनी मां को प्रसन्न रखता है ऐसा करने से वह उन्नति करता है और उसे हर प्रकार से समृद्धि मिलती है. बुध से सम्बंधित चीजें और रिश्तेदार जैसे साली और हरा रंग आदि जो चंद्रमा के लिए हानिकार है, जातक के लिए भी प्रतिकूल प्रभाव साबित होगें इसलिए बेहतर है उन लोगों से दूर रहें. दूध से खोया बनाना या लाभ के लिए दूध बेचना आदि कृत्य पहले भाव में स्थित चंद्रमा को कमजोर करते हैं इसका मतलब यदि जातक स्वयं भी इस प्रकार के कामों सें संलग्न होता है तो जातक का जीवन और सम्पत्ति नष्ट होने लगती है. ऐसे में जातक को दूध और पानी मुफ्त में बांटना चाहिए इससे आयु बढती और चारो ओर से समृद्धि आती है. ऐसा करने से जातक को 90 साल की दीर्घायु मिलती है और उसे सरकार से सम्मान और प्रसिद्धि मिलती है. 

उपाय:

1. 24 से 27 वर्ष की आयु के मध्य शादी नहीं करनी चाहिए, या तो 24 साल के पहले अथवा 27 साल के बाद ही शादी करनी चाहिए.

2. 24 से 27 वर्ष की आयु के मध्य अपनी कमाई से घर का निर्माण नहीं करना चाहिए.

3. हरे रंग और पत्नी की बहन अर्थात शाली से दूर रहना चाहिए.

4. घर में टोटी के साथ एक चांदी के बर्तन या केतली न रखें.

5. यथा सम्भव बरगद की जड़ में पानी डालें.

6. चारपाई के चारों पायों में तांबें की कीलें ठोके.

7. अपने बच्चों के कल्याण के लिए जब भी एक नदी पार करें, हमेशा उसमें एक सिक्का डालें.

8. हमेशा अपने घर में चांदी की एक थाली रखें.

9. पानी या दूध पीने के लिए हमेशा चांदी के बर्तन का प्रयोग करें, कांच के बने बर्तन के उपयोग से बचें.

चन्द्र का दूसरे भाव में फल—-

दूसरे भाव चंद्रमा स्थित होने पर वह भाव बृहस्पति, शुक्र और चंद्रमा के प्रभाव में होगा. क्योंकि दूसरा घर बृहस्पति का पक्का घर होता है और दूसरी राशि बृषभ का स्वामी शुक्र होता है. यहां स्थित चंद्रमा बहुत अच्छे परिणाम देता है. चंद्रमा इस घर में बहुत मजबूत हो जाता है क्योंकि उसे शुक्र के खिलाफ बृहस्पति का अनुकूल समर्थन मिल जाता है इस कारण यहां का चंद्रमा अच्छे परिणाम देता है. ऐसे में जातक के बहनें नहीं होतीं लेकिन निश्चित रूप से भाइयों की प्राप्ति होती है. लेकिन यदि ऐसा नहीं होता तो जातक की पत्नी के भाई अवश्य होते हैं. जातक को पैतृक सम्पत्ति में हिस्सा जरूर मिलता है. ग्रहों की स्थिति जो भी हो लेकिन यहां स्थित चंद्रमा जातक के वंश को जरूर बढाता है. जातक अच्छी शिक्षा प्राप्त करता है जिससे उसके भाग्योदय में सहयोग मिलता है. चंद्रमा की चीजों से जुड़े व्यवसाय लाभप्रद साबित होंगे. जातक एक प्रतिष्ठित शिक्षक भी हो सकता है. बारहवें भाव में स्थित केतू यहां के चंद्रमा को ग्रहण लगाने वाला रहेगा जो जातक को अच्छी शिक्षा या पुत्र से वंचित कर सकता है. 

उपाय:

1. घर के भीतर मंदिर का होना जातक की पुत्र प्राप्ति में बाधक हो सकता है.

2. चंद्रमा से सम्बंधित चीजें जैसे चांदी, चावल, घर की कच्ची फर्श, मां और बुजुर्ग महिलाएं तथा उनका आशीर्वाद जातक के लिए बहुत भाग्यशाली रहेंगे. 

3. लगातार 43 दिनों तक कन्याओं (छोटी लड़कियों) को हरा कपडा बांटें.

4. चंद्रमा से सम्बंधित चीजें जैसे चांदी का एक चौकोर टुकड़ा अपने घर की नीव में दबाएं.

चन्द्र का तीसरे भाव में फल—

तीसरे भाव में स्थित चंद्रमा पर मंगल और बुध का भी प्रभाव होता है। यहां स्थित चंद्रमा लंबा जीवन और अत्यधिक धन देने वाला होता है। तीसरे भाव में स्थित चंद्रमा के कारण यदि नवमें और ग्यारहवें घर में कोई ग्रह न हों तो मंगल और शुक्र अच्छे परिणाम देंगें. जातक शिक्षा और सीखने की प्रगति के साथ, जातक के पिता की अर्थिक स्थिति खराब होगी लेकिन इससे जातक की शिक्षा और सीखने की प्रगति पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पडेगा. यदि केतु कुण्डली में किसी शुभ जगह पर है और चंद्रमा पर कोई दुश्प्रभाव नहीं डाल रहा है तो जातक की शिक्षा अच्छे परिणाम देने वाली और हर तरीके में फायदेमंद साबित होगी. यदि चंद्रमा हानिकर है, तो यह बडी धनहानि और खर्चे का कारण हो सकता है यह घटना नवमें भाव में बैठे ग्रह की दशा या उम्र में हो सकती है. 

उपाय:

1. पुत्री के जन्म के बाद चन्द्रमा से सम्बंधित चीजें जैसे चांदी और चावल आदि का दान करें तथा पुत्र के जन्म के बाद सूर्य से सम्बंधित चीजें जैसे गेहूं और गुड़ आदि का दान करें. 

2. अपनी बेटी के पैसे और धन का उपयोग न करें.

3. आठवें घर में स्थित बुरे ग्रह के दुष्प्रभाव से बचने के लिए, मेहमानों और दूसरों को खुलकर दूध और पानी बांटें.

4. दुर्गा देवी की पूजा करें तथा कन्याओं को भोजन और मिठाई देकर उनके पांव छुएं और आशिर्वाद लें. 

चन्द्र का चौथे भाव में फल—- 

चौथे भाव में स्थित चंद्रमा पर केवल चंद्रमा का ही पूर्णरूपेण प्रभाव होता है क्योंकि वह चौथे भाव और चौथी राशि दोनो का स्वामी होता है. यहां चन्द्रमा हर प्रकार से बहुत मजबूत और शक्तिशाली हो जाता है. चंद्रमा से संबन्धित वस्तुएं जातक के लिए बहुत फायदेमंद साबित होती हैं. मेहमानों को पानी की के स्थान पर दूध भेंट करें. मां या मां के जैसी स्त्रियों का पांव छूकर आशिर्वाद लें. चौथा भाव आमदनी की नदी है जो व्यय बढानें के लिए जारी रहेगी. दूसरे शब्दों में खर्चे आमदनी को बढाएंगे. जातक प्रतिष्ठित और सम्मानित व्यक्ति होने के साथ-साथ नरम दिल और सभी प्रकार से धनी होगा. जातक को अपनी माँ के सभी लक्षण और गुण विरासत में मिलेंगे और वह जीवन की समस्याओं का सामना किसी शेर की तरह साहसपूर्वक करेगा. जातक सरकार से सहयोग और सम्मान प्राप्त करेगा साथ में वह दूसरों को शांति और आश्रय प्रदान करेगा. जातक निश्चित तौर पर अच्छी शिक्षा प्राप्त करेगा. यदि बृहस्पति 6 भाव में हो और चंद्रमा चौथे भाव में तो जातक को पैतृक व्यवसाय फायदा देगा. यदि जातक के पास कोई अपना कीमती सामान गिरवी रख जाएगा तो वह उसे मांगने के लिए कभी नहीं आएगा. यदि चंद्रमा चौथे भाव में चार ग्रहों के साथ हो तो जातक आर्थिक रूप से बहुत मजबूत और अमीर होगा. पुरुष ग्रह जातक की मदद पुत्र की तरह करेंगे और स्त्री ग्रह पुत्रियों की तरह.

उपाय:

1. लाभ कमाने के लिए दूध का खोया बनाना अथवा दूध बेचना आदि कार्य से आमदनी, जीवन के विस्तार और मानसिक शांति पर बहुत प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा अतः इससे बचें.

2. व्यभिचार और अनैतिक सम्बंध जातक की प्रतिष्ठा और आर्थिक मामलों के लिए हानिकारक होगें इसलिए इनसे बचाव जरूरी है.

3. अधिक खर्च, अधिक आय.

4. किसी भी शुभ या नया काम शुरू करने से पहले, घर में दूध से भरा कोई घड़ा या कनस्तर रखें.

5. दशम भाव में स्थित बृहस्पति के दुष्प्रभाव से छुटकारा पाने के लिए, जातक को अपने दादाजी के साथ पूजा स्थान में जाकर भगवान के चरणों में माथा रखकर चढ़ावा चढ़ाएं.

चन्द्र का पांचवें भाव में फल —-

पांचवें भाव में स्थित चंद्रमा के परिणाम में सूर्य, केतू और चंद्रमा का प्रभाव रहेगा. जातक हमेशा सही तरीके से पैसा कमाने की कोशिश करेगा, वह कभी भी गलत तरीके नहीं अपनाएगा. वह व्यापार में तो अच्छा नहीं कर पाएगा लेकिन निश्चित रूप से सरकार की ओर से सम्मान और सहयोग प्राप्त करेगा. उसके द्वारा समर्थित कोई भी जीत जाएगा. यदि केतू सही स्थान पर बैठा है और फायदेमंद है तो जातक के पांच पुत्र होंगें चाहे चंद्रमा किसी अशुभ ग्रह के प्रभाव में ही क्यों न हो. अपनी शिक्षा और सीख के कारण जातक दूसरों के कल्याण के लिए अनेक उपाय करेगा लेकिन दूसरे उसके लिए अच्छा नहीं करेंगे. अगर जातक लालची और स्वार्थी हो जाता है तो वह नष्ट हो जाएगा. यदि जातक अपनी योजनाओं को एक गुप्त रखने में विफल रहता है, उसके अपने ही लोग उसे नुकसान पहुंचाएंगे.

उपाय:

1. अपनी वाणी पर नियंत्रण रखें. किसी के लिए अभद्र भाषा का प्रयोग न करें ऐसा करना मुशीबतों को निमंत्रण देना होगा.

2. लालची और स्वार्थी बनने से बचें.

3. दूसरों के साथ छल और बेईमानी न करें, इसका आप पर ही प्रतिकूल असर होगा.

4. किसी के खिलाफ कुछ करनें से पहले किसी और से सलाह जरूर लें इसका आपके जीवन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और आप 100 सालों तक जिएंगे. 

5. लोगों की सेवा करें इससे आपकी आमदनी और प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी.

चन्द्र का छठें भाव में फल—-

यह भाव बुध और केतु से प्रभावित होता है। इस घर में स्थित चंद्रमा दूसरे, आठवे, बारहवें और चौथे घरों में बैठे ग्रहों से प्रभावित होता है. ऐसा जातक बाधाओं के साथ शिक्षा प्राप्त करता है और अपनी शैक्षिक उपलब्धियों का लाभ उठाने के लिए उसे बहुत संघर्ष करना पडता है. यदि चंद्रमा छठवें, दूसरे, चौथे, आठवें और बारहवें घर में होता है तो यह शुभ भी होता है ऐसा जातक किसी मरते हुए के मुंह में पानी की कुछ बूंदें डालकर उसे जीवित करने का काम करता है. यदि छठवें भाव में स्थित चंद्रमा अशुभ है और बुध दूसरे या बारहवें भाव में स्थित है तो जातक में आत्महत्या करने की प्रवृत्ति पाई जाएगी. ठीक इसी तरह यदि चन्द्रमा अशुभ है और सूर्य बारहवें घर में है तो जातक या उसकी पत्नी या दोनो ही आंख के रोग या परेशानियों से ग्रस्त होंगे. 

उपाय:

1. अपने पिता को अपने हाथों से दूध परोसें.

2. रात के समय दूध कभी भी न पिएं. लेकिन दिन के समय दूध उपयोग किया जा सकता है. रात के समय दही और पनीर का सेवन किया जा सकता है.

3. दूध का दान न करें। केवल पूजा के धार्मिक स्थानों पर दूध दिया जा सकता है.

4. जातक अस्पताल या श्मशान भूमि में कुआं खुदवाएं.

चन्द्र का सातवें भाव में फल —–

सातवां घर शुक्र और बुध से संबंधित होता है. जब चंद्रमा इस भाव में स्थित होता है तो परिणाम शुक्र, बुध और चंद्रमा से प्रभावित होता है. शुक्र और बुध मिलकर सूर्य का प्रभाव देते हैं. पहला भाव सातवें को देखता है नतीजन पहले घर से सूर्य की किरणे सातवें भाव में बैठे चंद्रमा को सकारात्म रूप से प्रभावित करती हैं जिसका मतलब है कि चंद्रमा से संबंधित चीजों और रिश्तेदारों लाभकारी और अच्छे परिणाम मिलेंगे. शैक्षिक उपलब्धियां पैसा या धन कमाने के लिए उपयोगी साबित होंगी. उसके पास जमीन जायदाद हो या न हो लेकिन उसके पास नकद निश्चित रूप से हमेशा रहेगा. उसके पास कवि या ज्योतिषी बनने की अच्छी योग्यता होगी. अथवा वह चरित्रहीन हो सकता है और रहस्यवाद और अध्यात्मवाद को बहुत चाहता होगा. सातवें भाव में स्थित चंद्रमा जातक की पत्नी और मां के बीच अर्थ संघर्ष देता है जो दूध के व्यवसाय में प्रतिकूल प्रभावी होता है. ऐसे में जातक अगर मां का कहना नहीं मानता तो उसे तनाव और परेशानियों का सामना करना पडता है.

उपाय:

1. 24वें वर्ष में शादी न करें.

2. अपनी मां को हमेशा खुश रखें.

3. लाभ कमाने के लिए कभी भी दूध या पानी न बेचें.

4. खोया बनाने के लिए दूध को न जलाएं.

5. सुनिश्चित कर लें कि आपकी पत्नी शादी में अपने मायके से अपने वजन के बराबर चांदी और चावल लाए.

चन्द्र का आठवें भाव में फल—-

यह भाव मंगल और शनि के अंतर्गत आता है. यहां पर स्थित चंद्रमा जातक की शिक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है. लेकिन यदि शिक्षा अच्छी है तो जातक की मां का जीवन छोटा होता है. लेकिन अक्सर यही देखने को मिलता है कि जातक शिक्षा और मां को खो देता है. हालांकि, यदि बृहस्पति और शनि दूसरे भाव में हों तो सातवें घर में बैठे चंद्रमा का बुरा कम हो जाएगा. इस भाव में स्थित चन्द्रमा जातक को पैतृद सम्पत्ति से वंचित करता है. यदि जातक की पैतृक सम्पत्ति के पास कोई कुंआ या तालाब होता है तो जातक के जीवन में चंद्रमा के प्रतिकूल परिणाम देखने को मिलते हैं.

उपाय:

1. जुआ और अनैतिकता से बचें.

2. अपने पूर्वजों के लिए श्रद्धा समारोह आयोजित करें.

3. कुएं को छत से ढकने के बादघर का निर्माण न करें.

4. बुजुर्गों और बच्चों के पैर छूकर आशीर्वाद लें.

5. श्मशान भूमि की सीमा के भीतर स्थित नल या कुंए से पानी लाएं और अपने घर के भीतर रखें. यह सप्तम भाव में स्थित चंद्रमा की सभी बुराइयों दूर करता है.

6. पूजा स्थल में चना और दाल दान करें.

चन्द्र का नौवें भाव में फल—-

नौवां घर बृहस्पति, से सम्बंधित होता है जो चंद्रमा का परममित्र है. इसलिए जातक इन दोनों ग्रहों के लक्षण और सुविधाओं को आत्मसात करता है साथ ही अच्छे आचरण, कोमक हृदय, मन से धार्मिक, और धार्मिक कृत्यों तथा तीर्थयात्राओं से प्रेम करने वाला होता है. वह 75 वर्षों तक जीवित रहता है. पाचवें घर में स्थित शुभ ग्रह संतान सुख में वृद्धि और धार्मिक कामों में गहन रुचि विकसित करता है. तीसरे भाव में स्थित मित्र ग्रह पैसे और धन में काफी वृद्धि करता है.

उपाय:

1. घर में चंद्रमा से संबंधित चीजें रखें. जैसे अलमारी में चांदी का एक चौकोर टुकड़ा रखें.

2. मजदूरों को दूध परोसें.

3. सांप को दूध पिलाएं और मछली के लिए चावल डालें.

चन्द्र का दसवें भाव में फल  —–

दसवां घर हर तरीके में शनि द्वारा शासित है. यह घर चौथे घर के द्वारा देखा जाता है, जो चंद्रमा द्वारा शासित होता है. इसलिए इस घर में स्थित चंद्रमा जातक को 90 साल की लंबी आयु सुनिश्चित करता है. चंद्रमा और शनि आपस में शत्रु हैं इसलिए, तरल रूप में दवाओं का सेवन जातक को हमेशा हानिकारक साबित होंगी. रात में दूध का सेवन जहर के समान कार्य करता है. यदि जातक चिकित्सक है तो उसके द्वारा रोगी को दी जाने वाली दवाएं यदि शुष्क हों तो मरीज पर इलाज का जादुई प्रभाव पड़ेगा. यदि जातक सर्जन है तो वह सर्जरी के माध्यम से वह महान धन और प्रसिद्धि अर्जित करेगा. यदि दूसरा और चौथा भाव खाली हो तो जातक पर पैसों की बरसात होगी. यदि शनि पहले भाव में स्थित हो तो विपरीत लिंगी के कारण जातक का विनाश हो जाता है, विशेषकर विधवा जातक के विनाश का कारण बनती है. शनि से संबंधित वस्तुएं और व्यवसाय जातक के लिए फायदेमंद साबित होगा. 

उपाय:

1. धार्मिक स्थानों की यात्रा भाग्य वृद्धि में सहायक होगी.

2. बारिस अथवा नदी का प्राकृतिक जल किसी कंटेनर (कनस्तर) में भर कर अपने घर के भीतर 15 साल तक रखें. यह दसम भाव में स्थित चंद्रमा के विषाक्त और बुरे प्रभाव को धो देगा. 

3. रात में दूध न पिएं.

4. दुधारू पशु न तो आपके घर में लंबे समय तक रह पाएंगे और न ही वो आपके लिए फायदेमंद और शुभ साबित होंगे.

5. शराब, मांस, और व्यभिचार से बचें.

चन्द्र का ग्यारहवें भाव में फल —-

यह घर बृहस्पति और शनि से पूरी तरह प्रभावित होता है. इस घर में स्थित हर ग्रह अपने शत्रु ग्रहों और उनके साथ जुडी बातों को नष्ट कर देता है. इस प्रकार यहां स्थित चंद्रमा अपने शत्रु केतू की चीजों को नष्ट कर देता है जैसे जातक के बेटे आदि को. यहां चंद्रमा को अपने शत्रुओं शनि और केतू की संयुक्त शक्ति का सामना करना पडता है, जिससे चंद्रमा कमजोर होता है. ऐसे में यदि केतू चौथे भाव में स्थित है तो जातक की मां का जीवन खतरे में पडेगा. बुध से जुडे व्यापार भी हानिप्रद साबित होंगे. शनिवार के दिन से घर का निर्माण या घर की खरीदी चंद्रमा के शत्रु को बलवान बनाते हैं जो जातक के लिए विनाशकारी साबित होगा. आधी रात के बाद कन्यादान और शुक्रवार के दिन किसी भी शादी समारोह में शामिल होना जातक के भाग्य को नुकसान पहुंचाएगा. 

उपाय:

1. भैरव मंदिर में दूध बांटे और दूसरों को उदारतापूर्वक दूध का दान करें.

2. सुनिश्चित करें कि दादी अपने पोते को न देखने पाए.

3. दूध पीने से पहले सोने के एक टुकड़े को आग में गरम करें और दूध के गिलास में डालकर बुझाएं, इसके बाद दूध पिएं.

4. 125 पीस पेड़े (मिठाइयां) नदी में बहाएं.

चन्द्र का बारहवें भाव में फल—-

यह घर चंद्रमा के मित्र बृहस्पति का है. यहां स्थित चंद्रमा मंगल और मंगल से संबंधित चीजों पर अच्छा प्रभाव डालता है, लेकिन यह अपने दुश्मन बुध और केतु तथा उनसे संबंधित चीजों को नुकसान पहुंचाएगा. इसलिए मंगल जिस भाव में बैठा है उससे जुडा व्यापार और चीजें जातक के लिए अत्यधिक लाभकारी रहेंगी. ठीक इसी तरह बुध और केतू जिस घर में बैठे हैं उससे जुडा व्यापार और चीजें जातक के लिए अत्यधिक हानिकारक रहेंगी. बारहवें घर में स्थित चंद्रमा जातक के मन में अप्रत्याशित मुसीबतों और खतरों को लेकर एक साधारण सा डर पैदा करता है. जिससे जातक की नींद और मानसिक शांति भंग होती है. यदि चौथे भाव में स्थित केतू कमजोर और पीडित हो तो जातक के पुत्र और मां पर प्रतिकूल असर पडता है.

उपाय:—

1. कान में सोना पहनें. दूध में सोना बुझाकर दूध पियें. धार्मिक स्थलों की यात्रा करें. ये उपाय न केवल 12वें भाव के चन्द्र के दुष्प्रभाव को दूर करते बल्कि चौथे भाव के केतू के दुष्प्रभाव को भी दूर करते हैं.

2. धार्मिक साधु-संतों को कभी भी दूध और भोजन न दें.

3. स्कूल, कॉलेज या अन्य कोई शैक्षणिक संस्थान न खोलें और निःशुल्क शिक्षा पाने वाले बच्चों की मदद न करें.

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जानिए की कैसे होता चन्द्र खराब ? 

* घर का वायव्य कोण दूषित होने पर भी चन्द्र खराब हो जाता है।

* घर में जल का स्थान-दिशा यदि दूषित है तो भी चन्द्र मंदा फल देता है। 

* पूर्वजों का अपमान करने और श्राद्ध कर्म नहीं करने से भी चन्द्र दूषित हो जाता है।

* माता का अपमान करने या उससे विवाद करने पर चन्द्र अशुभ प्रभाव देने लगता है।

* शरीर में जल यदि दूषित हो गया है तो भी चन्द्र का अशुभ प्रभाव पड़ने लगता है।

* गृह कलह करने और पारिवारिक सदस्य को धोखा देने से भी चन्द्र मंदा फल देता है।

* राहु, केतु या शनि के साथ होने से तथा उनकी दृष्टि चन्द्र पर पड़ने से चन्द्र खराब फल देने लगता है।

शुभ चन्द्र व्यक्ति को धनवान और दयालु बनाता है। सुख और शांति देता है। भूमि और भवन के मालिक चन्द्रमा से चतुर्थ में शुभ ग्रह होने पर घर संबंधी शुभ फल मिलते हैं।

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छठे भाव में चंद्रमा का प्रभाव —-

छठे भाव में चंद्रमा होने से आपको जीवन में प्यार की कमी रहती है अथवा प्यार में धोखा खा सकते है.

किसी ना किसी बात को लेकर तनाव और मानसिक परेशानियो से घिरे रह सकते है.

आपके कार्य क्षेत्र पर आपके सहयोगी आपका इस्तेमाल करते हैं और आप उनका विरोध भी नहीं कर पाते है.

माता के साथ संबंध अच्छे नहीं रहेगें अथवा माता के सुख में किन्हीं कारणो से कमी रह सकती है.

आइए सबसे पहले छठे भाव के चंद्रमा के बारे में बात करते हैं. छठे भाव में चंद्रमा होने से आपको जीवन में सदा प्यार की कमी महसूस हो सकती है अथवा आपको जीवन में एक बार प्यार में धोखा मिल सकता है. ऎसा भी हो सकता है कि आप किसी को चाहते हो और कभी उसे कहने की हिम्मत ना करने से आप उसे पा ना सके हो और यही आपके मन का मलाल हो सकता है.

आप सदा किसी ना किसी बात को लेकर तनाव और मानसिक परेशानियो से घिरे रह सकते है क्योकि छठे भाव में चंद्र की स्थिति से आपका मन कमजोर हो जाता है और जब मन ही कमजोर हो गया तब आप छोटी से छोटी बात पर अधिक परेशान हो जाते हैं. मन व्याकुल रहता है.

छठा भाव नौकरी का भी होता है और प्रतिस्पर्धा का भी होता है. इस भाव में पाप ग्रह का होना अच्छा माना गया है ताकि व्यक्ति अपने हर तरह के विरोधियो पर काबू पा सके. चंद्रमा के इस भाव में होने से आपके कार्य क्षेत्र पर आपके सहयोगी आपका इस्तेमाल कर करते हैं और आप उनका विरोध भी नहीं कर पाते है.

आपकी माता के साथ संबंध अच्छे नहीं रहेगें अथवा माता के सुख में किन्हीं कारणो से कमी रह सकती है. इस भाव में चंद्र होने से किसी ना किसी रुप में माता से अलगाव अथवा उसके सुख से वंचित हो सकते हैं.

अष्टम भाव में चंद्रमा का प्रभाव—

आठवें भाव में चंद्रमा के प्रभाव से आप भावनात्मक(emotionally) रुप से स्वयं को असुरक्षित(insecure) महसूस कर सकते हैं.

आप भावनात्मक रुप से किसी से भी नहीं जुड़ पाते हैं, कमजोर मन के कारण सबसे अलग – थलग से रहते हैं.

अपने मन की बात को किसी से भी नहीं कहते हैं यहाँ तक कि संबंध बनाने वाले साथी के साथ भी पूरी तरह सुरक्षित महसूस नहीं करते हैं.

अष्टम भाव के चंद्रमा से आप सदा एक अनजान भय से घिरे रहते हैं.

अष्टम चंद्र से आप सदा दुविधा में घिरे रह सकते हैं और मन में अस्थिरता बनी रहती है.

चंद्रमा के इस भाव में होने से आप भोग-विलासी हो सकते हैं और आपके बहुत से संबंध दुनिया से छिपे रह सकते हैं.

आठवाँ भाव गूढ़ विद्याओ का भी है इसलिए आप इसमें रुचि रख सकते हैं और आप गुप्त अथवा डिटेक्टिव एजेंसी से जुड़े काम भी कर सकते हैं.

आइए अब हम आठवें भाव के चंद्रमा की बात करते हैं. आठवाँ भाव कुण्डली का सबसे खराब भाव माना जाता है. चंद्रमा मन है और आठवें भाव में चंद्रमा के प्रभाव से आप भावनात्मक(emotionally) रुप से स्वयं को अत्यधिक असुरक्षित(insecure) महसूस कर सकते हैं.

आप भावनात्मक रुप से किसी से भी नहीं जुड़ पाते हैं, कमजोर मन के कारण सबसे अलग – थलग से रहते हैं. आपका मन बहुत अधिक बेचैन रहता है और आप गहरे तनाव में धंसते जाते हैं.

अपने मन की बात को आप किसी से भी नहीं कहते हैं यहाँ तक कि जिस व्यक्ति से आप अंतरंग संबंध बनाते है उस साथी के साथ भी पूरी तरह सुरक्षित महसूस नहीं करते हैं. काफी ज्यादा समय बीत जाने पर ही आप अपने साथी से कुछ बाते शेयर करते हैं.

अष्टम भाव के चंद्रमा से आप सदा एक अनजान भय से घिरे रहते हैं, जिसका कोई कारण आपको भी समझ नही आता है. आपके अंदर आत्मविश्वास की कमी हो सकती है और आपका मनोबल भी गिरा रहता है.

आप सदा दुविधा में घिरे रह सकते हैं और मन में अस्थिरता बनी रहती है. आपको कई बार सही और गलत को पहचानना भी मुश्किल हो जाता है.

चंद्रमा के इस भाव में होने से आप भोगी और विलासी हो सकते हैं और आपके बहुत से संबंध दुनिया से छिपे रह सकते हैं. अनैतिक संबंधो से आपको सचेत रहना चाहिए.

आठवाँ भाव गूढ़ विद्याओ का भी है इसलिए आपकी इनमें रुचि हो सकते हैं और आप गुप्त अथवा डिटेक्टिव एजेंसी से जुड़े काम भी कर सकते हैं. आप जमीन के नीचे से संबंधित वस्तुओ को अपनी आजीविका के साधन बना सकते हैं.

बारहवें भाव में चंद्रमा का प्रभाव—

बारहवें भाव में चंद्रमा होने से मन का व्यय होता है और चित्त अशांत रहता है.

12वाँ भाव मोक्ष का भी है इसलिए चंद्रमा के इस भाव में होने से आपका झुकाव आध्यात्म की ओर हो सकता है.

आप अपने जन्म स्थान से दूर जाकर तरक्की कर सकते हैं अथवा विदेश भी जा सकते हैं.

इस भाव का चंद्रमा व्यक्ति को एक अच्छा लेखक बना सकता है क्योकि आप रचनात्मक व्यक्ति हैं.

इस भाव में चंद्रमा के होने से आपकी माता भी आध्यात्मिक विचारो वाली महिला हो सकती है.

इस भाव का चंद्रमा कमजोर तो होता है लेकिन छठे और आठवें भाव जितना नहीं.

इस भाव के चंद्रमा पर से जब शनि अथवा अन्य पाप ग्रहों का गोचर होप्ता है तब मानसिक परेशानी अधिक होती है.

बारहवें भाव के चंद्रमा के बारे में बात करते हैं. यह भाव व्यय भाव भी कहलाता है. इस भाव में चंद्रमा होने से मन का व्यय होता है और चित्त अशांत रहता है.

12वाँ भाव मोक्ष का भी है इसलिए चंद्रमा के इस भाव में होने से आपका झुकाव आध्यात्म की ओर हो सकता है. आप किसी आश्रम के सदस्य बन सकते हैं.

यह भाव विदेश का भी है इसलिएा आप अपने जन्म स्थान से दूर जाकर तरक्की कर सकते हैं अथवा विदेश भी जा सकते हैं.

इस भाव का चंद्रमा व्यक्ति को एक अच्छा लेखक बना सकता है क्योकि आप रचनात्मक व्यक्ति हैं और आपका मन बहुत सी कल्पनाओ में खोया रहता है. एक लेखक के लिए अच्छी कल्पनाएँ करना बहुत जरुरी है तभी वह अच्छे और सुंदर लेख लिख सकता है.

चंद्रमा को माता का प्रतीक ग्रह माना जाता है इसलिए इस भाव में चंद्रमा के होने से आपकी माता भी आध्यात्मिक विचारो वाली महिला हो सकती है.

इस भाव का चंद्रमा कमजोर तो होता है लेकिन छठे और आठवें भाव जितना नहीं होता है.

लेकिन इस भाव के चंद्रमा पर से जब शनि अथवा अन्य पाप ग्रहों का गोचर होप्ता है तब मानसिक परेशानी अधिक हो सकती है.

उपाय—

चंद्रमा अगर कुण्डली में कमजोर है तब आपको भगवान शिव की पूजा प्रतिदिन करनी चाहिए ||

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वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा की शुभता के उपाय :-

जन्म कुंडली में चन्द्र को मन और माता का कारक माना गया है यह कर्क राशी का स्वामी है ,चन्द्रमा के मित्र ग्रह सूर्य और बुध है. चन्द्रमा किसी ग्रह से शत्रु संबन्ध नहीं रखता है. चन्द्रमा मंगल, गुरु, शुक्र व शनि से सम संबन्ध रखते है. चन्द्र वृ्षभ राशि में शुभ और वृ्श्चिक राशि में होने पर नीच का हो जाता है. ,चन्द्र ग्रह उत्तर-पश्चिम दिशाओं का प्रतिनिधित्व करता है. चन्द्र का भाग्य रत्न मोती है. चन्द्र ग्रह का रंग श्वेत, चांदी माना गया है. चन्द्र का शुभ अंक 2, 11, 20 है |

जन्म कुंडली में चन्द्रमा यदि अपनी ही राशि में या मित्र, उच्च राशि षड्बली ,शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो चन्द्रमा की शुभता में वृद्धि होती है. जन्म कुण्डली में चंद्रमा यदि मजबूत एवं बली अवस्था में हो तो व्यक्ति समस्त कार्यों में सफलता पाने वाला तथा मन से प्रसन्न रहने वाला होता है. पद प्राप्ति व पदोन्नति, जलोत्पन्न, तरल व श्वेत पदार्थों के कारोबार से लाभ मिलता है.

चन्द्र का प्रभाव :– यह शरीर में बाईं आंख, गाल, मांस, रक्त बलगम, वायु, स्त्री में दाईं आंख, पेट, भोजन नली, गर्भाशय, अण्डाशय, मूत्राशय. चन्द्र कुण्डली में कमजोर या पिडित हो, तो व्यक्ति को ह्रदय रोग, फेफडे, दमा, अतिसार, दस्त गुर्दा, बहुमूत्र, पीलिया, गर्भाशय के रोग, माहवारी में अनियमितता, चर्म रोग, रक्त की कमी, नाडी मण्डल, निद्रा, खुजली, रक्त दूषित होना, फफोले, ज्वर, तपेदिक, अपच, बलगम, जुकाम, सूजन, जल से भय, गले की समस्याएं, उदर-पीडा, फेफडों में सूजन, क्षयरोग. चन्द्र प्रभावित व्यक्ति बार-बार विचार बदलने वाला होता है||

अगर चंद्रमा कुंडली में नीच का होगा तो क्या परिस्थितियां उत्पन्न होंगी और किन उपायों के जरिये उनसे बचा जा सकता है? जैसाकि आपको बताया कि उच्च चंद्रमा मन को शांत करता है, वहीं चंद्रमा के नीच का होने पर व्यक्ति परेशान रहेगा। उसके साथ हमेशा मानसिक उथल-पुथल की स्थिति बनी रहेगी। चंद्रमा अगर नीच का है तो साधारण से उपायों के जरिये उससे होने वाली हानि से हम बच सकते हैं। 

चंद्रमा के स्वामी भगवान शिव हैं, इसलिए शिव की पूजा की जाए iu तो स्थितियां सुधर सकती हैं। इसके लिए सोमवार का व्रत करना, पूर्णिमा का व्रत करना, शंकर जी को दूध से स्नान कराना और सोमवार को सफेद वस्तुओं का दान करना चाहिए। अगर चंद्रमा बहुत ज्यादा खराब है तो शंकर जी के मंदिर में जाकर ‘ओम नम: शिवाय’ एवं ‘ऊं सों सोमाय नम:’ मंत्र का जाप करें। चंद्रमा को प्रसन्न करने के लिए चंद्रमा के इस मंत्र का भी जाप करें- ‘ऊं श्रं श्रीं श्रौं स: चन्द्रमसे नम:।’ इस मंत्र को 11 हजार बार जप करने से कुंडली में चंद्र की स्थिति में सुधार आता है। 

जप पूर्णिमा या शुक्ल पक्ष के सोमवार से शुरू करना चाहिए।

चन्द्रमाँ का दान वस्तु :– चावल, दूध, चांदी, मोती, दही, मिश्री, श्वेत वस्त्र, श्वेत फूल या चन्दन. इन वस्तुओं का दान सोमवार के दिन सायंकाल में करना चाहिए. जिनकी कुंडली में चन्द्र अशुभ हो ऐसे लोग चंद्र की शुभता लेने के लिए माता, नानी, दादी, सास एवं इनके पद के समान वाली स्त्रियों का आशीर्वाद ले ||

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क्या करें ख़राब/दूषित चंद्र के दोष निवारण हेतु–

प्रथम भाव में स्थित चन्द्रमा के उपाय—-

1:- वट बृक्ष की जड़ में पानी डालें.

2:- चारपाई के चारो पायो पर चांदी की कीले लगाऎं

3:-शरीर पर चाँदी धारण करें.

4:-व्यक्ति को देर रात्रि तक नहीं जागना चाहिए। रात्रि के समय घूमने-फिरने तथा यात्रा से बचना चाहिए।

5:-पूर्णिमा के दिन शिव जी को खीर का भोग लगाएँ,

द्वितीय भाव में स्थित चन्द्रमा के उपाय—

1:- मकान की नीव में चॉदी दबाएं.

2:- माता का आशीर्वाद लें.

तृतीय भाव में स्थित चन्द्रमा का उपाय—-

1:- चांदी का कडा धारण करें.

2: पानी ,दूध, चावल का दान करे़.

चतुर्थ भाव में स्थित चन्द्रमा का उपाय—-

1:- चांदी, चावल व दूध का कारोबार न करें.

2:- माता से चांदी लेकर अपने पास रखे व माता से आशिर्वाद लें.

3:-घर में किसी भी स्थान पर पानी का जमाव न होनें पाए।

पचंम भाव में स्थित चन्दमा के उपाय—-

1:- ब्रह्मचर्य का पालन करें.

2:- बेईमानी और लालच ना करें, झूठ बोलने से परहेज करें.

3:-11 सोमवार नियमित रूप से 9 कन्यावों को खीर का प्रसाद दें।

4:- सोमवार को सफेद कपडे में चावल, मिशरी बांधकर बहते पानी में प्रवाहित करें.

छटे भाव में स्थित चन्द्रमा के उपाय—-

1:- श्मशान में पानी की टंकी या हैण्डपम्प लगवाएं.

2:- चांदी का चोकोर टुकडा़ अपने पास रखें.

3:- रात के समय दूध ना पीयें.

4:- माता -सास की सेवा करें.

सप्तम भाव में स्थित चन्द्रमा के उपाय—-

1:- पानी और दूध का व्यापार न करें.

2:- माता को दुख ना पहुचाये.

अष्टम भाव में स्थित चन्द्रमा के उपाय—

1) श्मशान के नल से पानी लाकर घर मे रखें.

2) छल-कपट से परहेज करें.

3) बडे़-बूढो का आशीर्वाद लेते रहें.

4) श्राद्ध पर्व मनाते रहे.

5) कुएं के उपर मकान न बनाएं.

6) मन्दिर में चने की दाल चढायें.

7) व्यभिचार से दूर रहे.

नवम भाव में स्थित चन्द्रमा के उपाय—

1:- धर्म स्थान में दूध और चावल का दान करे

2:- मन्दिर में दर्शन हेतु जाएं.

3:-बुजुर्ग स्त्रियों से आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।

दशम भाव में स्थित चन्द्रमा के उपाय—-

1:- रात के समय दूध का सेवन न करें.

2:- मुफ्त में दवाई बांटें.

3:- समुद्र, वर्षा या नदी का पानी घर में रखें.

एकादश भाव में स्थित चन्द्रमा के उपाय—-

1:- भैरव मन्दिर में दूध चढायें.

2:- सोने की सलाई गरम करके उसको दूध में ठण्डा करके उस दूध को पियें.

3:- दूध का दान करें.

द्वादश भाव में स्थित चन्द्रमा के उपाय—

1:- वर्षा का पानी घर में रखें.

2:- धर्म स्थान या मन्दिर में नियमित सर झुकाए .

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