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Thursday, January 4, 2018

Mercury and Saturn conjunction in astrology

*🌷बुध शनि की युति 🌷*

*बुध शनि की युति अगर पहले भाव में हो तो या तो चेहरे पर कोई काला निशान जैसे गोल मस्सा होगा,लहसन का निसान होगा,या बहिन बुआ बेटी को अपना शरीर छुपाकर चलने की आदत होगी,अक्सर मर्यादा वाले घरों के अन्दर यह बात अधिक देखने के लिये मिलती है,बुध शनि की युति वाले परिवारों में घर में बहिन बुआ बेटी काम काज में भी बहुत हाथ बटातीं होंगी लेकिन सभी काम काज शरीर से सम्बन्धित होते है जैसे कि परिवार के लोगों की सेवा करना उनके खाने पीने और ठहरने आदि के बारे में घर की बहुयें काम नही करतीं होंगी,घर की बहिन बुआ बेटी के जिम्मे वह सभी काम होंगे जो शरीर पालन की क्रिया में शामिल किये जाते है।*

*अक्सर बुध शनि की युति पहले भाव में मार्गी शनि के साथ होने पर और भाव का प्रभाव शनि या बुध के माफ़िक होने से व्यक्ति की प्रतिमा जनमानस के ह्रदय में बस जाती है,जिनकी प्रतिमायें चौराहों या सार्वजनिक स्थानों में लगी होती है वे पहले भाव की श्रेणी में नही आते है उनके चौथे भाव का रूप सामने आता है। बुध शनि के पहले भाव में होने से व्यक्ति के बाल घुंघराले होते है और बहुत ही मुलायम और काले होते है,अक्सर इस प्रकार के लोगों के बाल काफ़ी लम्बे भी होते है,लेकिन शनि की उपस्थिति से अक्सर इस प्रकार के लोगों के बालों में जुयें भी खूब पडती है। व्यक्ति को भावानुसार चुगली करने की आदत होती है,व्यक्ति के अन्दर जुबान में न समझने वाली स्थिति को भी जाना जाता है,अक्सर इस प्रकार के लोग अपनी अपनी आदतों के अनुसार जुबान के पक्के नही माने जा सकते है,उनके लिखने पढने के अन्दर देरी होती है,वे केवल शरीर के इशारों से अच्छी तरह से बात करना जानते होते है,अक्सर बुध शनि की आदतों के अनुसार परिवार में बडे भाई के जो लडकी होती है उसकी या तो ग्रहों के अनुसार प्रसंसा होती है अथवा उसकी गाथायें समाज में खूब बखानी जाती है।*

*अक्सर इस प्रकार के जातक किसी भी दशा में अपने शरीर के हाव भाव प्रदर्शित करने में जैसे कैट-वाक करना आदि खूब कर सकते है,लेकिन इस काम में शुक्र और गुरु का भी योगदान होना चाहिये। शुक्र के साथ होने पर सजने सजाने के कामों में भी खूब मन लगाते है,एक्टिंग के कामो के अन्दर उनका नाम अक्सर सुना जाता है,दक्षिण भारतीय नृत्यांगनाओं की बुध शनि शुक्र की युति को समझा जा सकता है,उनके हाव भाव ही अधिक देखे जाते है। रात को गाये जाने वाले गीत भी शनि के पराक्रम को देखे जाने के कारण इस प्रकार के जातकों को खूब आते है,गुप्त सूचनायें देना और गुप्त जानकारी रखना आदि काम भी इस प्रकार के लोगों को खूब भाते है।*

*सूर्य के साथ होने पर बुध का असर कम हो जाता है और इस प्रकार के जातक समाज या दिन की रोशनी में घर से निकलना पसंद नही करते है,बातों के अन्दर पिता और पुत्र से कभी विचार नही मिलते है,घर के सदस्यों के साथ सुबह या शाम को ही मुलाकात हो पाती है,हमेशा साथ नही रहता है। जातक की प्राथमिक अवस्था में वह अक्सर पिता से दूर ही रहता है। शनि बुध के साथ चन्द्रमा के आने से जातक अपने विचारों और कामों को अपने अनुसार नही कर पाता है उसे दूसरों से पूंछ कर ही काम करना पडता है,स्वतंत्र विचार वह कभी प्रदान कर ही नही सकता है,उससे अगर किसी विचार के मामले में जानने की इच्छा होती है तो वह बता देता है कि फ़लां जगह पर फ़लां पन्ने पर यह बात लिखीहै,वह खुद उस बात को अपने द्वारा छानबीन कर नही बता पाता है।*

*शनि का प्रभाव सप्तम स्थान पर होने और बुध का भी सम्प्तम स्थान को देखे जाने के कारण अधिकतर जीवन साथी की आवाज अधिक तेज होती है,उसका कारण भी या तो बुध शनि की लगन में स्थिति वाला जातक अपने विचारों को सही रूप से प्रकट नही कर पाता है अथवा वह अपने अनुसार अंधेरे में रहने के कारण समझ नही पाता है और जीवन साथी को बार बार एक ही बात कहने के अनुसार चिल्लाने या चीखने की आदत पड जाती है,इस प्रकार के जातकों को अक्सर कम सुनाई देने वाले जीवन साथी ही मिलते है,या तो वे जन्म से कम सुनते है अथवा शादी या विवाह के बाद जातक की शनि बुध की युति उन्हे कम सुनने का मरीज बना देते हैं।*

*बुध शनि के जातकों को हरा और काला रंग बहुत पसंद होता है अक्सर इस प्रकार के जातकों को गहरा हरा रंग और गहरे हरे रंग के पत्ते वाले पेड अधिक पसंद होते है,अगर राशि का पूर्ण सहयोग हो तो जातक के निवास के आसपास बुध-शनि का पेड बरगद जरूर होता है अथवा चन्द्रमा की युति के कारण दूध के पेड भी पाये जाते है,बुध शनि का प्रभाव छोटे रूप से बडे रूप में होने का मिलता है,जैसे एक बरगद का पेड बहुत छोटे से बीज के अन्दर छुपा होता है,और जब वह फ़ैल जाता है तो उसकी जडें काफ़ी लम्बी चलती है और हर डाली से एक जड निकल कर अपना अपना भोजन ग्रहण करने लगती है,अक्सर बुध शनि वाले जातकों के कन्या संतान या तो बहुत अधिक होती है अथवा होती नही है,बुध शनि वाले जातकों की लडकियां खोती बहुत है,यह प्राभाव पहली साल में फ़िर तेरहवी साल और फ़िर पच्चीसवीं साल तक मिलता है।बुध का अन्धेरे में गुम हो जाना भी इसी बात का द्योतक है।*

*बुध शनि वाले जातक संतान के मामले में शुरु में बहुत कमजोर संतानों को पैदा करने वाले होते है,लेकिन वे संताने अपनी उम्र में जाकर बहुत बडा नाम या क्षेत्र विकसित करती है।*

Tuesday, January 2, 2018

Mahabhagya Yoga and Pushkal Yoga in Astrology

*💥महाभाग्य योग, पुष्कल योग-💥*

*महाभाग्य योग :*

*वैदिक ज्योतिष में महाभाग्य योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार यदि किसी पुरुष का जन्म दिन के समय का हो तथा उसकी जन्म कुंडली में लग्न अर्थात पहला घर, सूर्य तथा चन्द्रमा, तीनों ही विषम राशियों जैसे कि मेष, मिथुन, सिंह आदि में स्थित हों तो ऐसी कुंडली में महाभाग्य योग बनता है जो जातक को आर्थिक समृद्धि, सरकार में कोई शक्तिशाली पद, प्रभुत्व, प्रसिद्धि तथा लोकप्रियता आदि जैसे शुभ फल प्रदान कर सकता है। इसी प्रकार यदि किसी स्त्री का जन्म रात के समय का हो तथा उसकी जन्म कुंडली में लग्न, सूर्य तथा चन्द्रमा तीनों ही सम राशियों अर्थात वृष, कर्क, कन्या आदि में स्थित हों तो ऐसी स्त्री की कुंडली में महाभाग्य योग बनता है जो उसे उपर बताए गए शुभ फल प्रदान कर सकता है।*

*वैदिक ज्योतिष में वर्णित अधिकतर योगों का निर्माण पुरुष तथा स्त्री जातकों की कुंडलियों में एक समान नियमों से ही होता है जबकि महाभाग्य योग के लिए ये नियम पुरुष तथा स्त्री जातकों के लिए विपरीत हैं। इसका कारण यह है कि सूर्य दिन में प्रबल रहने वाला पुरुष ग्रह है तथा चन्द्रमा रात्रि में प्रबल रहने वाला एक स्त्री ग्रह है और किसी पुरुष की कुंडली में दिन के समय का जन्म होने से, लग्न, सूर्य तथा चन्द्रमा सबके विषम राशियों में अर्थात पुरुष राशियों में स्थित हो जाने से कुंडली में पुरुषत्व की प्रधानता बहुत बढ़ जाती है तथा ऐसी कुंडली में सूर्य भी बहुत प्रबल हो जाते हैं जिसके कारण पुरुष जातक को लाभ मिलता है। वहीं पर किसी स्त्री जातक का जन्म रात में होने से, कुंडली में लग्न, सूर्य तथा चन्द्रमा तीनों के विषम राशियों अर्थात स्त्री राशियों में होने से कुंडली में चन्द्रमा तथा स्त्री तत्व का प्रभाव बहुत बढ़ जाता है जिसके कारण ऐसे स्त्री जातकों को लाभ प्राप्त होता है।*

*किन्तु महाभाग्य योग का फल केवल उपर दिये गए नियमों से ही निश्चित कर लेना उचित नहीं है तथा किसी कुंडली में इस योग के निर्माण तथा फलादेश से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण विषयों के बारे में विचार कर लेना भी अति आवश्यक है। किसी भी कुंडली में महाभाग्य योग बनाने के लिए कुंडली में सूर्य तथा चन्द्रमा दोनों का शुभ होना अति आवश्यक है क्योंकि इन दोनों में से किसी एक ग्रह के अशुभ होने की स्थिति में महाभाग्य योग या तो कुंडली में बनेगा ही नहीं अन्यथा ऐसे महाभाग्य योग का बल बहुत क्षीण होगा जिससे जातक को अधिक लाभ प्राप्त नहीं हो पायेगा जबकि इन दोनों ही ग्रहों के किसी कुंडली में अशुभ होने की स्थिति में ऐसी कुंडली में महाभाग्य योग बिल्कुल भी नहीं बनेगा बल्कि ऐसी स्थिति में कुंडली में कोई अशुभ योग भी बन सकता है जिसके चलते जातक को अपने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि कई बार किसी कुंडली में ऐसे अशुभ सूर्य तथा चन्द्रमा का संयोग होने पर भी जातक बहुत धन कमा सकता है अथवा किसी सरकारी संस्था में कोई शक्तिशाली पद भी प्राप्त कर सकता है किन्तु ऐसा जातक सामान्यतया अवैध कार्यों के माध्यम से धन कमाता है तथा अपने पद और शक्ति का धन कमाने के लिए दुरुपयोग करता है जिसके कारण ऐसे जातक का पद तथा धन स्थायी नहीं रह पाता तथा उसे अपने पद तथा धन से हाथ धोना पड़ सकता है तथा अपयश अथवा बदनामी का सामना भी करना पड़ सकता है। इसलिए कुंडली में महाभाग्य योग बनाने के लिए कुंडली में सूर्य तथा चन्द्रमा का शुभ होना अति आवश्यक है।*

*इसके अतिरिक्त किसी कुंडली में सूर्य तथा चन्द्रमा के बल तथा स्थिति का भी भली भांति निरीक्षण करना अति आवश्यक है क्योंकि इनके अनुकूल अथवा प्रतिकूल होने से भी महाभाग्य योग के शुभ फलों पर बहुत प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए पुरुष जातकों की जन्म कुंडली में सूर्य के मेष राशि में स्थित होने से बनने वाला महाभाग्य योग सूर्य के तुला राशि में स्थित होने से बनने वाले महाभाग्य योग की अपेक्षा कहीं अधिक बलशाली होगा क्योंकि मेष में सूर्य उच्च के तथा तुला में नीच के हो जाते हैं। इसी प्रकार स्त्री जातकों की जन्म कुंडली में चन्द्रमा के वृष राशि में स्थित होने से बनने वाला महाभाग्य योग चन्द्रमा के वृश्चिक राशि में स्थित होने से बनने वाले महाभाग्य योग की अपेक्षा कहीं अधिक बलशाली होगा क्योंकि वृष में चन्द्रमा उच्च के तथा वृश्चिक में नीच के हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त कुंडली में सूर्य तथा चन्द्रमा की विभिन्न घरों में स्थिति तथा कुंडली में सूर्य तथा चन्द्रमा पर पड़ने वाले अन्य शुभ अशुभ ग्रहों के प्रभाव का भी भली भांति अध्ययन करना चाहिए तथा कुंडली में उपस्थित अन्य महत्वपूर्ण तथ्यों का भी निरीक्षण करना चाहिए और इसके पश्चात ही महाभाग्य योग के निर्माण तथा फलादेश को निश्चित करना चाहिए।*

*पुष्कल योग:*

*वैदिक ज्योतिष में पुष्कल योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार यदि किसी कुंडली में चन्द्रमा लग्नेश अर्थात पहले घर के स्वामी ग्रह के साथ हो तथा यह दोनों जिस राशि में स्थित हों उस राशि का स्वामी ग्रह केन्द्र के किसी घर में स्थित होकर अथवा किसी राशि विशेष में स्थित होने से बलवान होकर लग्न को देख रहा हो तथा लग्न में कोई शुभ ग्रह उपस्थित हो तो ऐसी कुंडली में पुष्कल योग बनता है जो जातक को आर्थिक समृद्धि, व्यवसायिक सफलता तथा सरकार में प्रतिष्ठा तथा प्रभुत्व का पद प्रदान कर सकता है।*

*अन्य शुभ योगों की भांति ही पुष्कल योग के भी किसी कुंडली में बनने तथा शुभ फल प्रदान करने के लिए यह आवश्यक है कि पुष्कल योग का किसी कुंडली में निर्माण करने वाले सभी ग्रह शुभ हों तथा इनमें से एक अथवा एक से अधिक ग्रहों के अशुभ होने की स्थिति में कुंडली में बनने वाला पुष्कल योग बलहीन हो जाता है अथवा ऐसे अशुभ ग्रहों का संयोग कुंडली में पुष्कल योग न बना कर कोई अशुभ योग भी बना सकता है। इसके अतिरिक्त कुंडली में इन सभी ग्रहों का बल तथा स्थिति आदि का भी भली भांति निरीक्षण करना चाहिए तथा इन सभी ग्रहों पर कुंडली के अन्य शुभ अशुभ ग्रहों के प्रभाव का भी अध्ययन करना चाहिए तथा तत्पश्चात ही किसी कुंडली में पुष्कल योग के बनने या न बनने का तथा इस योग के बनने की स्थिति में इसके शुभ फलों का निर्णय करना चाहिये।*

Mahabhagya Yoga and Pushkal Yoga in Astrology

*💥महाभाग्य योग, पुष्कल योग-💥*

*महाभाग्य योग :*

*वैदिक ज्योतिष में महाभाग्य योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार यदि किसी पुरुष का जन्म दिन के समय का हो तथा उसकी जन्म कुंडली में लग्न अर्थात पहला घर, सूर्य तथा चन्द्रमा, तीनों ही विषम राशियों जैसे कि मेष, मिथुन, सिंह आदि में स्थित हों तो ऐसी कुंडली में महाभाग्य योग बनता है जो जातक को आर्थिक समृद्धि, सरकार में कोई शक्तिशाली पद, प्रभुत्व, प्रसिद्धि तथा लोकप्रियता आदि जैसे शुभ फल प्रदान कर सकता है। इसी प्रकार यदि किसी स्त्री का जन्म रात के समय का हो तथा उसकी जन्म कुंडली में लग्न, सूर्य तथा चन्द्रमा तीनों ही सम राशियों अर्थात वृष, कर्क, कन्या आदि में स्थित हों तो ऐसी स्त्री की कुंडली में महाभाग्य योग बनता है जो उसे उपर बताए गए शुभ फल प्रदान कर सकता है।*

*वैदिक ज्योतिष में वर्णित अधिकतर योगों का निर्माण पुरुष तथा स्त्री जातकों की कुंडलियों में एक समान नियमों से ही होता है जबकि महाभाग्य योग के लिए ये नियम पुरुष तथा स्त्री जातकों के लिए विपरीत हैं। इसका कारण यह है कि सूर्य दिन में प्रबल रहने वाला पुरुष ग्रह है तथा चन्द्रमा रात्रि में प्रबल रहने वाला एक स्त्री ग्रह है और किसी पुरुष की कुंडली में दिन के समय का जन्म होने से, लग्न, सूर्य तथा चन्द्रमा सबके विषम राशियों में अर्थात पुरुष राशियों में स्थित हो जाने से कुंडली में पुरुषत्व की प्रधानता बहुत बढ़ जाती है तथा ऐसी कुंडली में सूर्य भी बहुत प्रबल हो जाते हैं जिसके कारण पुरुष जातक को लाभ मिलता है। वहीं पर किसी स्त्री जातक का जन्म रात में होने से, कुंडली में लग्न, सूर्य तथा चन्द्रमा तीनों के विषम राशियों अर्थात स्त्री राशियों में होने से कुंडली में चन्द्रमा तथा स्त्री तत्व का प्रभाव बहुत बढ़ जाता है जिसके कारण ऐसे स्त्री जातकों को लाभ प्राप्त होता है।*

*किन्तु महाभाग्य योग का फल केवल उपर दिये गए नियमों से ही निश्चित कर लेना उचित नहीं है तथा किसी कुंडली में इस योग के निर्माण तथा फलादेश से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण विषयों के बारे में विचार कर लेना भी अति आवश्यक है। किसी भी कुंडली में महाभाग्य योग बनाने के लिए कुंडली में सूर्य तथा चन्द्रमा दोनों का शुभ होना अति आवश्यक है क्योंकि इन दोनों में से किसी एक ग्रह के अशुभ होने की स्थिति में महाभाग्य योग या तो कुंडली में बनेगा ही नहीं अन्यथा ऐसे महाभाग्य योग का बल बहुत क्षीण होगा जिससे जातक को अधिक लाभ प्राप्त नहीं हो पायेगा जबकि इन दोनों ही ग्रहों के किसी कुंडली में अशुभ होने की स्थिति में ऐसी कुंडली में महाभाग्य योग बिल्कुल भी नहीं बनेगा बल्कि ऐसी स्थिति में कुंडली में कोई अशुभ योग भी बन सकता है जिसके चलते जातक को अपने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि कई बार किसी कुंडली में ऐसे अशुभ सूर्य तथा चन्द्रमा का संयोग होने पर भी जातक बहुत धन कमा सकता है अथवा किसी सरकारी संस्था में कोई शक्तिशाली पद भी प्राप्त कर सकता है किन्तु ऐसा जातक सामान्यतया अवैध कार्यों के माध्यम से धन कमाता है तथा अपने पद और शक्ति का धन कमाने के लिए दुरुपयोग करता है जिसके कारण ऐसे जातक का पद तथा धन स्थायी नहीं रह पाता तथा उसे अपने पद तथा धन से हाथ धोना पड़ सकता है तथा अपयश अथवा बदनामी का सामना भी करना पड़ सकता है। इसलिए कुंडली में महाभाग्य योग बनाने के लिए कुंडली में सूर्य तथा चन्द्रमा का शुभ होना अति आवश्यक है।*

*इसके अतिरिक्त किसी कुंडली में सूर्य तथा चन्द्रमा के बल तथा स्थिति का भी भली भांति निरीक्षण करना अति आवश्यक है क्योंकि इनके अनुकूल अथवा प्रतिकूल होने से भी महाभाग्य योग के शुभ फलों पर बहुत प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए पुरुष जातकों की जन्म कुंडली में सूर्य के मेष राशि में स्थित होने से बनने वाला महाभाग्य योग सूर्य के तुला राशि में स्थित होने से बनने वाले महाभाग्य योग की अपेक्षा कहीं अधिक बलशाली होगा क्योंकि मेष में सूर्य उच्च के तथा तुला में नीच के हो जाते हैं। इसी प्रकार स्त्री जातकों की जन्म कुंडली में चन्द्रमा के वृष राशि में स्थित होने से बनने वाला महाभाग्य योग चन्द्रमा के वृश्चिक राशि में स्थित होने से बनने वाले महाभाग्य योग की अपेक्षा कहीं अधिक बलशाली होगा क्योंकि वृष में चन्द्रमा उच्च के तथा वृश्चिक में नीच के हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त कुंडली में सूर्य तथा चन्द्रमा की विभिन्न घरों में स्थिति तथा कुंडली में सूर्य तथा चन्द्रमा पर पड़ने वाले अन्य शुभ अशुभ ग्रहों के प्रभाव का भी भली भांति अध्ययन करना चाहिए तथा कुंडली में उपस्थित अन्य महत्वपूर्ण तथ्यों का भी निरीक्षण करना चाहिए और इसके पश्चात ही महाभाग्य योग के निर्माण तथा फलादेश को निश्चित करना चाहिए।*

*पुष्कल योग:*

*वैदिक ज्योतिष में पुष्कल योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार यदि किसी कुंडली में चन्द्रमा लग्नेश अर्थात पहले घर के स्वामी ग्रह के साथ हो तथा यह दोनों जिस राशि में स्थित हों उस राशि का स्वामी ग्रह केन्द्र के किसी घर में स्थित होकर अथवा किसी राशि विशेष में स्थित होने से बलवान होकर लग्न को देख रहा हो तथा लग्न में कोई शुभ ग्रह उपस्थित हो तो ऐसी कुंडली में पुष्कल योग बनता है जो जातक को आर्थिक समृद्धि, व्यवसायिक सफलता तथा सरकार में प्रतिष्ठा तथा प्रभुत्व का पद प्रदान कर सकता है।*

*अन्य शुभ योगों की भांति ही पुष्कल योग के भी किसी कुंडली में बनने तथा शुभ फल प्रदान करने के लिए यह आवश्यक है कि पुष्कल योग का किसी कुंडली में निर्माण करने वाले सभी ग्रह शुभ हों तथा इनमें से एक अथवा एक से अधिक ग्रहों के अशुभ होने की स्थिति में कुंडली में बनने वाला पुष्कल योग बलहीन हो जाता है अथवा ऐसे अशुभ ग्रहों का संयोग कुंडली में पुष्कल योग न बना कर कोई अशुभ योग भी बना सकता है। इसके अतिरिक्त कुंडली में इन सभी ग्रहों का बल तथा स्थिति आदि का भी भली भांति निरीक्षण करना चाहिए तथा इन सभी ग्रहों पर कुंडली के अन्य शुभ अशुभ ग्रहों के प्रभाव का भी अध्ययन करना चाहिए तथा तत्पश्चात ही किसी कुंडली में पुष्कल योग के बनने या न बनने का तथा इस योग के बनने की स्थिति में इसके शुभ फलों का निर्णय करना चाहिये।*