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Friday, December 1, 2017

Stationery Planet in Astrology

Stationery Planet in Astrology

We know that a moving planet goes under retrogression (Vakri) from time to time.  This retrogression is an optical illusion and the planet appears to be going backwards with respect to its background. Now every planet moves in their orbit with a particular angular velocity and it appears to change when observed from Earth. The normal motion of the planet is called as direct while otherwise it is called retro. When any planet is about to change it state from direct to retro, there comes a phase where its velocity slows down very much and approaches zero before it changes it direction (negative velocity). This phase when a planet appears to be stand still (not moving) is known as Stationary phase.

Now this Stationary phase can be of two types. When it is going from direct to retro then that stationary phase is known as retro stationary. When it going from retro to direct, then the direct stationary. This stationary phase time is different for all the planets and dependent on the time of retrogression of the planet. For Mercury this can be 3-4 days, for Venus about a week and for Mars, Jupiter and Saturn it could be about 2 weeks. Any planet in stationary phase becomes very interesting and can be a life changing planet and a game changer. It can change us inside out or can change our circumstances against all odd. Eg President Donald Trump has stationary Jupiter in his chart, and at the time of elections his Jupiter MD was to start.

Identifying a stationary planet could be a tricky thing as usually it is not given in most of the software and reports and it is generally mentioned as direct or retro only. But if you know JHora then you can easily see the stationary planet in your chart. Just see the latitude/speed and if you see any negative sign in Lon Speed column then that planet is stationary.

I am observing and studying Stationary planet since quite some time, so if you have any stationary planet in your chart then kindly contact me. I want to study few charts of common people who have stationary planets and what effects it is having in their life.

What is Rahu and amazing facts about it

RAHU, THE UNCONDITIONAL KILLER??

I like to give some facts here.....
+ Rahu is a demon and many Sages believed that he is unconditional killer ( don't panic... Saturn here comes), so if he gives much wealth and prosperity, don't jump with joy..... Throughout the Ages Men have been Fighting with Demon, If Rahu gives in his MD he also snatches or loot....... Astrologers must be careful in analysis of Rahu Mars and Rahu Saturn periods.... Many ascended in high and then suddenly fell.......
+ Rahu in 3rd... 6 th and 11 th aspected by Benefic shall.be.a protective factor for native.... But in sixth house and if not aspected by benefic... It gives lots of opposition suddenly arises and you unprepared......
+ rahu is mainly responsible for sexual adultery and Pornographic addiction.... It has a tendency to draw native towards addiction and obsess with something unorthodox.....
+ Rahu is unorthodox in nature.... People Rahu in fifth house try to get much knowledge but easily get ill reputation of their agnostic and argumentative nature... ( Saturn and Jupiter can change it)
+ If all the benefics are posited in sign rising by head and aspect Rahu.. It can be a protection......
+ People with Rahu in ninth aspected by malefic or. Ninth Lord afflicted by rahu of. Changed their religion......
+ Rahu gives you fat and. Flaccidity which is difficult to shed even you hit the gym.....
+ In tenth house Rahu shed his malefic influence. But you might be bore with your job easily... And would develop a tendency to change often ( conditional)
+ Rahu in fourth house often separated natives from family in later age.......
+ may cause severe skin eczema and other skin problems.......
+ Rahu with moon make a native restless and blood pressure from very early age ( conditional)
+ with Mars it can gives burn cases and severe accidents....
+ rahu in lagna missing aspect of. Benefic may give short life ( Saturn and stars should be judged).....
+ In seventh house of aspected by malefic it gives aggressive spouse or spouse with excessive sex thirst.( Seventh and fifth lords should be judged) ....
+ and.... More.......
Don't rush to wear Gems of Rahu....give deep thoughts before that...... Rahu should be tackled by Mantra.... And other spiritual measures..... Rahu.. Ketu.... Saturn are karmic planets.....much scrutinies are needed......

Which Gemsstone is Right for me ??

राशि रत्न धारणफल
Which Gemsstone is Right for me ??

अग्नि पुराण में उल्लेख मिलता है कि जब वृत्रासुर को मारने के लिए महर्षि दधीचि की हड्डियों से अस्त्र का निर्माण किया गया तो उस समय हड्डियों के छोटे-छोटे कण,जो इधर-उधर बिखरे उनसे रत्न उत्पन्न हुए। पुराणों में यह भी उल्लेख मिलता है कि जब असुरों के भय से देवता लोग समुद्र मंथन में प्राप्त अमृत घट को लेकर भागे और उस समय अमृत के कण पृथ्वी पर जहां-जहां गिरे वे सब रत्नों के रूप में प्रकट हुए।
पौराणिक और धार्मिक मान्यता जो भी हो लेकिन यह सत्य है कि रत्न खनिज पदार्थ हैं, जो हमें पृथ्वी के गर्भ से प्राप्त होते हैं।

ज्योतिष में नव रत्न :
ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों का रंग निश्चित है और तदनुसार प्रत्येक ग्रह के लिए उसी रंग के अनुसार रत्न निर्धारित है।
माणिक सूर्य का, मोती चंद्रमा का, मूंगा मंगल का, पन्ना बुध का, पुखराज बृहस्पति का, हीरा शुक्र का, नीलम  शनि का, गोमेद राहु का और लहसुनिया केतु का रत्न है।

माणिक :
माणिक्य सूर्य रत्न है, लाल रंग का लाल।
रास जिसे भी आ जाए कर दे मालामाल।

मोती
चंद्र का रत्न मुक्ता, मन हृदय का सार।
मन-मस्तिष्क के रोग मिटावे, गुंजा होवे चार।

मूंगा
मंगल का रत्न मूंगा, एक नाम प्रवाल।
रक्त दोष का नाश करे, बजरंगी-सा लाल।
मेष लग्न या राशि का, उत्तम फल यह देत।
मूंगा शुभ माना जाए, सुख सम्पन्नता हेत।।

पन्ना
पन्ने का रंग हरा है, सद्बुद्धि की है जान।
विष व मन को दूर करे, बुद्धि करे बलवान।
मिथुन राशि के वास्ते, पन्ना है अनुकूल।
तेज बढ़े और सुख बढ़े, कभी हिले नहीं चूल।।
कन्या जिसकी राशि है,  उसको अमृत जान।
सज्जन प्राणी निज बंधु का, नहीं करते नुक्सान।

पुखराज 
पीतमणि पुखराज है, देवगुरु की जान।
संभव हो तो सोने में पहने श्रीमान।।
मीन राशि वाले इसे पहनें तर्जनी  बीच।
राज्य भाव में सुख मिले, पांव धंसे नहीं बीच।।
यदि बालिका की शादी में,  पड़ता हो अवरोध।
ज्योर्तिवद् तय करते हैं, पीतमणि पर शोध।।

हीरा
दैत्य गुरु का रत्न है, हीरा जिसका नाम।
पारखी ही जान सके, भृगु रत्न का दाम।।
वृष और तुला का जातक, हीरे से सुख पाय।
किन्तु पीतमणि के संग, कभी न पहना जाए।

नीलम
शनि देव का रत्न नीलम, तेज बहुत प्रभाव।
अकस्मात् ही हानि कर दे, अकस्मात ही लाभ।।
मकर-कुंभ के जातक को, नीलम है अनुकूल।
बिगड़े कारज सुधरेंगे, बिछे राह में फूल।।

गोमेद
गोमेद में राहु  रत्न, सस्ता पर तेज।
प्रभु भक्ति करने वाला, करे इससे परहेज।
राजनीति या सट्टाबाजी, जिसका हो व्यवसाय
ऐसा जातक छ: रत्ती का गोमेदक अपनाय।।

लहसुनिया
रत्न लहसुनिया केतु का, ज्यों बिल्ली की आंख।
घने अंधेरे में जैसे, आंख रही है झांक।।
विजय पताका फहरा दे, रत्न केतु दरवेश।
जिस राशि में बैठा हो सुने उसका संदेश।।

👉 रत्न चयन विधि :
राशि के अनुसार रत्न धारण (चंद्र राशि)।
लग्नानुसार रत्न धारण।
जन्म नक्षत्रानुसार रत्न धारण,
सूर्य राशि के अनुसार रत्न धारण।
विशोंतरी दशानुसार रत्न धारण।
जन्म अंकानुसार रत्न धारण।
समयानुसार (ग्रह गोचर आधारित) रत्न धारण।
पूर्ण #शुभलाभः प्राप्ति हेतु, रत्न धारण के पूर्व योग्य जानकार द्वारा परामर्श अवश्य लेना चाहिये।

Interesting thing about D5 Divisional Chart Astrology

Panchamsha (D5) is a kundali that we see to evaluate power and following native commands. Whatever a native wishes to execute in this world, is it happening, via followers?

Are other people listening and following/supporting the native?  or he/she is only shouting alone in vain?

Maharshi Jaimini teaches that, if natural benefics are there in the 9th house of fortune in this Varga chakra (D5)  then the native commands immense following and his word is respected by masses without opposition.
(do not remember the exact phrase but it is based on these lines only, can quote the reference if demanded).

Mahatma Gandhi has two most powerful benefics Venus and Jupiter in the 9th house in Panchamsha. The whole imperial India was obeying him!

42 very important rule of Laghu Parashari Astrology

लघु पाराशरी सिद्धांत – सभी 42 सूत्र
  
ज्‍योतिष की एक नहीं बल्कि कई धाराएं साथ साथ चलती रही हैं। वर्तमान में दशा गणना की जिन पद्धतियों का हम इस्‍तेमाल करते हैं, उनमें सर्वाधिक प्रयुक्‍त होने वाली विधि पाराशर पद्धति है। सही कहें तो पारशर की विंशोत्‍तरी दशा के इतर कोई दूसरा दशा सिस्‍टम दिखाई भी नहीं देता है। महर्षि पाराशर के फलित ज्‍योतिष संबंधी सिद्धांत लघु पाराशरी (Laghu Parashari Siddhant) में मिलते हैं। इनमें कुल जमा 42 सूत्र (42 sutras) हैं।

वर्ष 2000 में मैंने सभी सिद्धांतों को लेकर नोट्स बनाए थे। उन्‍हीं नोट्स में हर नोट के शीर्ष पर मैंने सिद्धांत का हिंदी अनुवाद सरल हिंदी में लिखा था। अगर आप केवल इन मूल सिद्धांतों को पढ़ें तो आपके दिमाग में भी ज्‍योतिष फलित के संबंध में कई विचार स्‍पष्‍ट हो जाएंगे। मैं केवल मूल सिद्धांत के हिंदी अनुवाद को पेश कर रहा हूं, इसमें न तो टीका शामिल है, न मूल सूत्र…

1. यह श्रुतियों का सिद्धांत है जिसमें में प्रजापति के शुद्ध अंत:करण, बिम्‍बफल के समान लाल अधर वाले और वीणा धारण करने वाले तेज, जिसकी अराधना करता हूं, को समर्पित करता हूं।

2. मैं महर्षि पाराशर के होराशास्‍त्र को अपनी मति के अनुसार विचारकर ज्‍योतिषियों के आनन्‍द के लिए नक्षत्रों के फलों को सूचित करने वाले उडूदायप्रदीप ग्रंथ का संपादन करता हूं।

3. हम इसमें नक्षत्रों की दशा के अनुसार ही शुभ अशुभ फल कहते हैं। इस ग्रंथ के अनुसार फल कहने में विशोंतरी दशा ही ग्रहण करनी चाहिए। अष्‍टोतरी दशा यहां ग्राह्य नहीं है।

4. सामान्‍य ग्रंथों पर से भाव, राशि इत्‍यादि की जानकारी ज्‍योति शास्‍त्रों से जानना चाहिए। इस ग्रंथ में जो विरोध संज्ञा है वह शास्‍त्र के अनुरोध से कहते हैं।

5. सभी ग्रह जिस स्‍थान पर बैठे हों, उससे सातवें स्‍थान को देखते हैं। शनि तीसरे व दसवें, गुरु नवम व पंचम तथा मंगल चतुर्थ व अष्‍टम स्‍थान को विशेष देखते हैं।

6. (अ) कोई भी ग्रह त्रिकोण का स्‍वामी होने पर शुभ फलदायक होता है। (लग्‍न, पंचम और नवम भाव को त्रिकोण कहते हैं) तथा त्रिषडाय का स्‍वामी हो तो पाप फलदायक होता है (तीसरे, छठे और ग्‍यारहवें भाव को त्रिषडाय कहते हैं।)

6. (ब) अ वाली स्थिति के बावजूद त्रिषडाय के स्‍वामी अगर त्रिकोण के भी स्‍वामी हो तो अशुभ फल ही आते हैं। (मेरा नोट: त्रिषडाय के अधिपति स्‍वराशि के होने पर पाप फल नहीं देते हैं- काटवे।)

7. सौम्‍य ग्रह (बुध, गुरु, शुक्र और पूर्ण चंद्र) यदि केन्‍द्रों के स्‍वामी हो तो शुभ फल नहीं देते हैं। क्रूर ग्रह (रवि, शनि, मंगल, क्षीण चंद्र और पापग्रस्‍त बुध) यदि केन्‍द्र के अधिपति हों तो वे अशुभ फल नहीं देते हैं। ये अधिपति भी उत्‍तरोतर क्रम में बली हैं। (यानी चतुर्थ भाव से सातवां भाव अधिक बली, तीसरे भाव से छठा भाव अधिक बली)

8. लग्‍न से दूसरे अथवा बारहवें भाव के स्‍वामी दूसरे ग्रहों के सहचर्य से शुभ अथवा अशुभ फल देने में सक्षम होते हैं। इसी प्रकार अगर वे स्‍व स्‍थान पर होने के बजाय अन्‍य भावों में हो तो उस भाव के अनुसार फल देते हैं। (मेरा नोट: इन भावों के अधिपतियों का खुद का कोई आत्‍मनिर्भर रिजल्‍ट नहीं होता है।)

9. अष्‍टम स्‍थान भाग्‍य भाव का व्‍यय स्‍थान है (सरल शब्‍दों में आठवां भाव नौंवे भाव से बारहवें स्‍थान पर पड़ता है), अत: शुभफलदायी नहीं होता है। यदि लग्‍नेश भी हो तभी शुभ फल देता है (यह स्थिति केवल मेष और तुला लग्‍न में आती है)।

10. शुभ ग्रहों के केन्‍द्राधिपति होने के दोष गुरु और शुक्र के संबंध में विशेष हैं। ये ग्रह केन्‍द्राधिपति होकर मारक स्‍थान (दूसरे और सातवें भाव) में हों या इनके अधिपति हो तो बलवान मारक बनते हैं।

11. केन्‍द्राधिपति दोष शुक्र की तुलना में बुध का कम और बुध की तुलना में चंद्र का कम होता है। इसी प्रकार सूर्य और चंद्रमा को अष्‍टमेष होने का दोष नहीं लगता है।

12. मंगल दशम भाव का स्‍वामी हो तो शुभ फल देता है। किंतु यही त्रिकोण का स्‍वामी भी हो तभी शुभफलदायी होगा। केवल दशमेष होने से नहीं देगा। (यह स्थिति केवल कर्क लग्‍न में ही बनती है)

13. राहू और केतू जिन जिन भावों में बैठते हैं, अथवा जिन जिन भावों के अधिपतियों के साथ बैठते हैं तब उन भावों अथवा साथ बैठे भाव अधिपतियों के द्वारा मिलने वाले फल ही देंगे। (यानी राहू और केतू जिस भाव और राशि में होंगे अथवा जिस ग्रह के साथ होंगे, उसके फल देंगे।)। फल भी भावों और अधिपतियो के मु‍ताबिक होगा।

14. ऐसे केन्‍द्राधिपति और त्रिकोणाधिपति जिनकी अपनी दूसरी राशि भी केन्‍द्र और त्रिकोण को छोड़कर अन्‍य स्‍थानों में नहीं पड़ती हो, तो ऐसे ग्रहों के संबंध विशेष योगफल देने वाले होते हैं।
15. बलवान त्रिकोण और केन्‍द्र के अधिपति खुद दोषयुक्‍त हों, लेकिन आपस में संबंध बनाते हैं तो ऐसा संबंध योगकारक होता है।

16. धर्म और कर्म स्‍थान के स्‍वामी अपने अपने स्‍थानों पर हों अथवा दोनों एक दूसरे के स्‍थानों पर हों तो वे योगकारक होते हैं। यहां कर्म स्‍थान दसवां भाव है और धर्म स्‍थान नवम भाव है। दोनों के अधिपतियों का संबंध योगकारक बताया गया है।

17. नवम और पंचम स्‍थान के अधिपतियों के साथ बलवान केन्‍द्राधिपति का संबंध शुभफलदायक होता है। इसे राजयोग कारक भी बताया गया है।

18. योगकारक ग्रहों (यानी केन्‍द्र और त्रिकोण के अधिपतियों) की दशा में बहुधा राजयोग की प्राप्ति होती है। योगकारक संबंध रहित ऐसे शुभ ग्रहों की दशा में भी राजयोग का फल मिलता है।

19. योगकारक ग्रहों से संबंध करने वाला पापी ग्रह अपनी दशा में तथा योगकारक ग्रहों की अंतरदशा में जिस प्रमाण में उसका स्‍वयं का बल है, तदअनुसार वह योगज फल देगा। (यानी पापी ग्रह भी एक कोण से राजयोग में कारकत्‍व की भूमिका निभा सकता है।)

20. यदि एक ही ग्रह केन्‍द्र व त्रिकोण दोनों का स्‍वामी हो तो योगकारक होता ही है। उसका यदि दूसरे त्रिकोण से संबंध हो जाए तो उससे बड़ा शुभ योग क्‍या हो सकता है ?

21. राहू अथवा केतू यदि केन्‍द्र या त्रिकोण में बैइे हों और उनका किसी केन्‍द्र अथवा त्रिकोणाधिपति से संबंध हो तो वह योगकारक होता है।
22. धर्म और कर्म भाव के अधिपति यानी नवमेश और दशमेश यदि क्रमश: अष्‍टमेश और लाभेश हों तो इनका संबंध योगकारक नहीं बन सकता है। (उदाहरण के तौर पर मिथुन लग्‍न)। इस स्थिति को राजयोग भंग भी मान सकते हैं।

23. जन्‍म स्‍थान से अष्‍टम स्‍थान को आयु स्‍थान कहते हैं। और इस आठवें स्‍थान से आठवां स्‍थान आयु की आयु है अर्थात लग्‍न से तीसरा भाव। दूसरा भाव आयु का व्‍यय स्‍थान कहलाता है। अत: द्वितीय एवं सप्‍तम भाव मारक स्‍थान माने गए हैं।

24. द्वितीय एवं सप्‍तम मारक स्‍थानों में द्वितीय स्‍थान सप्‍तम की तुलना में अधिक मारक होता है। इन स्‍थानों पर पाप ग्रह हों और मारकेश के साथ युक्ति कर रहे हों तो उनकी दशाओं में जातक की मृत्‍यु होती है।

25. यदि उनकी दशाओं में मृत्‍यु की आशंका न हो तो सप्‍तमेश और द्वितीयेश की दशाओं में मृत्‍यु होती है।

26. मारक ग्रहों की दशाओं में मृत्‍यु न होती हो तो कुण्‍डली में जो पापग्रह बलवान हो उसकी दशा में मृत्‍यु होती है। व्‍ययाधिपति की दशा में मृत्‍यु न हो तो व्‍ययाधिपति से संबंध करने वाले पापग्रहों की दशा में मरण योग बनेगा। व्‍ययाधिपति का संबंध पापग्रहों से न हो तो व्‍ययाधिपति से संबंधित शुभ ग्रहों की दशा में मृत्‍यु का योग बताना चाहिए। ऐसा समझना चाहिए। व्‍ययाधिपति का संबंध शुभ ग्रहों से भी न हो तो जन्‍म लग्‍न से अष्‍टम स्‍थान के अधिपति की दशा में मरण होता है। अन्‍यथा तृतीयेश की दशा में मृत्‍यु होगी। (मारक स्‍थानाधिपति से संबंधित शुभ ग्रहों को भी मारकत्‍व का गुण प्राप्‍त होता है।)

27. मारक ग्रहों की दशा में मृत्‍यु न आवे तो कुण्‍डली में जो बलवान पापग्रह हैं उनकी दशा में मृत्‍यु की आशंका होती है। ऐसा विद्वानों को मारक कल्पित करना चाहिए।

28. पापफल देने वाला शनि जब मारक ग्रहों से संबंध करता है तब पूर्ण मारकेशों को अतिक्रमण कर नि:संदेह मारक फल देता है। इसमें संशय नहीं है।

29. सभी ग्रह अपनी अपनी दशा और अंतरदशा में अपने भाव के अनुरूप शुभ अथवा अशुभ फल प्रदान करते हैं। (सभी ग्रह अपनी महादशा की अपनी ही अंतरदशा में शुभफल प्रदान नहीं करते हैं – लेखक)

30. दशानाथ जिन ग्रहों के साथ संबंध करता हो और जो ग्रह दशानाथ सरीखा समान धर्मा हो, वैसा ही फल देने वाला हो तो उसकी अंतरदशा में दशानाथ स्‍वयं की दशा का फल देता है।

31. दशानाथ के संबंध रहित तथा विरुद्ध फल देने वाले ग्रहों की अंतरदशा में दशाधिपति और अंतरदशाधिपति दोनों के अनुसार दशाफल कल्‍पना करके समझना चाहिए। (विरुद्ध व संबंध रहित ग्रहों का फल अंतरदशा में समझना अधिक महत्‍वपूर्ण है – लेखक)

32. केन्‍द्र का स्‍वामी अपनी दशा में संबंध रखने वाले त्रिकोणेश की अंतरदशा में शुभफल प्रदान करता है। त्रिकोणेश भी अपनी दशा में केन्‍द्रेश के साथ यदि संबंध बनाए तो अपनी अंतरदशा में शुभफल प्रदान करता है। यदि दोनों का परस्‍पर संबंध न हो तो दोनों अशुभ फल देते हैं।

33. यदि मारक ग्रहों की अंतरदशा में राजयोग आरंभ हो तो वह अंतरदशा मनुष्‍य को उत्‍तरोतर राज्‍याधिकार से केवल प्रसिद्ध कर देती है। पूर्ण सुख नहीं दे पाती है।

34. अगर राजयोग करने वाले ग्रहों के संबंधी शुभग्रहों की अंतरदशा में राजयोग का आरंभ होवे तो राज्‍य से सुख और प्रतिष्‍ठा बढ़ती है। राजयोग करने वाले से संबंध न करने वाले शुभग्रहों की दशा प्रारंभ हो तो फल सम होते हैं। फलों में अधिकता या की अंतरदशा पापफल ही देती है। उन महादशा के स्‍वामी पापी ग्रहों के संबंधी शुभग्रह की अंतरदशा मिश्रित (शुभ एवं अशुभ) फल देती है। पापी दशाधिप से असंबंधी योगकारक ग्रहों की अंतरदशा अत्‍यंत पापफल देने वाली होती है।

39. मारक ग्रहों की महादशा में उनके साथ संबंध करने वाले शुभग्रहों की अंतरदशा में दशानाथ मारक नहीं बनता है। परन्‍तु उसके साथ संबंध रहित पापग्रह अंतरदशा में मारक बनते हैं।

40. शुक्र और शनि अपनी अपनी महादशा में अपनी अपनी अंतरदशा में अपने अपने शुभ फल देते हैं। यानी शनि महादशा में शुक्र की
अंतरदशा हो तो शनि के फल मिलेंगे। शुक्र की महादशा में शनि के अंतर में शुक्र के फल मिलेंगे। इस फल के लिए दोनों ग्रहों के आपसी संबंध की अपेक्षा भी नहीं करनी चाहिए।

41. दशम स्‍थान का स्‍वामी लग्‍न में और लग्‍न का स्‍वामी दशम में, ऐसा योग हो तो वह राजयोग समझना चाहिए। इस योग पर विख्‍यात और विजयी ऐसा मनुष्‍य होता है।

42. नवम स्‍थान का स्‍वामी दशम में और दशम स्‍थान का स्‍वामी नवम में हो तो ऐसा योग राजयोग होता है। इस योग पर विख्‍यात और विजयी पुरुष होता है।

महर्षि पाराशर के लघु पाराशरी फलित सिद्धांत सूत्र में कुल जमा ये ही 42 सूत्र दिए गए हैं। बाद में मनीषियों ने इन फलित सूत्रों के आधार पर कई बड़े ग्रंथ रचे हैं, जिनमें भाव कारकों, दशाओं, राजयोग, मृत्‍युयोग आदि पर विशद वर्णन किया है। निजी तौर पर मुझे मेजर एसजी खोत की लघु पाराशरी सिद्धांत पुस्‍तक प्रिय है। इसमें खोत ने हर बिंदू का विस्‍तार से वर्णन किया है। मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स से छपी यह पुस्‍तक हर ज्‍योतिष प्रेमी की लाइब्रेरी में जरूर होनी चाहिए।

Interesting facts about Sun and Moon

As you all are aware, Janma Iagna or Ascendant is connected with Sun's movement in the sky from east to west in day time and from West to east at night time. So Lagna or Ascendant has much to do with Sun  moving in the sky.

    Let us think about Moon. Moon is moving around the earth. Moon gets strength when it goes far from Sun. On purnima or poonam or full moon day, Moon is at its fullest form. On amavasya or amaas or new moon day, Moon is with Sun and so it has no strength at all. In short, when Moon is visible in the sky at night between 10 pm to 4 am around, it means it is far from Sun so strong in the birth chart.

         Now we are coming to the point. When birth is at night time and Moon is in the sky, it means Moon is anywhere from 8th to 12th house and Sun is anywhere from 2nd to 6th house.  Ok  ?

  Now remember if Moon is either in 9th or 10th or 11th house and Sun is either in 3rd or 4th or 5th house then Moon is stronger then Sun so Moon chart or Chandra lagna chart is MORE IMPORTANT then Birth chart or Janma lagna. Always give first preference to MOON CHART and so  benefic and malefic planets transits from Moon are more  important in the life of such native. For example 7th house from the Moon will give more clear picture for  marriage.

(In such cases if Moon is in Taurus or Libra then Sadesati will not do any harm and they people will prosper with the blessing of Saturn as Saturn is Yoga karak for Taurus and Libra.)
  
     And yes, I dont insist anybody to follow my researches. What I feel, what I experience in my practice I write. Whether to believe or not to believe is up to you.

Most Mysterious Nature Planet Ketu.

Most Mysterious Nature Planet Ketu.

Because it's very difficult to know abt ketu results. Ketu is south node or Chaya grah in Astrology. Ketu represent as past life. Rahu is materialistic where as ketu is spirituality both are quite opposite to each other and there results are different. Now I'll discuss some important points.

‌1.About ketu what ever I observed in my experience I am going to discuss about it. One thing we have to understand that ketu doesn't like materialism it simply takes you away from materialistic real & ultimate knowledge.

‌2. That’s why where it sits , it destroys all the materialistic side of that house and gives sufferings. In this sense you can call this planet as malefic. Where Rahu is always busy in engaging one into materialistic world  at the same time ketu is burning into ashes all materialism – comes in its own contact.  

‌3. Ketu represents egoistic and selfish related deeds in the past life. Here you have to understand the difference between Rahu & Ketu representation. Both are representing egoistic and selfish deeds but, Rahu is of present live and Ketu is of Past live. one will suffer due to those selfish & egoistic deeds which at the present age it is indicating(house & planet association).

‌4.  Rahu & Ketu – planets are dependent planets, means – they give result on the basis of association of planet and House or house lord. If the planet gets any connection of malefic planet or house so Ketu will project some bad results as well, like -mental illness, sudden bad changes in life, undetected or untreated diseases, will suffer from wrong treatment, worries, anxiety, sudden unexpected obstacles in life etc.  

‌5.  Ketu is always hate any relationship. It may be girlfriend, wife or of any kind. If any of those come under the influence of ketu so there will be some hidden problems that can not be seen by the world apparently. If ketu is in malefic house so the effect would be more.

‌6. Ketu gives good results when aspects beneficiary planet the native is very interested in spritual and beliefs in culture and traditions of religion.

‌7. Ketu gives incurable deseas like aids and unknown deseas and sudden death due to deseas.

8. If ketu is well placed and aspects Jupiter than native may be pop in church religious and cultural in some cases surgeon also because ketu is like " one hit 2 pice"

9. But I observed that ketu gives us new way of life to led and gives such an experience in our life to adopt our self. I think ketu teaches us about real fact of life. It tells about we are all here for only for our karma's and we won't take anything from this world.

10. Lastly ketu is malfic but gives moksha karka planet. So be good do good. One day we will reach the house of moksha.

Astrological Remedy for Saturn Planet

शनिदेव को प्रसन्न कंरने के बिलकुल सरल और उतम उपाय
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हिन्दू धर्म परंपराओं में दण्डाधिकारी माने गए शनिदेव का चरित्र भी असल में, कर्म और सत्य को जीवन में अपनाने की ही प्रेरणा देता है। अगर आप शनिदेव को प्रसन्न कंरना चाहते हैं तो कुछ बिलकुल सरल और उतम उपाय हैं ! शनिवार का व्रत और शनिदेव पूजन किसी भी शनिवार के दिन शुरू कर सकते हैं। इस व्रत का पालन करने वाले को शनिवार के दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके शनिदेव की पूजा करनी चाहिए । शुभ संकल्पों को अपनाने के लिए ही शनिवार को शनि पूजा व उपासना बहुत ही शुभ मानी गई है। यह दु:ख, कलह, असफलता से दूर रख सौभाग्य, सफलता व सुख लाती है। किसी भी तरह के शनि दोष से इस तरह आपको मुक्ति मिल सकती है, जानिए शनि देव को प्रसन्न करने के उपाय:-

🔘 *अगर आप शनि को प्रसन्न करना चाहते हैं तो शुक्रवार की रात काला चना पानी में भिगोएं। शनिवार को वह काला चना, जला हुआ कोयला, हल्दी और लोहे का एक टुकड़ा लें और एक काले कपड़े में उन्हें एक साथ बांध लें। पोटली को बहते हुए पानी में फेंके जिसमें मछलियां हों। इसे प्रक्रिया को एक साल तक हर शनिवार दोहराएं। यह शनि के अशुभ प्रभाव के कारण उत्पन्न हुई बाधाओं को समाप्त कर देगा।*

🔘 *इस तरीके से भी आप शनि देव को प्रसन्न रख सकते हैं, घोड़े की नाल शनिवार को किसी लोहार के यहां से इसे अंगूठी की तरह बनवा लें। शुक्रवार की रात इसे कच्चे दूध या साफ पानी में डूबा कर रख दें। शनिवार की सुबह उस अंगूठी को अपने बाएं हाथ की मध्यमा में पहन लें। यह आपको तत्काल परिणाम देगा।*

🔘 *शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष के चारों ओर सात बार कच्चा सूत लपेटें इस दौरान शनि मंत्र का जाप करते रहना चाहिए, यह आपकी साढ़ेसाती की सभी परेशानियों को दूर ले जाता है। धागा लपेटने के बाद पीपल के पेड़ की पूजा और दीपक जलाना अनिवार्य है। साढ़ेसाती के प्रकोप से बचने के लिए इस दिन उपवास रखने वाले व्यक्ति को दिन में एक बार नमक विहीन भोजन करना चाहिए।*

*शनिदेव को आप काले रंग की गाय की पूजा करके भी प्रसन्न कर सकते हैं। इसके लिए आपके गाय के माथे पर तिलक लगाने के बाद सींग में पवित्र धागा बांधना होगा और फिर धूप दिखानी होगी। गाय की आरती जरूर की जानी चाहिए। अंत में गाय की परिक्रमा करने के बाद उसको चार बूंदी के लड़्डू भी खिलाएं। यह शनिदेव की साढ़ेसाती के सभी प्रतिकूल प्रभावों को रोकता है।*

🔘 *शनि देव को सरसों का तेल बहुत ही पसंद है। शनि को खुश करने के लिए शनिवार को पीपल के पेड़ की पूजा करनी चाहिए और उस पर सरसों का तेल चढ़ाना चाहिए। माना जाता है कि सूर्योदय से पूर्व पीपल की पूजा करने पर शनि देव अत्यधिक प्रसन्न होते हैं।*

🔘 *शनिवार की शाम पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए, इसके बाद पेड़ के सात चक्कर लगाने चाहिए। इस पूजा के बाद किसी काले कुत्ते को 7 लड्डू खिलाने से शनि भगवान प्रसन्न होते हैं और सकारात्मक परिणाम देते हैं।*

🔘 *शनिवार के दिन आप अपने हाथ की लंबाई का 19 गुणा लंबा एक काला धागा लें उसे एक माला के रूप में बनाकर अपने गले में धारण करें। यह अच्छा परिणाम देगा और भगवान शनि को आप पर कृपावान बनाएगा।*

🔘 *किसी भी शनिवार आटे (चोकर सहित) दो रोटियां बनाएं। एक रोटी पर सरसों का तेल और मिठाई रखें जबकि दूसरे पर घी। पहली रोटी (तेल और मिठाई वाली) एक काली गाय को खिलाएं उसके बाद दूसरी रोटी (घी वाली) उसी गाय को खिलाएं। अब शनिदेव की प्रार्थना करें और उनसे शांति और समृद्धि की कामना करें।*

🔘 *शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए आपको उगते सूरज के समय लगातार 43 दिनों तक शनिदेव की मूर्ति पर तेल चढ़ाना चाहिए। यह ध्यान में रखें कि शनि देव को प्रसन्न करने की यह विधि शनिवार के दिन ही आरंभ करनी चाहिए।*

🔘 *हर शनिवार बंदरों को गुड़ और काले चने खिलाएं, इसके अलावा केले या मीठी लाई भी खिला सकते हैं। यह भी शनिदेव के अशुभ प्रभाव को समाप्त करने में काफी मददगार होता है।*

🔘 *इसके अलावा भगवान शनिदेव की पूजा करते समय इस मंत्र को पढ़ते हुए उन्हें चन्दन लेपना चाहिए-*

भो शनिदेवः चन्दनं दिव्यं गन्धादय सुमनोहरम् |

विलेपन छायात्मजः चन्दनं प्रति गृहयन्ताम् ||

🔘 *भगवान शनिदेव की पूजा में इस मंत्र का जाप करते हुए उन्हें अर्घ्य समर्पण करना चाहिए-*

ॐ शनिदेव नमस्तेस्तु गृहाण करूणा कर |

अर्घ्यं च फ़लं सन्युक्तं गन्धमाल्याक्षतै युतम् ||

🔘 *इस मंत्र को पढ़ते हुए भगवान श्री शनिदेव को प्रज्वलीत दीप समर्पण करना चाहिए-*

साज्यं च वर्तिसन्युक्तं वह्निना योजितं मया |

दीपं गृहाण देवेशं त्रेलोक्य तिमिरा पहम्. भक्त्या दीपं प्रयच्छामि देवाय परमात्मने |

🔘 *इस मंत्र को पढ़ते हुए भगवान शनिदेव को यज्ञोपवित समर्पण करना चाहिए और उनके मस्तक पर काला चन्दन (काजल अथवा यज्ञ भस्म) लगाना चाहिए-*

परमेश्वरः नर्वाभस्तन्तु भिर्युक्तं त्रिगुनं देवता मयम् |

उप वीतं मया दत्तं गृहाण परमेश्वरः ||

🔘 *इस मंत्र को पढ़ते हुए भगवान श्री शनिदेव को पुष्पमाला समर्पण करना चाहिए-*

नील कमल सुगन्धीनि माल्यादीनि वै प्रभो |
मयाहृतानि पुष्पाणि गृहयन्तां पूजनाय भो ||

🔘 *भगवान शनि देव की पूजा करते समय इस मंत्र का जाप करते हुए उन्हें वस्त्र समर्पण करना चाहिए-*

शनिदेवः शीतवातोष्ण संत्राणं लज्जायां रक्षणं परम् |

देवलंकारणम् वस्त्र भत: शान्ति प्रयच्छ में ||

🔘 *शनि देव की पूजा करते समय इस मंत्र को पढ़ते हुए उन्हें सरसों के तेल से स्नान कराना चाहिए-*

भो शनिदेवः सरसों तैल वासित स्निगधता |
हेतु तुभ्यं-प्रतिगृहयन्ताम् ||

🔘 *सूर्यदेव पुत्र भगवान श्री शनिदेव की पूजा करते समय इस मंत्र का जाप करते हुए पाद्य जल अर्पण करना चाहिए-*

ॐ सर्वतीर्थ समूदभूतं पाद्यं गन्धदिभिर्युतम् |

अनिष्ट हर्त्ता गृहाणेदं भगवन शनि देवताः ।

🔘 *भगवान शनिदेव की पूजा में इस मंत्र को पढ़ते हुए उन्हें आसन समर्पण करना चाहिए-*
ॐ विचित्र रत्न खचित दिव्यास्तरण संयुक्तम् |

स्वर्ण सिंहासन चारू गृहीष्व शनिदेव पूजितः ||

🔘 *इस मंत्र के द्वारा भगवान श्री शनिदेव का आवाहन करना चाहिए-*

नीलाम्बरः शूलधरः किरीटी गृध्रस्थित स्त्रस्करो धनुष्टमान् |

चतुर्भुजः सूर्य सुतः प्रशान्तः सदास्तु मह्यां वरदोल्पगामी ||