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Friday, May 12, 2017

मान सम्मान प्राप्ति के उपाय

मान सम्मान प्राप्ति के उपाय

1👉मान-सम्मान, प्रतिष्ठा व लक्ष्मी प्राप्ति के लिए किए
जाने वाली पूजा,उपाय / टोटकों के लिए पश्चिम दिशा की
ओर मुख करके बैठना शुभ होता है।

2👉गुरु ग्रह को सौभाग्य, सम्मान और समृद्धि नियत करने वाला
माना गया है।शास्त्रों में यश व सफलता के इच्छुक हर इंसान के
लिये गुरु ग्रह दोष शांति का एक बहुत ही सरल उपाय बताया
गया है।यह उपाय औषधीय स्नान के रूप में प्रसिद्ध है इसे हर
इंसान दिन की शुरुआत में नहाते वक्त कर सकता है। नहाते वक्त
नीचे लिखी चीजों में से थोड़ी मात्रा में कोई भी एक चीज जल में डालकर नहाने से गुरु दोष शांति होती है और व्यक्ति को
समाज में मान सम्मान की प्राप्ति होती है । - गुड़, सोने की
कोई वस्तु ,हल्दी, शहद, शक्कर, नमक, मुलेठी, पीले फूल, सरसों।

3👉समाज में उचित मान सम्मान प्राप्ति के लिए रात में सोते
समय सिरहाने ताम्बे के बर्तन में जल भर कर उसमें थोड़ा शहद के
साथ कोई भी सोने /चाँदी का सिक्का या अंगूठी रख लें फिर
सुबह उठकर प्रभु का स्मरण करने के बाद सबसे पहले बिना कुल्ला
किये उस जल को पी लें ...जल्दी ही आपकी यश ,कीर्ति बड़ने
लगेगी ।

4👉रात को सोते समय अपने पलंग के नीचे एक बर्तन में थोड़ा सा
पानी रख लें, सुबह वह पानी घर के बाहर डाल दें इससे रोग, वाद-
विवाद, बेइज्जती, मिथ्या लांछन आदि से सदैव बचाव होता
रहेगा ।

5👉दुर्गा सप्तशती के द्वादश (12 वें ) अध्याय के नियमित पाठ
करने से व्यक्ति को समाज में मान सम्मान और मनवांछित लाभ
की प्राप्ति होती है ।

6👉समाज में मान सम्मान की प्राप्ति के लिये कबूतरों/
चिड़ियों को चावल-बाजरा मिश्रित कर के डालें, बाजरा शुक्रवार को खरीदें व शनिवार से डालना शुरू करें।

7👉अपने बच्चे के दूध का प्रथम दाँत संभाल कर रखे, इसे चाँदी के
यंत्र में रखकर गले या दाहिनी भुजा में धारण करने से व्यक्ति
को समाज में मान सम्मान की प्राप्ति होती है।

8👉यदि आप चाहते हैं कि आपके कार्यों की सर्वत्र सराहना हो,
लोग आपका सम्मान करें, आपकी यश कीर्ति बड़े तो रात को
सोने से पूर्व अपने सिरहाने तांबे के बर्तन में जल भरकर रखें और
प्रात:काल इस जल को अपने ऊपर से सात बार उसार करके किसी
भी कांटे वाले पेड़ की जड़ में डाल दें। ऐसा नियमित 40 दिन
तक करने से आपको अवश्य ही लाभ मिलेगा।

9👉ज्येष्ठा नक्षत्र में जामुन के वृक्ष की जड़ लाकर अपने पास
संभल कर रखने से उस व्यक्ति को समाज से / प्रसाशन से अवश्य
ही मान सम्मान की प्राप्ति होती है |

10👉गले, हाथ या पैर में काले डोरे को पहनने से व्यक्ति को समाजमें सरलता से मान सम्मान की प्राप्ति होती है, उसे हर क्षेत्र में
विजय मिलती  है।

Female and Astrology Yoga

ज्योतिष और स्त्रियों के कुछ महत्त्वपूर्ण योग | Female and Astrology Yoga
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महिलाओं से सम्बंधित कुछ महत्त्वपूर्ण योग, कुंडली के विभिन्न योग, विधवा योग, तलाक योग, पति से सम्बंधित कुछ योग, सुख योग, दुखी जीवन योग, बंध्यापन के योग, संतति योग
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स्त्री का पुरुष के जीवन में बहुत ही मुख्य स्थान है, इसी कारण ज्योतिष में स्त्री वर्ग पर भी पर्याप्त विचार किया जाता है।
जहां तक पुरुष और नारी के सहज सनातन संबंधों का प्रश्न है, ज्योतिष उन्हें अभिन्न अंग मानकर विचार करता है. कुंडली का सातवा स्थान एक दुसरे का सूचक है अर्थान स्त्री और पुरुष  के कुंडली में सातवाँ स्थान एक दुसरे का प्रतिनिधित्व करता है।
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आइये यहाँ हम स्त्री की कुंडली में स्थित ग्रहों को थोडा समझने का प्रयास करे -
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1. लग्न और चन्द्रमा , मेष , मिथुन , सिंह तुला धनु, कुम्भ, राशियों में स्थित हो तो स्त्री में पुरुषोचित गुण जैसे बलिष्ट देह, मुछों की रेखा, क्रूरता, कठोर स्व, आदि होते हैं. चरित्र की दृष्टि से इनकी प्रशंसा नहीं की जा सकती है . क्रोध और अहंकार भी इनके प्रकृति में होता है।
2. लग्न और चन्द्रमा के सम राशियों में जैसे वृषभ  , कर्क, कण, वृश्चिक, मकर, मीन में हो  तो स्त्रियोंचित गुण पर्याप्त मात्रा में होते है . अच्छी देह, लज्जा, पति के प्रति निष्ठा , कुल मर्यादा के प्रति आस्था, आदि प्रकृति में रहते है।
3. स्त्री के कुंडली में सातवे स्थान में शनि हो और उस पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो उसका विवाह नहीं होता।
4. सप्तम स्थान का स्वामी शनि के साथ स्थित हो या शनि से देखा जा रहा हो तो बड़ी उम्र में विवाह होता है।
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विधवा योग :
1. जन्म कुंडली में सातवे इस्थान में मंगल हो और उस पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो विधवा योग बनता है . ऐसी लड़कियों का विवाह बड़ी उम्र में करने पर दोष कम हो जाता है .
2. आयु भाव में या चंद्रमा से सातवे स्थान में या आठवे इस्थान में कई पाप गृह हो तो विधवा योग होता है।
3. 8 या 12 स्थान में मेष या वृश्चिक राशि हो और उसमे पाप गृह के साथ रहू हो तो विधवा योग होता है।
4. लग्न और सातवे स्थान में पाप गृह होने से भी विधवा योग बनता है।
5. चन्द्रमा से सातवे , आठवे, और बारहवे स्थान में शनि , मंगल हो और उन्पर भी पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो विधवा योग अबंता है।
6. क्षीण या नीच का चन्द्र 6 या 8 स्थान में हो तो भी विधवा योग बनता है
7. 6 और 8 स्थान का स्वामी एक दुसरे के स्थान में हो और उन पर पाप ग्रहों की दिष्टि हो तो विधवा योग बनता है।
8. सप्तम कस्वामी अष्टम में और अष्टम का स्वामी सप्तम में हो और इनमे से किसी को पाप गृह देख रहा हो तो विधवा योग बनता है।
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तलाक योग :
1. सूर्य का सातवे स्थान में होना तलाक की संभावनाए बनता है।
2. सातवे स्थान में निर्बल ग्रहों के होने से और उनपर शुभ ग्रहों के होने से एक पति स्वर तलाक देने पर सुसरे विवाह के योग बनते है।
3. सातवे इस्थान में शुभ और पाप दोनों गृह होने से पुनर्विवाह के योग बनते है।
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पति से सम्बंधित कुछ योग :
1. लग्न में अगर मेष , कर्क, तुला , मकर राशि हो तो पति परदेश में रहने वाला होता हो या घुमने फिरने वाला होता हो।
2. सातवे स्थान में अगर बुध और शनि स्थित हो तो पति पुरुश्त्वहीन होता हो।
3. सातवे स्थान खाली हो और उस पर किसी गृह की दृष्टि भी न हो तो पति नीच प्रकृति का होता है।
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सुख योग :
1. बुध और शुक्र लग्न में हो तो कमनीय देह वाली , कला युक्त, बुध्हिमान और पति प्रिय होती है।
2. लग्न में बुध और चन्द्र के होने से चतुर, गुणवान, सुखी और सौभाग्यवती होती है।
3. लग्न में चन्द्र और शुक्र के होने से रूपवती , सुखी परन्तु ईर्ष्यालु होती है।
4. केंद्र स्थान के बलवान होने पर या फिर चन्द्र,, गुरु और बुध इनमे से कोई 2 गृह के उच्च होने पर तथा लग्न, में वरिश, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर, मीन, होतो समाज्पूज्य स्त्री होती है।
5. सातवे स्थान में शुभ ग्रहों के होने से गुणवती, पति का स्नेह प्राप्त करने वाली और सौभाग्य शाली स्त्री होती है।
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बंध्यापन के योग :
1. सूर्य और शनि के आठवे स्थान में होने से बंध्या होती है।
2. आठवे स्थान में बुध के होने से एक बार संतान होकर बंद हो जाती है।
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संतति योग :
1. सातवे स्थान में चन्द्र या बुध हो तो कन्याये अधिक होंगी।
2. सातवे स्थान में रहू हो तो अधिक से अधिक 2 पुत्रियाँ होंगी पुत्र होने में बढ़ा हो।
3. नवे स्थान में शुक्र होने से कन्या का योग बनता है।
4. सातवे स्थान में मंगल हो और उसपर शनि की दृष्टि हो अथवा सातवे स्थान में शनि , मंगल, एकत्र हो तो गर्भपात होता रहता है।
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नोट : किसी भी निष्कर्ष पर पहुचने से पहले विशेषज्ञ की राय जरूर लेना चाहिए।

Thursday, May 11, 2017

Importance of stones of planets and their results

*#रत्न धारण करने का महत्व एवम ग्रहों के फल एवम कुफल*

*आओ हम १२ राशियों व १२ लग्नो एवम जन्म नक्षत्रो के द्वारा नव रत्नों से अपने दांपत्य जीवन को चिंद भिन्द होना शादी न होना दरिद्रता , रोग , पुत्र प्राप्ति न होना, व्यापार में असफलता , नोकरी में बाधा और जीवन को अपूर्ण प्रतीत करना , दुर्भाग्य और प्रेम विवाह व विद्या में बाधा , उत्पन्न होना , ये सब ग्रहों के द्रष्टी और युक्तियो के कारण है !*

*आओ इनसे कैसे छुटकारा पाए :-*

*विभिन्न प्रकार की प्रचलित मान्यताओ के अनुसार विशिष्ठ सिधान्त है नव रतन धारण करने के सरल और सहज उपाए इस प्रकार है।*

*👉🏿१- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्म राशी , जन्म दिन , जन्म मास , जन्म नक्षत्र को ध्यान में रखते हुए ही रत्न धरण किया जाना चाहिए।*

*👉🏿२- लग्नेश , पंचमेश , सप्तमेश , भाग्येश और कर्मेश के क्रम के अनुसार एवम महादशा , प्रत्यंतर दशा के अनुसार ही रत्न धारण करना चाहिए।*

*👉🏿३ - छटा, आठवा और बरवा भाव को कुछ विद्वान मारकेश मानते है , मारकेश रत्न कभी धारण न करे।*

*४- रत्न का वजन पोने रत्ती में नही होना चाहिए। पोनरत्ती धारण करने से व्यक्ति कभी फल फूल नही पाता है। ऐसा व्यक्ति का जीवन हमेशा पोना ही रहता है*

*👉🏿५- जहाँ तक रत्न हमेशा विधि विधान से तथा प्राण प्रतिष्ठा करवा कर , शुभ वार , शुभ समय अथवा सर्वार्ध सिद्धि योग , अमृत सिद्धि योग या किसी भी पुष्प नक्षत्र में ही शुभ फल देता है।*

*👉🏿६- जहा तक संभव हो रत्न सार्वशुद्ध ख़रीदे और धारण करे और दोष पूर्ण रत्न न ख़रीदे जैसे दागदार , चिरादार , अन्य दो रंगे , खड्डा , दाडाक दार , अपारदर्शी (अंधे) रत्न अकाल मृत्यु का घोतक होते है*

*रतन धारण करने कि विधि*

*किसी भी रतन को धारण करने से पूर्व सामान्यता  जिस गृह के रतन धारण कररहे है उसके दिन उसी गृह के नक्षत्रो का योग जब बने ,उस दिन धारण करें रतन धारण करने से पूर्व रतन को कच्चे दूध से धोकर गंगाजल से धो ले पुनः अगरबती या धूप दिखाकर उसके अधिपति एवं इस्टदेव का ध्यान करते हुए धारण करें किसी भी रतन को धारण करने से पूर्व मेरे से सलाह अवश्य लेनी चाहिए कोई भी रतन कितने वजन का होना चाहिए,यह निर्णय उस व्यक्ति कोजनम् पत्रिका में गृह कि स्तिथि ,वर्त्तमान , महादशा , अंतदर्शा , कालचक्र दशा , अस्तोत्री दशा योगिनी दशा इत्यादि पर विचार करके ही करना चाहिए यह निर्णय उस व्यक्ति कि जनम पत्रिका में गृह कि स्तिथि वर्त्तमान महादशा , अंतरदशा , कालचक्र दशा , अष्टोत्तरी दशा , योगिनी दशा इत्यादि दशा पर विचार करके ही धारण करना चाहिये*
*जब एक से अधिक रतन पहनने हो तो रतनो का आपस में सकारात्मक तालमेल होना आवशयक हैं*
*यदि परस्पर विरोधी रतनो का धारण किया जाये तो ये रतन हानिकारक भी सिद्ध हो सकते हैं कई भी व्यक्ति किसी भी समय किसी न किसी गृह कि महादशा में ही रहता है यह गृह जिस स्थति में होंगे उसी प्रकार का फल प्रदान करते हैं रत्न को अंगूठी में अथवा कसी भी रूप में धारण कर सकते है परन्तु यद् रखे शरीर से रतन स्पर्श अवस्य करें तभी लाभदायक होते हैं*

*👉🏿१- माणिक*
*सूर्य को बलशाली बनाने के लिए माणिक रत्न को धारण किया जाता है, सूर्य सब ग्रहों का राजा है। किसी जातक कुंडली में सूर्य बलिष्ट एवम नीच का हो सकता है। माणिक सिंह लग्न का आजीवन रत्न है एवम भाग्येश रत्न मूंगा है। जो आजीवन लाभप्रद रहेगा|

*बलिष्ठ सूर्य :-*
बलिष्ठ सूर्य की अनुकूलता की पहचान सरकारी अधिकारी प्रसन्न मुद्रा में रहना , कोर्ट कचेरी राज्य कार्य में सफलता प्रदान करता है तथा अच्छी आयु प्रदान करता है सूर्य खून से एमव मष्तिस्क पर अधिपत्य रखता है।

*👉🏿नीच सूर्य :-*
यदि किसी जातक का सूर्य अशुभ अर्थात नीच का है तो उसके भी कई अशुभ फल हो सकते है जैसे नींद न आना , रक्त सम्बन्धी कई प्रकार की बिमारीय , चहरे की आकृति का विकृत हो जाना।
माणिक या उसके उप रत्न सुलेमानी हकिक, लालड़ी या अन्य लाल पत्थर - रवि पुष्प या मघा नक्षत्र , उत्तरा फाल्गुनी , पूर्वा फाल्गुनी अथवा सर्वार्थ सिद्धियोग व अमृत सिद्धि योग में ही धारण करे|

*👉🏿मोती रत्न तथा चन्द्र*
मोती कर्क लग्न का आजीवन रत्न है एवम भाग्येश रत्न पुखराज है। जो आजीवन लाभ प्रद रहेगा ! मोती रत्न चन्द्रमा की शांति एवम चन्द्रमा को स्ट्रोंग बनाने के लिए धारण किया जाता है किसी व्यक्ति की कुंडली में चन्द्र बलिष्ठ एवम कमजोर हो सकता है। मान सागरीय के मतानुसार चन्द्रमा को रानी भी कहा गया है। बलिष्ठ चन्द्रमा से व्यकि को राज कृपा मिलती है , उसके राजकीय कार्यो में सफलता मिलती है , मन को हर्षित करता है, विभिन्न प्रकार की चिन्ताओ से मुक्त करता है
स्त्रियो के नथुनी में मोती धारण करने से लज्जा लावारण अखंड सोभाग्य की प्राप्ति होती है और पति पत्नी में प्रेम प्रसंग या प्रेमिका को पाने के लिए मोती रत्न धारण करने से प्रेम परवान चढ़ाता है। मोती रत्न धारण करने से उदर रोग भी ठीक होता है जिस जातक का बलिष्ठ चन्द्रमा हो , सुख और समृद्धि प्रदान कर रहा हो , माता की लम्बी आयु वाले व्यक्तिओ को चन्द्र की वास्तुओ का दान नही लेना चाहिए

*👉🏿श्रेष्ट मोती की पहचान*
मोती की माला हो या अंगूठी का रत्न मोती , हमेशा गोल मोती को श्रेष्ट माना गया है मटर के समान गोल मोती मूल्यवान माना गया है तथा मन को मुग्ध करने वाला भी माना गया है
सर्व श्रेष्ठ मोती मुख्यतः पांच प्रकार के होते है
१- सुच्चा मोती
२- गजमुक्ता मोती*
३- बॉस मोती
४- सर्प दन्त मोती
५- सुअर मोती
मोती के उपरत्न में ओपल एवम मून स्टोन आते है
मोती के दोष
चपता मोती बुद्धि का नाश करने वाला होता है बेडोल मोती (टेढ़ा मेढा) एश्वर्या को करने वाला होता है। जिस मोती पर कोई भी फुल हुआ भाग या बिंदु तथा रिंग बना हो ऐसे मोती दुर्घटना कराने वाले होती है। अब्रत्त मोती , चपटा या दुरंगा या अन्य किसी रंग के चिटे या लखीर मृत्यु का घोतक होते है।

*👉🏿स्त्री एवम पुरूष जातक का मंगल कितना अमंगल*
मंगल की शांति एवम मंगल को स्ट्रोंग बनाने के लिए मूंगा रत्न को धारण किया जाता है। किसी जातक की कुंडली में मंगल कमजोर एवम बलवान हो सकता है। मंगल एक पापी ग्रह है जिसके किसी जातक की कुंडली में गलत युक्ति अवम द्रष्ठी की वजह से यह बहुत नेष्ठ प्रभावों को दे सकता है यदि अष्टमेश मंगल , अष्ठम में हो तो ऐसे जातक की कई बार दुर्घटना होती है तथा ऐसे जातक की अकाल मृत्यु होती है चतुर्थ मंगल लग्नेश राहु या पाप ग्रह की द्रष्ठी होने से धार दार हथियार या दुर्घटना का योग बनता है १,४,७,८,१२ वे भाव में मंगल पति पत्नी दोनों का विवाह के पश्चात नाश करता है ऐसा मंगल बड़ा अमंगलकरी होता है
मेष एवम ब्रश्य्चिक लग्न वाले जातको को आजीवन मूंगा रत्न धारण करना चाहिए क्योकि ऐसे जातको का मूंगा आयुष रत्न कहा गया है। मेष एवम ब्रश्य्चिक लग्न वाले जातको का भाग्येश रत्न क्रमशः पुखराज एवम मोती है।

*👉🏿श्रेष्ठ मूंगा के गुण*
इटालियन मूंगा , ताइबान और होनकोंग मूंगा को श्रेष्ठ मूंगा माना गया है अवम देशी मूंगा को मध्यम फल देने वाला माना गया है।
श्रेष्ठ मूंगा के पहिचान :-
१. मूंगा के इर्द गिर्द खून जमने लगता है
२. मूंगा को रुई पे सूर्य के प्रकाश में रखने पर आग लग जाती है
३. मूंगा के जलने की दुर्गन्ध बालो के जलने जैसी दुर्गन्ध आती है
४. मूंगा के ऊपर धी या पानी की बूंद रखने पर वह यथावत रखी रहती है
५. ओवल शेप एवम तिकोन मूंगा सर्वश्रेष मूंगा माना गया है

*👉🏿मूंगा के दोष*
दागदार , चिरादार , अन्य दो रंगे , खड्डा , दाडाक दार मूंगा नेष्ठ फल देता है अकाल मृत्यु का घोतक होते है अतः इस प्रकार का मूंगा न धारण करे। सफेद मूंगा दरिद्रता प्रदान करता है यह भी नेष्ठ कारक होता है

*👉🏿पन्ना रत्न :-*
पन्ना रत्न मिथुन लग्न अवम कन्या लग्न का आजीवन रत्न है एवम मिथुन लग्न का भाग्येश रत्न नीलम और कन्या लग्न वालो का भाग्येश रत्न हीरा या ओपल है। पन्ना रत्न वक्री बुद्ध की शांति के लिए तथा बुद्ध को शक्तिशाली बनाने , विद्या की सफलता , कारोबारी सफलता एवम वाणी दोष के लिए धारण किया जाता है बुद्ध त्वचा रोग कारक ग्रह माना गया है जैसे एलर्जी , खोसी अवम चमड़ी पे चिकत्ते पड़ना , उसका फटना मुख्य कारन है पन्ना रत्न के लिए चाँदी धातु शत्रु रत्न है , कांसा , सोना में शुभ है एवम पंच धातु में हर्षित होता है। पन्ना रत्न हो चादी धातु में कभी न पहिनने क्योकि चांदी उसका शत्रु है जिसमे यह बहुत नेष्ठ फल दायक है।
*👉🏿श्रेष्ठ पन्ना की पहिचान*
पन्ना कोलंबिया , जाम्बिया का पन्ना सबसे श्रेष्ठ पन्ना है। सपोटा पन्ना मध्यम पन्ना है पन्ना के सम्बन्ध में एक बात कही गयी है "पन्ना दागी और गुरु त्यागी सच्चा होता है" जिस पन्ने पर रेशा या नश हो वोही श्रेष्ठ और मूल्यवान पन्ना होता है मखवलि रंग का सर्वश्रेष्ठ पन्ना होता है तथा पन्ना का पारदर्शी होना आवश्यक है।
*👉🏿पन्ना के दोष*
अन्धा पन्ना धन वैभव का नाश कर देता है चीरा या दरक दार पन्ना अशुभता की निशानी का घोतक है। अन्य रंग के चीटे और दुरंगा पन्ना छीटे वाला पन्ना मृत्यु का बुलावा देता है। पन्ना बहुत कोमल रत्न माना गया है जरा सा छूने से अखंडित हो जाता है। पन्ने का उपरत्न दनाफिरिंग तथा ओनेक्स है।

*👉🏿पुखराज* *(रत्नराज)*
धनु लग्न एवम मीन लग्न वाले जातको के लिए पुखराज आजीवन रत्न है। धनु लग्न के लिए भाग्येश रत्न मानिक और मीन लग्न के लिए भाग्येश रत्न मूंगा आजीवन लाभ प्रद रहेगा। गुरु की शांति के लिए एवम कमजोर गुरु को शक्तिशाली बनाने के लिए पुखराज को धारण किया जाता है। पुखराज पाच रत्नों में प्रमुख माना गया है जिसमे से देव गुरु ब्रहस्पति के शुभ कर्मो में और मंगलकार्य में प्रवर्त्त और सभी की सुख सम्पन्नता और एश्वर्य को प्रदान करता है बुद्धि वर्दक है पागलपन एवम अकस्मात् मृत्यु की आशंका को दूर करता है। पारदर्शक और अमलताश के पुष्प जैसा रंग वाला पुखराज शुभ फल दायक प्रशिद्धि प्रदान करने वाला होता है। ब्रहस्पति पुराण के मतानुसार शीतवीर, कफ वात , शामक , विशाग्न इसकी उत्पत्ति है। पुखराज कुष्ट और चरम रोग का निवारक है अवम कई प्रकार भी व्यादियो को भी नष्ठ करता है।
*👉🏿श्रेष्ठ पुखराज की पहिचान*
आपेक्षिक घनत्व कठोरता , शुद्ध अमलताश जैसा पिला रंग और इसको रगड़ने पर बिजली उत्पन्न होती है पारदर्शी पुखराज सर्वश्रेष्ठ मानागया है इसमें बेरुज , हरित मणि आदि और सोना इसकी धातु है।
*👉🏿पुखराज के दोष*
धुंधला पुखराज वैभव का नाश करता है। चीरा , गद्दा , दड़क दार या सफेद छीटा होने पर अकाल मृत्यु का घोतक होता है काले या अन्य रंग के छीटा होने पर रोग , शोक अवम संतान को कष्ट प्रदान करने वाला होता है।

*👉🏿💎हीरा💎*
हीरा शुक्र की शांति के लिए एवम उसको शक्ति शाली बनाने के लिए धारण किया जाता है। वृषभ और तुला लग्न वाले जातको का आजीवन रत्न हीरा है एवम वृषभ लग्न वालो का भाग्येश रत्न नीलम और तुला लग्न वालो का भाग्येश रत्न पन्ना है जो जातक को आजीवन लाभप्रद है। हीरा एश्वर्य का प्रतीक है पुत्र प्राप्ति चाहने वाले जातक श्रेष्ठ हीरा धारण करे यही बहुमूल्य और कल्याणकारी होगा। हीरा चमकदार, पारदर्शक रत्न है मेष और ब्रश्चिक लग्न वालो को सप्तमेश होने के कारण हीरा उनको सुख में ब्रद्धि करता है , कन्या कुम्भ और मकर लग्न वालो के लिए परम योग करक है , जातक को संतान एवम राज कृपा मिलती है।
*👉🏿श्रेष्ठ हीरे की पहिचान*
सिंघाड़े की आकृति वाला हीरा जातक हो धन संपदा एश्वर्य और उन्नति का कारक है। अंक ६ का शुक्र प्रतिनिधित्व करता है यदि अंक ६ का जातक हीरा धारण करे तो उनका जीवन भी हीरा की तरह चमक जाता है जल में भी हीरा किरण की तरह तेरता रहे निर्मल हीरा विद्युत अग्नि का प्रतिनिधित्व करता है इन्द्रधनुष के सामान उत्तम वाला हिरा गोल कुंडा खान में भी पाया जाता है यह सबसे श्रेष्ठ माना गया है। हीरे पर विष का प्रभाव नही चढ़ता है। वरामिहिर के अनुसार "शुद्ध स्वेत रंग वाला हीरा ब्राह्मण को धारण करना चाहिए , लाल पिला रंग लिए हुए वाला हीरा छत्रिय वर्ण को , शिरीष पुष्प के सामान रंग वाला (कपूरी) हीरा वैश्यों को तथा काले रंग वाला हीरा सूद्रो को शुभ फल देने वाला होता है।
*👉🏿हीरे के दोष*
गड्ढा युक्त , तेलिया , चमक रहित , पिली रेखाओ वाला , काली बूंद वाला , पंडू रंग , कौआ के पैर जैसा वाला हीरा पुत्र का नाश बज्र भय , विष का भय , शत्रु की बढोतरी और एश्वर्य का नाश करता है

*👉🏿नीलम*
नीलम शनि की शांति एवम शनि देव को अपनी कुंडली की शक्तिशाली बनाने के लिए धारण किया जाता है। नीलम सभी रत्नों में मात्र एक ऐसा रत्न है जो अपना प्रभाव और कुप्रभाव अत्यंत शीघ्र दिखता है। नीलम महा शक्तिशाली रत्न है जो प्रभाव इस प्रकार दिखता है जैसे रंक को राजा और राजा को रंक बना दे। यदि कुंडली में शनि मारकेश हो तो नीलम रत्न कभी जातक को धारण नही करना चाहिए। इससे जातक को शीघ्र छति पहुच सकती है जैसे दुर्घटना का होना , धन की हानि होना , चोट का लगना , जहा तक जातक की मृत्यु भी हो सकती है। इसलिए जातक को हमेशा नीलम रत्न धारण करने से पहले किसी योग्य गणितग्य जोतिग्य (विद्वान) से परामर्श करना परम आवश्यक है।
मकर एवम कुम्भ लग्न वाले जातको के लिए आजीवन रत्न नीलम है एँवम मकर लग्न का भाग्येश रत्न पन्ना अवम कुम्भ लग्न का भाग्येश रत्न हीरा है। यह एश्वर्य एवम आयु प्रदान करता है। नीलम को सोने अथवा चाँदी में कभी न पहने। क्योकि सोना अथवा चाँदी नीलम की शत्रु धातु है जिसमे यह प्रताड़ित करता है पंच धातु में नीलम हर्षित होता है और लोहे में अति श्रेष्ठ फल प्रदान करता है। नीलम का उपरत्न लाजवर्त , फिरोजा , सुलेमानी हकिक , शंग सितारा है
जजेमानी हकिक सुलेमानी हकिक लाजवर्त
*👉🏿श्रेष्ठ नीलम की पहिचान*
श्रेष्ठ नीलम चिकना कोमल पूरे नीलम का एक जैसा रंग होना चाहिए। श्रेष्ठ नीलम में नीली रस्मिया फूटती है नीलम चिकना, मोटा , सुढोल और आभावान नीलम मनको मुग्ध करता है पारदर्शी नीलम सबसे श्रेष्ठ होता है। नीलम धारण करने पर अच्छे सपने दिखता है जैसे अच्छे शहर की यात्रा करवाना , अचानक किसी अच्छे मित्र से संधि करवाना , किसी अच्छे संयोग की प्राप्ति , शत्रु से बैर भाव खत्म करवाकर शत्रु को भी मित्र बनवा देता है।
*👉🏿नीलम के दोष*
१. अपारदर्शी नीलम (अँधा नीलम) अशुभ बृद्धि करता है धन का हरण करता है।
२. चीरा या कौए के पैर जैसी लाखिरे दिखना शत्रुओ की बृद्धि करता है।
३. चपटा नीलम बुद्धि का नाश करता है। एवम संतान की हानि करवाता है।
४. सफेद (फीके रंग वाला) या दुरंगा नीलम अकाल मृत्यु का घोतक होता है।
५. गड्ढा , जाला , धुंधला नीलम जातक के धन , वैभव और आयु का नाश करता है।

*👉🏿गोमेद*
जिरकान एक फारसी शब्द है , गोमेद को जिरकान भी कहते है गोमेद एक राहु का रत्न है जिसे जातक राहु की शांति एवम बलिष्ठ बनाने के लिए धारण किया जाता है। राहु एक छाया ग्रह है यह पर्टिकुलर किसी एक राशी पर नही होता है , जिस जातक की कुंडली में प्रथम , चतुर्थ और पंचम , नवम और दशम केंद्र स्थानों में उच्छ का हो तो अच्छा फल देता है , बहु धंधी कर्यो में जैसे मछ्ली पालन , मॉस मदिरा व्यापार , एवम दश्मेश राहु राजनीति का प्रतिनिधित्व करवाता है। यदि जातक गोमेद को धारण करता है तो जातक को पक्का राजनेता बनवाता है।
*👉🏿गोमेद रत्न श्रेष्ठ फल कब प्रदान करता है ?*
रवि, गुरु, बुद्ध में पुष्प नक्षत्र हो या सर्वार्थ शिद्धि योग एवम आद्रा , सत्विषा , स्वाति राहु के विशेष नक्षत्र है इसमे ही राहु रत्न गोमेद धारण करने से असीम लाभान्वित करता है। गोमेद हमेशा ६,११ एवम १३ कैरेट का ही धारण करना चाहिए ये शुभ फल प्रदान करता है। ७,९,१४,१६ कैरेट का गोमेद कभी धारण नही करना चाहिए ये नेष्ठ फल प्रदान करता है। गोमेद हमेशा जातक को संध्या काल में ही धारण करना चाहिए ये पूर्ण फलित होता है।
*👉🏿विशेष :-* दुतीय भाव , अष्टम भाव और द्वादश भाव में राहु होने से यह मारकेश बना देता है इसलिए कभी इन जातको को गोमेद धारण नही करना चाहिए।
*श्रेष्ठ गोमेद*
गोमेद मुख्यतः चार प्रकार का होता है।
१- शिलोनि गोमेद - यह शिलोंग शहर में पाया जाता है
२. उड़ीषा का गोमेद
३. गया का गोमेद
४. धूम्र वर्ण गोमेद (अँधा गोमेद) - यह गोमेद कम्बोडिया में पाया जाता है
गोमेद के भेद वर्ण के हिसाब से चार प्रकार के होते है। जो बतलाते है की अलग अलग वर्ण के लोगो को अलग - अलग रंग के प्रकार का गोमेद धारण करना चाहिए , जो जातक को श्रेष्ठ फल प्रदान करते है :-
*वर्णों के हिसाब से गोमेद के भेद :-*
१. ब्राह्मण वर्ण को पीला गोमेद (गौ मूत्र जैसा अथवा शहद के रंग जैसा श्रेष्ठ मनागाया है)
२. क्षत्रिय वर्ण को लाल गोमेद (मेहरून रंग जैसा या पांडु रंग श्रेष्ठ मनागाया है)
३. वैश्य वर्ण को पीला रंग लाल रंग लिए हुए (बरगंडी रंग जैसा श्रेष्ठ मनागाया है)*
४. सूद्र वर्ण के लिए काले रंग का गोमेद , धुएं के रंग जैसा अपारदर्शी गोमेद श्रेष्ठ मानागया है|*

*👉🏿श्रेष्ठ गोमेद की पहचान*
श्रेष्ठ गोमेद बिलकुल साफ़ और पारदर्शी होना चाहिए , लकड़ी की बुरादे में गोमोद को रगड़ने से चमक पैदा होती है। असली गोमेद गोबर के अन्दर दबाने से अपनी लस्टर छोड़ता है उसकी खूबसूरती बढ़ती है।
*👉🏿गोमेद के दोष*
लखीर बाला गोमेद (कौए के पैर जैसे निसान वाला) गोमेद नही होना चाहिए ये रोग और शोक प्रदान करता है। गद्दा युक्त अथवा दुरंगा गोमेद अकाल मृत्यु को प्रदान करता है। जल युक्त गोमेद जिसमे जल जैसे छीटे (सफेद अवम काल रंग के अन्य रंग के छीटे ) नही होने चाहिए यह पुत्र की आयु का नाश करता है । गोमेद चमक रहित भी नही होना चाहिऐ|

*👉🏿लहसुनिया*
लहसुनिया केतु रत्न है। उपरत्न टाइगर स्टोन है। जब किसी जातक की कुंडली में केतु १, ४, ५, ९ , ११ वे भाव में उच्छ का होकर बेठा हो या उच्छ ग्रहों पर द्रष्टिया डाल रहा हो तभी जातक को लहसुनिया रत्न धारण करना चाहिए। तब यह रत्न शुभ प्रभाव देता है। गोमेद एवम लहसुनिया अन्य रत्नों के साथ धारण नही करना चाहिए। जैसे मानिक , मूंगा , पुखराज , मोती , नीलम के साथ धारण करने से पितृ दोष में अनिष्ठ प्रभाव आरम्भ हो जाते है एवम नेष्ठ फल प्रदान करने लगता है। जैसे अवोंनती होना , ब्लेम लग्न , वेतन ब्रद्धि रुक जाना , कोर्ट कचेरी में फस जाना , शत्रुओ की बढोतरी होना , पति पत्नी में तलाक की स्तिथि बन जाना , अचानक दुर्घटना करवाना , चोरी एवम चरित्र का पतित होना, दिवालिया होना आदि लक्छन है !
केतु के रोग की उत्पत्ति :- केतु के बक्री होने पर या फिर नीच के हो जाने पर केतु कई प्रकार के रोग भी देता है।
जैसे -
१. कानो से कम सुनाई देना
२. रिश्तेदारो द्वारा विरोध उत्पन्न होना
३ - कन्धा अवम कमर जोड़ो में दर्द होना
४- मूत्राशय , जयेन्द्रि रोग अथवा यूरिन इन्फेक्शन
५ . जरायु का टेढ़ा हो जाना अथवा अनियमित माहवारी (केंसर जैसे लक्चन उत्पन्न करता है )*
६. अंडकोष में सुजन आजाना और बबाशीर (अर्श रोग) आदि*

*👉🏿श्रेष्ठ लहसुनिया की पहचान*
श्रेष्ठ लहसुनिया हिलाने पर उसकी पट्टी घुमती है। जैसे बिल्ली की आँख का रेटीना रात में चमकती है वैसे ही लहसुनिया पर बनी धरिया चमकती है। एक धारी वाली लहसुनिया सबसे श्रेष्ठ मानी गली है।
*👉🏿लहसुनिया के दोष*
१. लहसुनिया खंडित नही होना चाहिए। खंडित लहसुनिया धन एवम कीर्ति का नाश करता है।
२. दाग दार लहसुनिया अकाल मृत्यु का घोतक होता है लहसुनिया पर किसी भी अन्य प्रकार के दाग नही होना चाहिए।
३. लहसुनिया दुरंगी या चपटी नही होना चाहिए। यह अशुभ ब्रद्धि करती है
४. खुनी लहसुनिया या विकृत आकृति वाली लहसुनिया रोग और शोक प्रदान करती है।
५. लहसुनिया अंधी नही होना

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