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Sunday, April 16, 2017

दशा फल का आधार

दशा फल का आधार

हमे किसी ग्रह का पूर्ण रूप से फल कब मिलेगा| ज्योतिष में इसी के लिय दशाओं का वर्णन किया गया है जिसमे मह्रिषी पराशर जी द्वारा वर्णित विशोंतरी दशा को मुख्य रूप से महत्व दिया जाता है हालांकि हर ग्रह का गोचर के हिसाब से भी जातक पर हर समय प्रभाव रहता है लेकिन ग्रह का मुख्य प्रभाव उसकी दशा में मिलता है| अक्सर हम देखते है की किसी की कुंडली में कारक ग्रह काफी अच्छी सिथ्ती में होते है लेकिन फिर भी उसको उन ग्रह का लाभ नही मिल रहा होता है जिसका कारण ये होता है की उस जातक को वो दशा भुगतने का मौका ही नही मिला| या फिर ये भी देखा जाता है की किसी जातक के भाग्येश की दशा है और उसको कोई लाभ नही मिल रहा है जिसका कारक उस ग्रह की कुंडली में सिथ्ती होती है और उसी का वर्णन आज इस पोस्ट में कर रहा हूँ|
हमारी कुंडली में जिस भी ग्रह की दशा है उसके लिय सबसे पहले तो हमे ये देखने की आवश्यकता होती है की जिस ग्रह की दशा है वो कुंडली में कारक है या नही| यदिकोई ग्रह कारक है तो उसकी दशा में शुभ फल मिलने के योग बनते है| कारक ग्रह की ये खाशियत होती है की वो जिस भी भाव में विराजमान होता है और जिस भी भाव को देखता है उसके फलों में विरधी करता है|
उसके बाद हमे ग्रह की सिथ्ती देखनी होती है की ग्रह किस भाव में है और किस राशि में कितने अंश पर है| इस से हमे ग्रह के बल का पता चलता है | जैसे कोई ग्रह दिशा बलि है तो अपनी दशा में जातक को अपनी दिशा में ले जाकर सफलता के योग बनाता है| यदि कोई ग्रह स्थान बली है तो उस स्थान से सम्बन्धित पूर्ण फल जातक को देता है| यदि कोई ग्रह चेष्ठाबली है तो जातक के प्रयत्नों का जातक को पूरा फल देता है| यानी किसी बल के आधार पर उसके फल निर्भर करते है| साथ ही हमे ये देखना होता है की ग्रह की ईस्ट रश्मियाँ उसकी कस्ट रेशमी से अधिक है यानही और उसकी शुभ रेशमी उसकी अशुभ रेशमी से अधिक है या नही यानी इन सब बातों को ध्यान में रखकर यदि हम किसी ग्रह के फलको देखेंगे तो हम फल के बारे में काफी सटीकता से जान सकते है| यदि कोई ग्रह इन सब प्रिसिथियों से विपरीत सिथ्ती में हो या जैसे नीच अस्त शत्रु छेत्री आदि हो तो उसकी दशा में शुभ फल की आस कम ही कर सकते है| सबसे मुख्य बात है की ग्रह स्न्धिग्त तो नही है क्योंकि ऐसा माना गया है की उंच का ग्रह बलों से युक्त ग्रह यदि संधिगत हो तो अपना पूर्ण फल नही दे पाता|
कुंडली में मुख्य रूप से त्रिकोण भावों जैसे पहले पांचवें और नोवें भाव के मालिक ग्रह कारक होते है| उसके बाद केंद्र के ग्रह अपनी सिथ्ती के अनुसार कारकत्व प्राप्त करते है|
अब प्रश्न आता है की किसी भी ग्रह की दशा काफी लम्बी समय अवधि की होती है तो क्या वो हमेशा ही अपना शुभ अशुभ फल देगा ऐसा कदापि नही होगा| इसी समस्या के हल के लिय महादशा में अन्तर्दशा का प्रावधान रखा गया है| अन्तर्दशा के फल के अध्ययन के लिय महादशा नाथ और अन्तर्दशा नाथ केबिच क्या सम्बन्ध बन रहा है ये मुख्य रूप से प्रभाव डालता है| यदि किसी कारक ग्रह की दशा है और उस ग्रह की कुंडली में सिथ्ती से ऐसे ग्रह की दशा आती है जी महादशा नाथ से केंद्र यात्रिकोण में है तो दशा शुभ फल देती है लेकिन यदि ये दोनों ग्रह एक दुसरे से दुसरे बारवें या छटे आठवें भाव मेंहै तो इनकी दशा अशुभ फल देगी| साथ हीये बात भी मुख्य प्रभाव डालती है की पंचधा मत्री चक्र के अनुसार इनका सम्बन्ध मित्र या शत्रू आदि कैसा बन रहा है| इनदोनों ग्रहों में उस ग्रह का ज्यादा फल जातक को मिलेगा जो ज्यादा बली होगा|
कुंडलीमें सबसे बुरी दशा अस्ठ्म भाव के स्वामी की मानी गई है क्योंकि ये सबसे पापी ग्रह माना जाता है इसका कारण ये है की ये भाग्य भाव से बारवें यानी भाग्य के व्यय का भाव का स्वामी है और भाग्य का नाश हर किसी को नुक्सान देगा ये सर्वविदित है| हालांकि कुछ विशेष प्रिसिथितियों जैसे विपरीत राजयोग का निर्माण हो रहा हो तो अस्थ्मेश की दशा भी जातक को लाभ दे देती है|
आप दशा फल के लिय ये देखें की ये दशा आपकी कुंडली के कारक ग्रह की है या नही और उसकी सिथ्ती कुंडली में क्या है| क्योंकि अक्सर देखा जाता है की यदि किसी की कुंडली में शनी या राहू की दशा चल रही हो तो जातक डर जाता है की अब पता नही शनी देव राहू मुझे कैसा फल देंगे हालांकि ज्योतिषीय नियमो के अनुसार इन दोनों की दशा किसी भी जातक केबारे न्यारे भी कर सकती है| इसी प्रकार किसी सोम्य ग्रह भी काफी खराब फल दे सकती हैयदि उसकी सिथ्ती कुंडली में खराब है|
उपाय आप आपके विश्वासु ज्योतिष या गुरु से जान सकते हो।

कंटक शनि में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है कि उसे अस्टकवर्ग में बिंदु कितने मिले हैं अगर 32 से ऊपर बिंदु हैं तो परेशानी है और उससे कम है तो उसका फल कम मिलता है ।
दूसरा हमें नक्षत्र से नक्षत्र भी देखना चाहिए कि शनि का नक्षत्र क्या है और कंटक शनि का नक्षत्र क्या है उसके हिसाब से ताराबल देखकर इसका फाइनल करना चाहिए ।
तीसरी बार तो समझ में आती है वह यह है कि जिस अंश पर शनि आपकी कुंडली में हैं अगर उसी अंशों पर गोचर में है तो कंटक शनि का फल उस समय प्रभावी हो सकता है अगर यह ऊपर की दो बातें लागू होती है तब इसी तरह कंटक शनि को.देखे।
और भी चीजें हैं जिन्हें देखकर हमें फलादेश करना चाहिए ।
अगर दशापति का नक्षत्रपति दुःस्थान का मालिक हुआ तो दशापति का शुभ प्रभाव कम हो जायेगा तथा दुष्प्रभाव बढ़ जायेगा,तथा यदि दशापति उच्च का तथा शुभ दायक हुआ तो पूर्ण शुभ फल देगा ।

PROHIBITED PAIRS OF NAKSHTRAS FOR MARRIAGE COMPATIBILITY

*PROHIBITED PAIRS OF NAKSHTRAS FOR MARRIAGE COMPATIBILITY*

 Some Nakshatras are said to afflict each other. A marriage between people who have their Moons in Nakshatras, which afflict each other, should not take place. This is a list of the prohibited pairs:

NAKHSTRA  VEDHAS:-

 Ashwini (1) and Jyeshta (18);

 Bharani (2) and Anuradha (17);

 Krittika (3) and Vishakha (16);

 Rohini (4) and Swati (15);

 Mrigashira (5) and Dhanistha (23);

 Ardra (6) and Shravana (22);

 Punarvasu (7) and Uttara Ashadha (21);

 Pushya (8) and Purva Ashadha (20);

 Ashlesha (9) and Mula (19);

 Magha (10) and Revati (27);

 Purva Phalguni (11) and Uttara Bhadrapada (26);

 Uttara Phalguni (12) and Purva Bhadrapada (25);

 Hasta (13) and Shatabhishak (24).