Google

Monday, December 24, 2018

4th House in Vedic Astrology (Hindi)

*चतुर्थ भाव का महत्व*

*चतुर्थ भाव सुख स्थान या मातृ स्थान के नाम से जाना जाता है| इस भाव में व्यक्ति को प्राप्त हो सकने वाले समस्त सुख विद्यमान है इसलिए इसे सुख स्थान कहते हैं| मनुष्य का प्रथम सुख माता के आँचल में होता है| केवल वही है जो व्यक्ति की तब तक रक्षा करती है जब तक वह अपने सुख को अर्जित करने में सक्षम न हो जाए| चतुर्थ भाव व्यक्ति की माता से संबंधित समस्त विषयों की जानकारी भी देता है इसलिए इसे मातृ भाव भी कहा जाता है| तृतीय भाव से दूसरा भाव होने के कारण यह भाई-बहनों के धन को भी सूचित करता है| ज्योतिष में यह विष्णु स्थान है तथा एक शुभ भाव माना जाता है| परंतु यदि शुभ ग्रह इस भाव का स्वामी हो तो उसे केन्द्राधिपत्य दोष लगता है|यह केंद्र भावों में से एक भाव माना गया है| मानव जीवन में इस भाव का बहुत अधिक महत्व है| किसी भी मनुष्य के पास भौतिक साधन कितनी भी अधिक मात्रा में क्यों न हों यदि उसके जीवन में सुख-शांति ही नही तो क्या लाभ? इसलिए इस भाव से मनुष्य को प्राप्त होने वाले सभी प्रकार के सुखों का विचार किया जाता है| जन्मकुंडली में यह भाव उत्तर दिशा तथा अर्द्धरात्रि को प्रदर्शित करता है| इस भाव से सुख के अतिरिक्त माता, वाहन, शिक्षा, वक्षस्थल, पारिवारिक सुख, भूमि, कृषि, भवन, चल-अचल संपति, मातृ भूमि, भूमिगत वस्तुएं, मानसिक शांति आदि का विचार किया जाता है| चतुर्थ भाव मुख्य केंद्र स्थान है| “द्वितीय केंद्र” के नाम से प्रसिद्ध यह कालपुरुष के वक्षस्थल का कारक है| यही कारण है कि इस जीवन में पर्याप्त सुख व आनंद प्राप्त करने के लिए व्यक्ति का हृदय निर्मल होना चाहिए|*

*चतुर्थ भाव से निम्नलिखित विषयों का विचार किया जाता है-*

*सुख- चतुर्थ भाव से हम किसी भी व्यक्ति के जीवन के समस्त सुखों का विश्लेषण करते हैं| यह भाव मातृ स्नेह एवं उनसे प्राप्त संरक्षण, पारिवारिक सदस्यों, निवास, वाहन आदि से प्राप्त होने वाले सुखों को दर्शाता है|*

*माता- यह भाव व्यक्ति की माता, उनका स्वभाव, चरित्र तथा विशेषताओं को सूचित करता है| मनुष्य की माता को जो सुख-सुविधाएं प्राप्त होंगी वे सब इस भाव से तथा मातृ कारक चन्द्र के आधार पर देखी जाती हैं|*

*निवास(घर)- यह भाव मनुष्य के निवास स्थान अथवा घर का भी प्रतीक है| किसी भी व्यक्ति के सुखमय जीवन के लिए उसके पास निवास स्थान होना अनिवार्य है व्यक्ति केवल गृह में ही विश्राम कर सकता है, अन्य किसी स्थान पर नहीं| मनुष्य का निजी घर उसका अतिरिक्त सुख ही है|*

*संपति- यह भाव चल व अचल दोनों प्रकार की संपति को दर्शाता है| शुक्र चल संपति जैसे मोटर, वाहन का कारक है तथा मंगल अचल संपति का कारक होता है|*

*कृषि- यह भाव भूमिगत वस्तुओं का प्रतीक है इसलिए यह स्थान कृषि से भी जुड़ा हुआ है| चतुर्थ भाव का दशम भाव व मंगल से संबंध होना कृषि अथवा कृषि-उत्पादों से संबंधित व्यवसाय का सूचक है|*

*जीवनसाथी का कर्मस्थान- यह भाव सप्तम स्थान(जीवनसाथी) से दशम है इसलिए यह जीवनसाथी के कार्यक्षेत्र व उसकी आय को बताता है|*

*शिक्षा- यह भाव व्यक्ति की शिक्षा संबंधी संभावनाओं को दर्शाता है| मनुष्य कितनी शिक्षा प्राप्त करने में सक्षम है और वह किस प्रकार की शिक्षा ग्रहण करेगा यह इस भाव से ज्ञात हो सकता है|*

*संतान अरिष्ट- यह भाव पंचम स्थान से द्वादश है अतः यह संतान के अरिष्ट का सूचक माना जाता है| इस भाव के स्वामी की दशा-अंतर्दशा में किसी भी व्यक्ति की संतान को शारीरिक कष्ट हो सकता है|*

*मानसिक शांति- यह भाव व्यक्ति की मानसिक शांति का प्रतीक भी है| चतुर्थ स्थान व चतुर्थेश के पीड़ित होने से व्यक्ति मानसिक शांति से वंचित हो सकता है| इसलिए इस भाव से यह भी पता चलता है कि मनुष्य को मानसिक शांति प्राप्त होगी या नहीं| इस भाव के पीड़ित होने से व्यक्ति को मनोरोग हो सकते हैं|*

*वक्षस्थल- यह भाव कालपुरुष के वक्षस्थल का सूचक है| इस भाव तथा इसके स्वामी के पीड़ित होने से व्यक्ति को छाती या वक्षस्थल से संबंधित रोग अथवा कष्ट हो सकता है|*

*वाहन- इस भाव से वाहन संबंधी सूचना भी प्राप्त होती है| किसी व्यक्ति के पास वाहन होगा या नहीं, वाहन की संख्या व उनसे मिलने वाले लाभ की जानकारी भी इस भाव से पता चल सकती है| यदि चतुर्थ भाव, चतुर्थेश तथा वाहन कारक शुक्र कुडंली में बली हों तो मनुष्य को उत्तम वाहन सुख प्राप्त होता है| इसके विपरीत इन घटकों के पीड़ित होने से व्यक्ति वाहन सुख से वंचित हो जाता है|*

*स्थान परिवर्तन- यह भाव व्यक्ति के निवास से जुड़ा है अतः यदि चतुर्थ स्थान, चतुर्थेश पर शनि, सूर्य, राहु तथा द्वादशेश का प्रभाव हो तो इस पृथकता जनक प्रभाव के कारण मनुष्य को अपना घर-बार, जन्मस्थान तक छोड़ना पड़ता है|जन-सेवा- चतुर्थ स्थान जनता से संबंधित भाव है| इसलिए यदि चतुर्थ भाव, चतुर्थेश एवं चन्द्र के साथ लग्नेश का युति अथवा दृष्टि द्वारा संबंध हो तो मनुष्य जनसेवा व जनहितकारी कार्यों को कर सकता है|*

*चतुर्थ भाव में ग्रहों के प्रभाव-*

*1. चौथे घर में सूर्यः इस घर में सूर्य हो तो जातक का जीवन उदासीपूर्ण और दुखों से भरा होता है। व्यक्ति का पूरा जीवन भ्रमण करते गुजर जाता है। जातक पैतृक संपत्ति का मालिक बनता है। चौथे घर में बैठा सूर्य जातक को दर्शनशास्त्र का ज्ञानी, जादू-टोना की जानकारी या चालबाजी करने वाला बनाता है। इस घर का सूर्य यदि मंगल या शनि से प्रभावित हो रहा हो तो जातक को जीवन में कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।*

*2. चौथे घर में चंद्रमाः जातक के पास स्वयं का निवास स्थान होगा। सगे-संबंधियों से मान-सम्मान मिलेगा। जातक ईगो रखने वाला और झगड़ालू प्रवृति का होगा। यदि चंद्रमा इस घर में पीड़ित हुआ तो जातक को माता से दूर करा देगा। चौथे घर में बैठे चंद्रमा परर यदिद गुरु की दृष्टि नहीं पड़ रही हो तो जातक कामुक प्रवृति में लिप्त रहेगा।*

*3. चौथे घर में मंगलः चौथे घर में मंगल की स्थित जातक के माता या दोस्तों से दूरियां को दर्शाता है। कम उम्र में ही जातक के सिर से मां का साया उठ जाता है। राजनीति के क्षेत्र में जातक को सफलता मिलती है। खुद का घर भी जातक के पास होता है लेकिन घर में खुशियां नहीं रहती हैं।*

*4. चौथे घर में बुधः इस घर में यदि बुध बैठा हो तो जातक का झुकाव शिक्षा अथवा प्रशासनिक विभाग की तरफ अधिक रहेगा। जातक सत्तारूढ़ सरकार का आलोचक होगा साथ ही अपने जीवन में बहुत ख्याति प्राप्त करेगा। जातक के पिता जमीन से जुड़े व्यक्ति होंगे। चौथे घर का बुध जातक को दूर की यात्रा का सुख प्रदान कराता है साथ ही उसे कला, संगीत का भी आनंद प्राप्त होता है।*

*5. चौथे घर में गुरुः जातक की सोच दार्शनिक होगी। चौथे घर का गुरु जातक को बहुत बुद्धिमान बनाता है। इस घर में गुरु होने से जातक को समय-समय पर भगवान का आशीर्वाद हासिल होता है। ये जातक बहुत अधिक धार्मिक, सभी काम पाप-पुण्य सोच कर करने वाला और दुश्मनों से डरने वाला होगा।*

*6. चौथे घर में शुक्रः इस घर में बैठा शुक्र जातक को बहुत भाग्यशाली बनाता है। जातक को जीवन में अनेक वाहनों का सुख प्राप्त होगा। खुद का घर नसीब होगा। जो बेहद साज-सज्जा वाला और साफ-सुथरा होगा। माता के प्रति जातक की बहुत ही अधिक श्रद्धा होगी। इसके जीवन में कई दोस्त बनेंगे।*

*7. चौथे घर में शनिः जातक का प्रारंभिक जीवन बीमारियों से घिरा होगा। माता से दूर जीवन बीतेगा। वात-पित्त की बीमारी से परेशान रहेगा। स्वभाव से सुस्त होगा। जातक को जीवन में खुद के घर का सुख नहीं मिलेगा और वाहन की तरफ से उसे हमेशा परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। रिशतेदार जातक को पसंद नहीं करेंगे। जातक अकेले जीवन जीना अधिक पसंद करेगा।*

*8. चौथे घर में राहुः चौथे घर में राहु के प्रभाव से जातक मंद बुद्धि का स्वामी बनता है। बुरे कामों के कारण बदनामी झेलता है। लोगों को ठगने का जातक काम करता है।*

*9. चौथे घर में केतुः घर और माता के सुख से दूर जातक का जीवन बीतेगा। पैतृक संपत्ति हासिल नहीं होगी। जीवन में कई बार अचानक बदलाव का सामना करना पड़ेगा, साथ ही कई तरह के बुरे अनुभव भी जातक को प्राप्त होंगे।*

Wednesday, December 19, 2018

When will I buy my own house and how that house would be as per Astrology ?

*खुद का घर कब और कैसा होगा-*

*मंगल को भूमि का और चतुर्थ भाव का कारक माना जाता है,इसलिए अपना मकान बनाने के लिए मंगल की स्थिति कुंडली में शुभ तथा बली होनी चाहिए.स्वयं की भूमि अथवा मकान बनाने के लिए चतुर्थ भाव का बली होना आवश्यक होता है,तभी व्यक्ति घर बना पाता है.मंगल का संबंध जब जन्म कुंडली में चतुर्थ भाव से बनता है तब व्यक्ति अपने जीवन में कभी ना कभी खुद की प्रॉपर्टी अवश्य बनाता है.मंगल यदि अकेला चतुर्थ भाव में स्थित हो तब अपनी प्रॉपर्टी होते हुए भी व्यक्ति को उससे कलह ही प्राप्त होते हैं अथवा प्रॉपर्टी को लेकर कोई ना कोई विवाद बना रहता है.मंगल को भूमि तो शनि को निर्माण माना गया है.*
*इसलिए जब भी दशा/अन्तर्दशा में मंगल व शनि का संबंध चतुर्थ/चतुर्थेश से बनता है और कुंडली में मकान बनने के योग मौजूद होते हैं तब व्यक्ति अपना घर बनाता है.चतुर्थ भाव /चतुर्थेश पर शुभ ग्रहों का प्रभाव घर का सुख देता है.चतुर्थ भाव/चतुर्थेश पर पाप व अशुभ ग्रहो का प्रभाव घर के सुख में कमी देता है और व्यक्ति अपना घर नही बना पाता है.चतुर्थ भाव का संबंध एकादश से बनने पर व्यक्ति के एक से अधिक मकान हो सकते हैं.एकादशेश यदि चतुर्थ में स्थित हो तो इस भाव की वृद्धि करता है और एक से अधिक मकान होते हैं.*
*यदिचतुर्थेश,एकादश भाव में स्थित हो तब व्यक्ति की आजीविका का संबंध भूमि से बनता है.कुंडली में यदि चतुर्थ का संबंध अष्टम से बन रहा हो तब संपत्ति मिलने में अड़चने हो सकती हैं.जन्म कुंडली में यदि बृहस्पति का संबंध अष्टम भाव से बन रहा हो तब पैतृक।  संपत्ति मिलने के योग बनते हैं.चतुर्थ,अष्टम व एकादश का संबंध बनने पर व्यक्ति जीवन में अपनी संपत्ति अवश्य बनाता है और हो सकता है कि वह अपने मित्रों के सहयोग से मकान बनाएं.*
*चतुर्थ का संबंध बारहवें से बन रहा हो तब व्यक्ति घर से दूर जाकर अपना मकान बना सकता है या विदेश में अपना घर बना सकता है.जो योग जन्म कुंडली में दिखते हैं वही योग बली अवस्था में नवांश में भी मौजूद होने चाहिए.भूमि से संबंधित सभी योग चतुर्थांश कुंडली में भी मिलने आवश्यक हैं.चतुर्थांश कुंडली का लग्न/लग्नेश,चतुर्थ भाव/चतुर्थेश व मंगल की स्थिति का आंकलन करना चाहिए.यदि यह सब बली हैं तब व्यक्ति मकान बनाने में सफल रहता है.*

Sunday, October 28, 2018

Job change is possible within India or abroad as per astrology


CHANGE IN JOB:IN  SINGAPORE OR IN INDIA

Wife of this male native approached me  on 28/10/2018  to  know about her husband's job change .
"Can u say where  JOB change will be possible :within SINGAPORE or any chance in  INDIA"
The birth details are as follows:

DOB-11/04/1978
TOB-09:20 AM
POJ-HARDOI(UP)

As native already changed his job previously and currently   doing  his job in SINGAPORE,so I check  direct DASA/BHUKTI/ANTARA instead of confirmation of 10th sub. .

He is running under Jupiter dasa/mercury bhukti till 05/10/2020.

DASA Jupiter signifies as follows:

Planet Ju+: 1; 8
Starlord of Ju is Ma: 2; 7
Sublord of Ju is Mo:
Starlord of Mo is Su: 11; Cnj Me(11, 5)

Jupiter signifies 2,11 houses to get new job,1-5 houses indicate change in job,5-7 houses shows job at abroad.

Bhukti mercury signifies as follows:

Planet Me*: 11; 5; Cnj Su(11)
Starlord of Me is Me*: 11; 5; Cnj Su(11)
Sublord of Me is Sa:
Starlord of Sa is Ke: 10; Sgl Ju(1, 8); Stl Sa(3, 9); Asp 5; Cnj 11

mercury signifies 10.11 houses which shows to get new job and 3,5,9 houses shows change in job possible within this bhukti period And 3,9 shows abroad .

current antara  ketu running which I eliminate due to fixed ascendant.
and choose mars antara who signifies as follows:

Planet Ma:
Starlord of Ma is Sa: 3; 9
Sublord of Ma is Me*: 11; 5; Cnj Su(11)
Starlord of Me is Me*: 11; 5; Cnj Su(11)
mars signifies 3,5,9  houses  and 11 th houses which shows favourable for job change and for abroad connection.
and signification of 6 th house is shown on moon sooksma moon signifies as follows

Planet Mo:
Starlord of Mo is Su: 11; Cnj Me(11, 5)
Sublord of Mo is Ve*: 11; 6
Starlord of Ve is Ve*: 11; 6
moon signifies 6,11 houses indicatoe for getting new job and 5 shows change in job.

this period is 01/10/2019 to 05/10/2019 and Dasa,bhukti ,antara signifies change in job possible in Singapore only,no chance in INDIA.

Astrology Prediction on Rajasthan assembly election 2018

Rajasthan_assembly_election_2018

The legislative assembly election in the indian state of Rajasthan are scheduled to be held on 7-12-2018 to elect members of the Rajasthan Legislative Assembly.

In the last election in 2013, BJP had won a majority.

So now question is...Will BJP come again in power in Rajasthan ......????

#H_No : 41
#Date_of_judgement   : 25-10-2018
#Time_of_judgement  : 16:42:05Pm
#Place_of_judgement : Ludhiana(Pb)
(30N54-75E51)

#BJP

#6th_CSL Jup is in own star & in rahu sub.

Jup(6)
Jup(6)
Ra(2), aspect by jup(6) & ma(9)-12
Star sat(7)-10

Jup signify 2,6,10th bhavas with negative 7,9,12th

#11th_CSL Rahu is in Saturn star & in mercury sub.

Ra(2), aspected by jup(6) & ma(9)-12
Sat(7)-10
Me(6){csl 7}, conjoined with su(5)-4 & ve(5)-1{csl 8,12}

Rahu signify 2,6,10th bahavs with negative 4,5,7,8,9,12th

#10th_CSL Saturn is in ketu star & in own sub.

Sat(7)-10
Ke(8), conjoined ma(9)-12{cstl 1}
Sat(7)-10
Star ke

Sat signify 1,10th with negative bhavas 7,8,9,12th.

#INC

#6th_CSL Mercury is in Jupiter star & in venus sub.

Me(11){csl 6,7,12}
Jup(11)-4
Ve(10)-6,7 & conjoined with me(11){csl 6,7,12}
star rahu(8) & aspected by jup(11) & ma(2)-12{csl 4,8}

Mercury strongly signify 2,6,10,11th bhavas with negative bhavas 4,7,12th

#11th_CSL Saturn is in ketu star & in own sub.

Sat(1)-3
Ke(2), conjoined with ma(2)-12{csl 4,8}
Sat(1)-3

Saturn signify 1,2,3rd with negative bhavas 4,8,12th.

Jupiter signify 1,3,6th bhavas with negative 4,7,8,12th.

#10th_CSL Rahu is in Saturn star & in mercury sub.

Ra(8), aspected by jup(11)-4

#10th_CSL Rahu is in Saturn star & in Saturn sub.

Ra(8), aspected by jup(11)-4 & ma(3)-6 & ma(2)-12{csl 4,8}
Sat(1)-3
Me(11){csl 6,7,12}
Star jup(11)

Rahu strongly signify 1,2,3,6,11th bhavas

So my opinion : In this assembly election #INC should "Win".

Now question is how much seats congress can win....?

Am select 8 category for INC.

1. 50 - 60
2. 60-70
3. 70-80
4. 80-90
5. 90-100
6. 100-110
7. 110-120
8. 120-130

Ruling planets at the time of judgement
Lagna : jup-me
Moon. : Ma-ve
Day      : jup

Total = 69

(1). Devide it by option 8 reminder come 5

(2). Total 69 comes at 6(6+9=15=1+5=6)

So we get to portion 5 or 6

Now INC will get either 90-10 or 100-110

Jupiter has come in our ruling 2 times so INC will get seats from 100-110.

INDU LAGNA (ascendant) and Vedic Astrology

🌹 इन्दु लग्न  (INDU LAGN) 🌹
    ( आर्थिक जीवन स्तर का पैमाना ) ::---

( The Golden Ruls of Classical Hindu Vedic jyotish)

जन्म पत्रिका में इन्दु लग्न  के विश्लेषण द्वारा जातक के आर्थिक जीवन स्तर , धन सम्पदा का स्तर , आर्थिक उन्नति का समय , प्रमोशन और आर्थिक समृद्धि के उच्चतम स्तर को जाँचा जाता है।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

🌼 इन्दु लग्न को धन लग्न भी कहा जाता है ।
जन्म कुण्डली में इन्दु लग्न से जन्म पत्रिका के विश्लेषण द्वारा हम जातक की आर्थिक उपलब्धियां,  धन की स्थिति , ऐश्वर्य और आर्थिक जीवन स्तर को जाँच भी सकते है और  आर्थिक उन्नति के समय की गणना भी कर सकते है कि कौनसा समय विशेष जातक के जीवन में विशेष रूप से धन दायक और आर्थिक रूप से विशेष उन्नति का होगा  तथा क्या जातक अपने जीवन काल में  आर्थिक रूप से धन धान्य की पराकाष्ठा को छू पायेगा ।

🌹 इन्दु लग्न की गणना की विधि::--

इन्दु लग्न की गणना में राहु और केतु को सम्मलित नहीं किया जाता । राहु - केतु के अतिरिक्त अन्य सातो ग्रहों को सम्मलित किया गया है।

इन्दु लग्न की गणना हेतु प्रत्येक ग्रह के अंक निर्धारित किये जाते है जिन्हें ग्रहो की कलाएँ अथवा रश्मियां कहते है
जो निन्म प्रकार है ::---

🌹 ग्रह               कलाएँ
    -----               ---------
    सूर्य                30
    चंद्रमा             16          
    मंगल              06
    बुध                08
    बृहस्पति         10
    शुक्र               12
    शनि               01

🌹🌼  इन्दु लग्न निर्धारण :--

जन्म पत्रिका में चंदमा (चंद्र लग्न) एवं लग्न दोनों से नवम स्थान (नवमेश) के स्वामियों की कलाओं को जोड़ा जाता है  और योगफल में 12 से भाग दिया जाता है ।

जो शेषफल आएगा  उतने घर(भाव) आगे हम जन्म पत्रिका में स्थित चंद्रमा (चंद्र राशि ) से गिनते है । और वही भाव इन्दु लग्न होगा ।

यदि  12 से भाग देने पर शेषफल शून्य आता है तो चंद्र राशि ही इन्दु लग्न होगी ।और यदि योगफल 12 से कम आया तो  हम उस संख्या (कम संख्या) को  चंदमा (चाँद लग्न) से आगे  गिनकर इन्दु लग्न को निर्धारित करते है ।

🌼 उदाहरण :- माना कि  कन्या लग्न की कुंडली में  चंद्रमा धनु राशि में स्थित है
तो लग्न से नवम स्थान का स्वामी( नवमेश) शुक्र होगा और चंद्रमा से नवम राशि  सिंह  आएगी जिसका  स्वामी सूर्य होगा
अतः शुक्र की कलाएँ -12 , और सूर्य की कलाएँ - 30 , का योग = 12 + 30 = 42 होता है
नियमानुसार  चूँकि 42 योगफल 12 से अधिक है अतः 12 से भाग देने पर  (42 ÷12) शेष  42 - 36 = शेषफल  6 आता है । 

अब हम शेषफल को जन्म पत्रिका में स्थित चंद्रमा  (चंद्र लग्न) से आगे गिनेंगे  तो हमें  वृष  राशि प्राप्ति होगी

🌼 अतः वृष  राशि ही " इन्दु  लग्न" होगी ।
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

🌹🌹    इन्दु लग्न से फलों का विश्लेषण ::----
***********************************

🌹 इन्दु लग्न में बैठे सभी  शुभ ग्रह  एवं लग्नेश ,  अपनी दशाओं में  आर्थिक उन्नति देते है

🌹 लग्न और लग्नेश से सम्बन्ध बनाने वाले शुभ और अशुभ ग्रह अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के परिणाम सम्मलित रूप से देते है

🌹 इन्दु लग्न से द्वितीय , नवम , दशम ,एकादश  भावेशों का आपसी सम्बन्ध स्थाई रूप से धन दायक और आर्थिक धन धान्य में वृद्धि करता है।

🌹 कुण्डली में उपस्थित उच्च राशि , स्व राशि , मूल त्रिकोण राशि में बैठे शुभ ग्रह  जीवन में तीव्र और स्थाई आर्थिक उन्नति देते है।

🌹 कुण्डली में स्थित अशुभ ग्रह भी यदि उच्च राशि या अपने मूल त्रिकोण अंशों पर हों तो वे भी  अपनी दशा के अंत में आर्थिक उन्नति देते है।

🌹 इन्दु लग्न में योगकारक शुभ ग्रहो से दृष्टि युती संबंधित भाव / भावेश भी आर्थिक रूप से जीवन को उन्नति देते है

☑ 🌹🌼 इन्दु लग्न में  किसी भी ग्रह के विशेष अंशो पर स्थिति और ग्रहो का गोचर बहुत ही महत्त्वपूर्ण होता है। जो जातक की आर्थिक उपलब्धियों में आधार शिला  होता है।

Birth Time Rectification as KP Astrology


कृष्‍णमुर्ती पध्‍दती में जन्मसमय की पध्‍दती की जानकारी सब को है लेकिन कस्‍पल इंटरलिंक्‍स थियरी पे उप उप नक्षत्रस्‍वामी का संबंध कैसे लग्‍नभाव से, नवम भाव से , चंद्र नक्षत्र से, जातक के बाद जन्‍मे हुए उनके छोटै भाई बहेन के जन्‍म के अनुसार तृतीय भाव तथा ऐसे कई बातों पर निर्भर है । इसकी जानकारी सब के हेतू मैं दे रहा हूँ ।
      यह जानकारी हमारे बुजूर्ग विदवान गुरुजी श्री दयाकृष्‍ण गुप्‍ताजी ने इंग्‍लीश में दी है इसका मैंने अनुवाद किया है । मुझे आशा है की आप इस जानकारी को सही तरीके से इस्‍तेमाल करेंगे और बिनचूक जन्‍मसमय शुध्‍दीकरण करेंगे ।
पाठ क्र. 15 भाग 1
दिनांक 10 ऑक्‍टोबर 2016

जन्म समय शुध्‍दीकरण किसलिए  यह आवश्यक है और यह कैसे किया जा सकता है।
भाग 1।

दया कृष्ण गुप्ता मैं पाठकों को जो केपी सिस्टम से क्या कुछ अलग रूप में मैं उप उप सिद्धांत पर काम कर रहा हूँ के लिए अपने विचार देने के लिए पसंद कर सकते हैं। सबसे पहले तो यह बड़ा सवाल जन्म समय क्या है। इतने संस्करणों जन्म के समय के बारे में इतने किंवदंती ज्योतिषियों द्वारा दिया जाता है। मेरे विचार में, यह या तो जब आत्मा शरीर के कब्जे या जब जातक  अपनी पहली सांस लेता है। उनमें से कोई भी किसी भी नही देखा जा सकता है । अपने को जो समय दिया जाता है वह समय हॉस्‍पीटल से दिया हुआ होता है । आपका पता ही है की, जन्म दर प्रति बच्चा 3 सेकंड में जन्‍म लेता  है, और हर बच्‍चे का अपना एक विशिष्‍ठ नशीब रहता है । इसी प्रकार से एक विशिष्‍ठ कुंडली प्रत्‍येक  जातक के लिए बनाना यह बात किसी के लिए संभव नही है । 
     जो भी समय दिया गया है उसी समय के आधार पर कुंडली बनवाईये । पेहली बात यह देखना है की, जातक स्‍त्री है या पुरुष है यह पता लगाईये और उसके बाद दिया गया जन्‍मसमय के अनुसार पूर्व क्षितीज पर कौनसी राशी लग्‍न भाव में उदित हो रही है । ऐसे यह निश्चित करना चाहिए । यह जो कुंडली बनायी गयी है वह उस जातक के जन्‍म देनेवाले पिता की गोचर कुंडली है और यह देखना है की, यह गोचर संतती जन्‍म के लिए जातक के जन्‍मसमय में सभी अटी और शर्तीओं का पालन कर रहा है नही ?
     अगर ऐसा नही है तो इस को शुध्‍द करना चाहिए।
     अब यह समय आता है की लग्‍न भाव के उप उप नक्षत्रस्‍वामी का चंद्र के नक्षत्रस्‍वामी से संबंध होना चाहिए क्‍यों की चंद्र का नक्षत्रस्‍वामी ही महत्‍वपूर्ण भूमिका लेता है घटना घ्‍ज्ञटने के समय के लिए ।
    अब उस जातक का वंश पारंपारिक संबंध की जॉंच करना चाहिए इस में माता, पिता, बडे भाई, छोटे भाई वगैरे और अगर जातक विवाहित है तो उस के लडके या फिर लडकी । उस के लिए जन्‍मसमय में छोटा बदल भी करना पडता है ।
    अब उस जातक की जीवन में घटी हुई कई घटनाओं का संबंध देखना चाहिए । इस में दादा, दादी, माता पिता का मृत्‍यू की तारीख और कई बार जातक की भी मृत्‍यू होगयी हो तो उसकी तारीख का भी जॉंच करना चाहिए।  ईसी प्रकार कुंडली के 123 भावों के साथ घटनेवाले घटनाओं का दशाकाल से समर्थना होना चाहिए । उसके बाद ही कह सकते है की जन्‍मसमय की शुध्‍दी सेकंद / मिलि सेकंद तक अचूक है ।
  

पाठ क्र.  15. (भाग 2)
दिनांक 11 ऑक्‍टोबर 2016

निम्नलिखित मुख्य शर्तों का पालन किया जाना पड़ता है नीचे के रूप में कर रहे हैं:

1. सब से पेहले लग्‍न भाव का उप उप नक्षत्रस्‍वामी का चंद्र के नक्षत्रस्‍वामी से संबंध निश्चित करना है ।

2. लग्‍न भाव के उप उप नक्षत्रस्‍वामी का आर्च प्रमाण पुरुष और स्‍त्री जातक के लिए कैसेट निश्चित करे द्य

3..लग्‍नभाव का शुध्‍दीकरण के लिए आवश्‍यक शर्त और अन्‍य भावों का भी निश्चिती के लिए आवश्‍यक शर्ते

(1) वंशपरंपरागत शर्तों का मिलान
(2) जीवन के और कई पैलुओं के साथ प्रॉमीसेस वादा
(3) जीवन के भूतकाल में घटी कई महत्‍वपूर्ण घटनाओं की जॉंच

पाठ क्र. 15 भाग 3 Dated.12.10.2016
(1) लग्‍न भाव का उप उप नक्षत्रस्‍वामी चंद्र के नक्षत्रस्‍वामी के साथ संबंध कैसा निश्चित करे

1. लग्‍न भाव के उप उप नक्षत्रस्‍वामी स्‍वयं चंद्र के नक्षत्रस्‍वामी होना चाहिए
2. लग्‍न भाव के नक्षत्रस्‍वामी, उपनक्षत्रस्‍वामी या उप उप नक्षत्रस्‍वामी के उप उप नक्षत्रस्‍वामी चंद्र के नक्षतस्‍वामी होना चाहिए 
3.  चंद्रमा के नक्षत्रस्‍वामी लग्‍न भाव का नक्षत्रस्‍वामी, उपनक्षत्रस्‍वामी या उप उप नक्षत्रस्‍वामी होना चाहिए ।
.

पाठ 15 भाग 4 
दिनांक 13 ऑक्‍टोबर 2016

2) कैसे एक पुरुष और महिला के लिए कुंडली मे उप उप नक्षत्रस्‍वामी का आर्च कैसे निश्चित करे

i) सबसे पहले जातक  द्वारा दिए गए डिटेल के अनुसार कुंडली बनाते हैं। जातक पुरुष है या स्‍त्री जातक है .
2 )  अब देखते हैं कि पूर्व क्षितीज पर कौनसी राशी का लग्‍न उदित हो रहा है ।  क्या यह एक पुरुष या स्त्री राशि राशि है।
iii) अगर लग्‍न के उदित होने वाली राशी नर राशि है और कुंडली पुरुष जातक की है, तो लग्‍न का आर्च 50 टक्‍के से कम होना चाहिए ।
iv) अगर लग्‍न के उदित होने वाली राशी पुरुष राशी है और जातक स्‍त्री है तो लग्‍नभाव का आर्च 50 टक्‍के से जादा रखीये
v) अगर लग्‍न मे उदीत राशी स्‍त्री राशी है और जातक भी स्‍त्रिी है तो लग्‍न भाव का आर्च 50 टक्‍के से कम रखीये ।
vi) अगर लग्‍न मे उदीत राशी स्‍त्री राशी है और जातक पुरुष है तो लग्‍न भव का आर्च 50% से अधिक रखा जाएगा।

पाठ क्र. 15 भाग 5
दिनांक 14 ऑक्‍टोबर 2016 
(3) एक सही चार्ट के लिए आवश्यक शर्तों और अन्य भावों के लिए शर्ते
..
दिए गए जानकारी के अनुसार बनाया जातक की कुंडली याने की उस जातक के जन्‍मदिन का गोचर कुंडली है । इस प्रकार यह कहा जाता है कि जब वहाँ अपने पिता के चार्ट में एक बच्चे के जन्म के लिए एक वादा संभावना  है, तो ग्रहों की एक उपयोगी ग्रहों का गोचर होता है और पिता उसके जन्म के समय पर संतती का जहन्‍म हेाता है ।  इसी प्रकार से तयार किया गया कुंडली में नवम भाव से  जातक का पिता देखा जाता है । संतती का जन्‍म के लिए पिता के कुंडली में 2, 5 और 11 का कार्येशत्‍व का संबंेध होना चाहिए । और यह भाव जातक के कुंडली से याने की लग्‍नभाव से 1, 7 और 10 वे होते है । इसीप्रकार सभी ग्रह लग्‍न भाव के राशी स्‍वामी, नक्षत्रस्‍वामी, उपनक्षत्रस्‍वामी, उप उप नक्षत्रस्‍वामी का उसके नक्षत्रस्‍वामी के अनुसार  10 या 1 या 7 वे भाव से संबंध होनाही चाहिए और उपनक्षत्रस्‍वामी के अनुसार अन्‍य भावों का भी समर्थन होना चाहिए । इसी तरह सभी ग्रहों सह चंद्रमा के भी राशीस्‍वामी, नक्षत्रस्‍वामी, उपनक्षत्रस्‍वाूमी तथा उप उप नक्षत्रस्‍वामी भी 1,7 के साथ 10 भावों से संबंध होना चाहिए


पाठ क्र. 15 भाग 6
दिनांक 13 ऑक्‍टोबर 2016
(1) वंशपरंपरागत संबंधों का मिलन ;;

वंश परंपरागत संबंधोका मिलना इसका अर्थ यह है की, जातक के कुंडली के संबंधित भावों का जातक के बडे भाई, बहन, उसके लडका, लडकी, के अनुसार संबंध प्रस्‍थापित हो जाने चाहिए ।
उदाहरण के लिये
i) जातक के बाद जन्‍मे हुए भाई बहन का जन्म 3 भाव
ii) जातक की माता    चतुर्थ भाव ।
iii) जातक के पिता     नवम भाव ।
iv) जातक से बडा भाई  लाभस्‍थान
v) पुरुष के कुंडली में प्रथम संतती    5 वा भाव
vi) स्‍त्री के कुंडली में प्रथम संतती     11 वा भाव
vii) स्‍त्री के कुंडली में द्वितीय संतती   लग्‍नभाव
ix) पत्‍नी के लिए                   सप्‍तमभाव 


पाठ क्र. 15 भाग 7 दिनांक

जीवन के अन्य पहलुओं के साथ वादा किया है:

1. स्वास्थ्य और आयुर्दाय ।
2. शिक्षा।
3. नौकरी या व्यापार।
4. विवाह।
5.संतती ।
6. बीमारी
7. परदेशी स्‍थायीक होना,  नाम और प्रसिद्धि आदि

हम जानते हैं कि प्रत्येक भाव विशिष्ट कार्येशत्‍व दिखाता है । प्रत्‍येक भाव का उप उप नक्षत्रस्‍वामी जीवन की सभी प्रकार के प्रॉमीसेस वादाओं को समर्थन करना चाहिए।  इसलिए प्रत्‍येक भाव ने जीवन की सभी पहलुओं की अट पुर्ती करना चाहिए 

पाठ क्र. 15 भाग 8 दिनांक

जीवन का प्रमुख अतीत की घटनाओं का जॉंच पडताल ।

हम प्रत्येक घटनाओं के रूप में जानते हैं कि  वह घटना हैं ग्रहों की संयुक्त अवधि में होता है। अंत में सुक्ष्‍मदशास्‍वामी और प्राणदशास्‍वामी यह प्रमुख भाव और दुययम भावों के साथ जुडने चाहिए । इसप्रकार यह आवश्‍यक है की प्रत्‍येक घटना दशाकाल अधिपती से मिलना होना ही चाहिए ।  गोचरी के ग्रह यह घटना घटने के लिए बाध्‍य करते है और घटना घटने के लिए समर्थन करते है । इस के साथ ही रवी और चंद्र का भी गोचर द्वारा यह घटना दिखानी चाहिए । इस के लिए कई बार कई भावों के स्थिती में नगन्‍य बदल करना पडता है ।

ऊपर दिया हुआ प्रोसीजर पुरा होने के बाद यह कहा जा सकता है की जन्‍मसमय की शुध्‍दीकरण सही हो गयी है ।