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Sunday, October 28, 2018

Birth Time Rectification as KP Astrology


कृष्‍णमुर्ती पध्‍दती में जन्मसमय की पध्‍दती की जानकारी सब को है लेकिन कस्‍पल इंटरलिंक्‍स थियरी पे उप उप नक्षत्रस्‍वामी का संबंध कैसे लग्‍नभाव से, नवम भाव से , चंद्र नक्षत्र से, जातक के बाद जन्‍मे हुए उनके छोटै भाई बहेन के जन्‍म के अनुसार तृतीय भाव तथा ऐसे कई बातों पर निर्भर है । इसकी जानकारी सब के हेतू मैं दे रहा हूँ ।
      यह जानकारी हमारे बुजूर्ग विदवान गुरुजी श्री दयाकृष्‍ण गुप्‍ताजी ने इंग्‍लीश में दी है इसका मैंने अनुवाद किया है । मुझे आशा है की आप इस जानकारी को सही तरीके से इस्‍तेमाल करेंगे और बिनचूक जन्‍मसमय शुध्‍दीकरण करेंगे ।
पाठ क्र. 15 भाग 1
दिनांक 10 ऑक्‍टोबर 2016

जन्म समय शुध्‍दीकरण किसलिए  यह आवश्यक है और यह कैसे किया जा सकता है।
भाग 1।

दया कृष्ण गुप्ता मैं पाठकों को जो केपी सिस्टम से क्या कुछ अलग रूप में मैं उप उप सिद्धांत पर काम कर रहा हूँ के लिए अपने विचार देने के लिए पसंद कर सकते हैं। सबसे पहले तो यह बड़ा सवाल जन्म समय क्या है। इतने संस्करणों जन्म के समय के बारे में इतने किंवदंती ज्योतिषियों द्वारा दिया जाता है। मेरे विचार में, यह या तो जब आत्मा शरीर के कब्जे या जब जातक  अपनी पहली सांस लेता है। उनमें से कोई भी किसी भी नही देखा जा सकता है । अपने को जो समय दिया जाता है वह समय हॉस्‍पीटल से दिया हुआ होता है । आपका पता ही है की, जन्म दर प्रति बच्चा 3 सेकंड में जन्‍म लेता  है, और हर बच्‍चे का अपना एक विशिष्‍ठ नशीब रहता है । इसी प्रकार से एक विशिष्‍ठ कुंडली प्रत्‍येक  जातक के लिए बनाना यह बात किसी के लिए संभव नही है । 
     जो भी समय दिया गया है उसी समय के आधार पर कुंडली बनवाईये । पेहली बात यह देखना है की, जातक स्‍त्री है या पुरुष है यह पता लगाईये और उसके बाद दिया गया जन्‍मसमय के अनुसार पूर्व क्षितीज पर कौनसी राशी लग्‍न भाव में उदित हो रही है । ऐसे यह निश्चित करना चाहिए । यह जो कुंडली बनायी गयी है वह उस जातक के जन्‍म देनेवाले पिता की गोचर कुंडली है और यह देखना है की, यह गोचर संतती जन्‍म के लिए जातक के जन्‍मसमय में सभी अटी और शर्तीओं का पालन कर रहा है नही ?
     अगर ऐसा नही है तो इस को शुध्‍द करना चाहिए।
     अब यह समय आता है की लग्‍न भाव के उप उप नक्षत्रस्‍वामी का चंद्र के नक्षत्रस्‍वामी से संबंध होना चाहिए क्‍यों की चंद्र का नक्षत्रस्‍वामी ही महत्‍वपूर्ण भूमिका लेता है घटना घ्‍ज्ञटने के समय के लिए ।
    अब उस जातक का वंश पारंपारिक संबंध की जॉंच करना चाहिए इस में माता, पिता, बडे भाई, छोटे भाई वगैरे और अगर जातक विवाहित है तो उस के लडके या फिर लडकी । उस के लिए जन्‍मसमय में छोटा बदल भी करना पडता है ।
    अब उस जातक की जीवन में घटी हुई कई घटनाओं का संबंध देखना चाहिए । इस में दादा, दादी, माता पिता का मृत्‍यू की तारीख और कई बार जातक की भी मृत्‍यू होगयी हो तो उसकी तारीख का भी जॉंच करना चाहिए।  ईसी प्रकार कुंडली के 123 भावों के साथ घटनेवाले घटनाओं का दशाकाल से समर्थना होना चाहिए । उसके बाद ही कह सकते है की जन्‍मसमय की शुध्‍दी सेकंद / मिलि सेकंद तक अचूक है ।
  

पाठ क्र.  15. (भाग 2)
दिनांक 11 ऑक्‍टोबर 2016

निम्नलिखित मुख्य शर्तों का पालन किया जाना पड़ता है नीचे के रूप में कर रहे हैं:

1. सब से पेहले लग्‍न भाव का उप उप नक्षत्रस्‍वामी का चंद्र के नक्षत्रस्‍वामी से संबंध निश्चित करना है ।

2. लग्‍न भाव के उप उप नक्षत्रस्‍वामी का आर्च प्रमाण पुरुष और स्‍त्री जातक के लिए कैसेट निश्चित करे द्य

3..लग्‍नभाव का शुध्‍दीकरण के लिए आवश्‍यक शर्त और अन्‍य भावों का भी निश्चिती के लिए आवश्‍यक शर्ते

(1) वंशपरंपरागत शर्तों का मिलान
(2) जीवन के और कई पैलुओं के साथ प्रॉमीसेस वादा
(3) जीवन के भूतकाल में घटी कई महत्‍वपूर्ण घटनाओं की जॉंच

पाठ क्र. 15 भाग 3 Dated.12.10.2016
(1) लग्‍न भाव का उप उप नक्षत्रस्‍वामी चंद्र के नक्षत्रस्‍वामी के साथ संबंध कैसा निश्चित करे

1. लग्‍न भाव के उप उप नक्षत्रस्‍वामी स्‍वयं चंद्र के नक्षत्रस्‍वामी होना चाहिए
2. लग्‍न भाव के नक्षत्रस्‍वामी, उपनक्षत्रस्‍वामी या उप उप नक्षत्रस्‍वामी के उप उप नक्षत्रस्‍वामी चंद्र के नक्षतस्‍वामी होना चाहिए 
3.  चंद्रमा के नक्षत्रस्‍वामी लग्‍न भाव का नक्षत्रस्‍वामी, उपनक्षत्रस्‍वामी या उप उप नक्षत्रस्‍वामी होना चाहिए ।
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पाठ 15 भाग 4 
दिनांक 13 ऑक्‍टोबर 2016

2) कैसे एक पुरुष और महिला के लिए कुंडली मे उप उप नक्षत्रस्‍वामी का आर्च कैसे निश्चित करे

i) सबसे पहले जातक  द्वारा दिए गए डिटेल के अनुसार कुंडली बनाते हैं। जातक पुरुष है या स्‍त्री जातक है .
2 )  अब देखते हैं कि पूर्व क्षितीज पर कौनसी राशी का लग्‍न उदित हो रहा है ।  क्या यह एक पुरुष या स्त्री राशि राशि है।
iii) अगर लग्‍न के उदित होने वाली राशी नर राशि है और कुंडली पुरुष जातक की है, तो लग्‍न का आर्च 50 टक्‍के से कम होना चाहिए ।
iv) अगर लग्‍न के उदित होने वाली राशी पुरुष राशी है और जातक स्‍त्री है तो लग्‍नभाव का आर्च 50 टक्‍के से जादा रखीये
v) अगर लग्‍न मे उदीत राशी स्‍त्री राशी है और जातक भी स्‍त्रिी है तो लग्‍न भाव का आर्च 50 टक्‍के से कम रखीये ।
vi) अगर लग्‍न मे उदीत राशी स्‍त्री राशी है और जातक पुरुष है तो लग्‍न भव का आर्च 50% से अधिक रखा जाएगा।

पाठ क्र. 15 भाग 5
दिनांक 14 ऑक्‍टोबर 2016 
(3) एक सही चार्ट के लिए आवश्यक शर्तों और अन्य भावों के लिए शर्ते
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दिए गए जानकारी के अनुसार बनाया जातक की कुंडली याने की उस जातक के जन्‍मदिन का गोचर कुंडली है । इस प्रकार यह कहा जाता है कि जब वहाँ अपने पिता के चार्ट में एक बच्चे के जन्म के लिए एक वादा संभावना  है, तो ग्रहों की एक उपयोगी ग्रहों का गोचर होता है और पिता उसके जन्म के समय पर संतती का जहन्‍म हेाता है ।  इसी प्रकार से तयार किया गया कुंडली में नवम भाव से  जातक का पिता देखा जाता है । संतती का जन्‍म के लिए पिता के कुंडली में 2, 5 और 11 का कार्येशत्‍व का संबंेध होना चाहिए । और यह भाव जातक के कुंडली से याने की लग्‍नभाव से 1, 7 और 10 वे होते है । इसीप्रकार सभी ग्रह लग्‍न भाव के राशी स्‍वामी, नक्षत्रस्‍वामी, उपनक्षत्रस्‍वामी, उप उप नक्षत्रस्‍वामी का उसके नक्षत्रस्‍वामी के अनुसार  10 या 1 या 7 वे भाव से संबंध होनाही चाहिए और उपनक्षत्रस्‍वामी के अनुसार अन्‍य भावों का भी समर्थन होना चाहिए । इसी तरह सभी ग्रहों सह चंद्रमा के भी राशीस्‍वामी, नक्षत्रस्‍वामी, उपनक्षत्रस्‍वाूमी तथा उप उप नक्षत्रस्‍वामी भी 1,7 के साथ 10 भावों से संबंध होना चाहिए


पाठ क्र. 15 भाग 6
दिनांक 13 ऑक्‍टोबर 2016
(1) वंशपरंपरागत संबंधों का मिलन ;;

वंश परंपरागत संबंधोका मिलना इसका अर्थ यह है की, जातक के कुंडली के संबंधित भावों का जातक के बडे भाई, बहन, उसके लडका, लडकी, के अनुसार संबंध प्रस्‍थापित हो जाने चाहिए ।
उदाहरण के लिये
i) जातक के बाद जन्‍मे हुए भाई बहन का जन्म 3 भाव
ii) जातक की माता    चतुर्थ भाव ।
iii) जातक के पिता     नवम भाव ।
iv) जातक से बडा भाई  लाभस्‍थान
v) पुरुष के कुंडली में प्रथम संतती    5 वा भाव
vi) स्‍त्री के कुंडली में प्रथम संतती     11 वा भाव
vii) स्‍त्री के कुंडली में द्वितीय संतती   लग्‍नभाव
ix) पत्‍नी के लिए                   सप्‍तमभाव 


पाठ क्र. 15 भाग 7 दिनांक

जीवन के अन्य पहलुओं के साथ वादा किया है:

1. स्वास्थ्य और आयुर्दाय ।
2. शिक्षा।
3. नौकरी या व्यापार।
4. विवाह।
5.संतती ।
6. बीमारी
7. परदेशी स्‍थायीक होना,  नाम और प्रसिद्धि आदि

हम जानते हैं कि प्रत्येक भाव विशिष्ट कार्येशत्‍व दिखाता है । प्रत्‍येक भाव का उप उप नक्षत्रस्‍वामी जीवन की सभी प्रकार के प्रॉमीसेस वादाओं को समर्थन करना चाहिए।  इसलिए प्रत्‍येक भाव ने जीवन की सभी पहलुओं की अट पुर्ती करना चाहिए 

पाठ क्र. 15 भाग 8 दिनांक

जीवन का प्रमुख अतीत की घटनाओं का जॉंच पडताल ।

हम प्रत्येक घटनाओं के रूप में जानते हैं कि  वह घटना हैं ग्रहों की संयुक्त अवधि में होता है। अंत में सुक्ष्‍मदशास्‍वामी और प्राणदशास्‍वामी यह प्रमुख भाव और दुययम भावों के साथ जुडने चाहिए । इसप्रकार यह आवश्‍यक है की प्रत्‍येक घटना दशाकाल अधिपती से मिलना होना ही चाहिए ।  गोचरी के ग्रह यह घटना घटने के लिए बाध्‍य करते है और घटना घटने के लिए समर्थन करते है । इस के साथ ही रवी और चंद्र का भी गोचर द्वारा यह घटना दिखानी चाहिए । इस के लिए कई बार कई भावों के स्थिती में नगन्‍य बदल करना पडता है ।

ऊपर दिया हुआ प्रोसीजर पुरा होने के बाद यह कहा जा सकता है की जन्‍मसमय की शुध्‍दीकरण सही हो गयी है । 

     

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