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Monday, December 24, 2018

4th House in Vedic Astrology (Hindi)

*चतुर्थ भाव का महत्व*

*चतुर्थ भाव सुख स्थान या मातृ स्थान के नाम से जाना जाता है| इस भाव में व्यक्ति को प्राप्त हो सकने वाले समस्त सुख विद्यमान है इसलिए इसे सुख स्थान कहते हैं| मनुष्य का प्रथम सुख माता के आँचल में होता है| केवल वही है जो व्यक्ति की तब तक रक्षा करती है जब तक वह अपने सुख को अर्जित करने में सक्षम न हो जाए| चतुर्थ भाव व्यक्ति की माता से संबंधित समस्त विषयों की जानकारी भी देता है इसलिए इसे मातृ भाव भी कहा जाता है| तृतीय भाव से दूसरा भाव होने के कारण यह भाई-बहनों के धन को भी सूचित करता है| ज्योतिष में यह विष्णु स्थान है तथा एक शुभ भाव माना जाता है| परंतु यदि शुभ ग्रह इस भाव का स्वामी हो तो उसे केन्द्राधिपत्य दोष लगता है|यह केंद्र भावों में से एक भाव माना गया है| मानव जीवन में इस भाव का बहुत अधिक महत्व है| किसी भी मनुष्य के पास भौतिक साधन कितनी भी अधिक मात्रा में क्यों न हों यदि उसके जीवन में सुख-शांति ही नही तो क्या लाभ? इसलिए इस भाव से मनुष्य को प्राप्त होने वाले सभी प्रकार के सुखों का विचार किया जाता है| जन्मकुंडली में यह भाव उत्तर दिशा तथा अर्द्धरात्रि को प्रदर्शित करता है| इस भाव से सुख के अतिरिक्त माता, वाहन, शिक्षा, वक्षस्थल, पारिवारिक सुख, भूमि, कृषि, भवन, चल-अचल संपति, मातृ भूमि, भूमिगत वस्तुएं, मानसिक शांति आदि का विचार किया जाता है| चतुर्थ भाव मुख्य केंद्र स्थान है| “द्वितीय केंद्र” के नाम से प्रसिद्ध यह कालपुरुष के वक्षस्थल का कारक है| यही कारण है कि इस जीवन में पर्याप्त सुख व आनंद प्राप्त करने के लिए व्यक्ति का हृदय निर्मल होना चाहिए|*

*चतुर्थ भाव से निम्नलिखित विषयों का विचार किया जाता है-*

*सुख- चतुर्थ भाव से हम किसी भी व्यक्ति के जीवन के समस्त सुखों का विश्लेषण करते हैं| यह भाव मातृ स्नेह एवं उनसे प्राप्त संरक्षण, पारिवारिक सदस्यों, निवास, वाहन आदि से प्राप्त होने वाले सुखों को दर्शाता है|*

*माता- यह भाव व्यक्ति की माता, उनका स्वभाव, चरित्र तथा विशेषताओं को सूचित करता है| मनुष्य की माता को जो सुख-सुविधाएं प्राप्त होंगी वे सब इस भाव से तथा मातृ कारक चन्द्र के आधार पर देखी जाती हैं|*

*निवास(घर)- यह भाव मनुष्य के निवास स्थान अथवा घर का भी प्रतीक है| किसी भी व्यक्ति के सुखमय जीवन के लिए उसके पास निवास स्थान होना अनिवार्य है व्यक्ति केवल गृह में ही विश्राम कर सकता है, अन्य किसी स्थान पर नहीं| मनुष्य का निजी घर उसका अतिरिक्त सुख ही है|*

*संपति- यह भाव चल व अचल दोनों प्रकार की संपति को दर्शाता है| शुक्र चल संपति जैसे मोटर, वाहन का कारक है तथा मंगल अचल संपति का कारक होता है|*

*कृषि- यह भाव भूमिगत वस्तुओं का प्रतीक है इसलिए यह स्थान कृषि से भी जुड़ा हुआ है| चतुर्थ भाव का दशम भाव व मंगल से संबंध होना कृषि अथवा कृषि-उत्पादों से संबंधित व्यवसाय का सूचक है|*

*जीवनसाथी का कर्मस्थान- यह भाव सप्तम स्थान(जीवनसाथी) से दशम है इसलिए यह जीवनसाथी के कार्यक्षेत्र व उसकी आय को बताता है|*

*शिक्षा- यह भाव व्यक्ति की शिक्षा संबंधी संभावनाओं को दर्शाता है| मनुष्य कितनी शिक्षा प्राप्त करने में सक्षम है और वह किस प्रकार की शिक्षा ग्रहण करेगा यह इस भाव से ज्ञात हो सकता है|*

*संतान अरिष्ट- यह भाव पंचम स्थान से द्वादश है अतः यह संतान के अरिष्ट का सूचक माना जाता है| इस भाव के स्वामी की दशा-अंतर्दशा में किसी भी व्यक्ति की संतान को शारीरिक कष्ट हो सकता है|*

*मानसिक शांति- यह भाव व्यक्ति की मानसिक शांति का प्रतीक भी है| चतुर्थ स्थान व चतुर्थेश के पीड़ित होने से व्यक्ति मानसिक शांति से वंचित हो सकता है| इसलिए इस भाव से यह भी पता चलता है कि मनुष्य को मानसिक शांति प्राप्त होगी या नहीं| इस भाव के पीड़ित होने से व्यक्ति को मनोरोग हो सकते हैं|*

*वक्षस्थल- यह भाव कालपुरुष के वक्षस्थल का सूचक है| इस भाव तथा इसके स्वामी के पीड़ित होने से व्यक्ति को छाती या वक्षस्थल से संबंधित रोग अथवा कष्ट हो सकता है|*

*वाहन- इस भाव से वाहन संबंधी सूचना भी प्राप्त होती है| किसी व्यक्ति के पास वाहन होगा या नहीं, वाहन की संख्या व उनसे मिलने वाले लाभ की जानकारी भी इस भाव से पता चल सकती है| यदि चतुर्थ भाव, चतुर्थेश तथा वाहन कारक शुक्र कुडंली में बली हों तो मनुष्य को उत्तम वाहन सुख प्राप्त होता है| इसके विपरीत इन घटकों के पीड़ित होने से व्यक्ति वाहन सुख से वंचित हो जाता है|*

*स्थान परिवर्तन- यह भाव व्यक्ति के निवास से जुड़ा है अतः यदि चतुर्थ स्थान, चतुर्थेश पर शनि, सूर्य, राहु तथा द्वादशेश का प्रभाव हो तो इस पृथकता जनक प्रभाव के कारण मनुष्य को अपना घर-बार, जन्मस्थान तक छोड़ना पड़ता है|जन-सेवा- चतुर्थ स्थान जनता से संबंधित भाव है| इसलिए यदि चतुर्थ भाव, चतुर्थेश एवं चन्द्र के साथ लग्नेश का युति अथवा दृष्टि द्वारा संबंध हो तो मनुष्य जनसेवा व जनहितकारी कार्यों को कर सकता है|*

*चतुर्थ भाव में ग्रहों के प्रभाव-*

*1. चौथे घर में सूर्यः इस घर में सूर्य हो तो जातक का जीवन उदासीपूर्ण और दुखों से भरा होता है। व्यक्ति का पूरा जीवन भ्रमण करते गुजर जाता है। जातक पैतृक संपत्ति का मालिक बनता है। चौथे घर में बैठा सूर्य जातक को दर्शनशास्त्र का ज्ञानी, जादू-टोना की जानकारी या चालबाजी करने वाला बनाता है। इस घर का सूर्य यदि मंगल या शनि से प्रभावित हो रहा हो तो जातक को जीवन में कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।*

*2. चौथे घर में चंद्रमाः जातक के पास स्वयं का निवास स्थान होगा। सगे-संबंधियों से मान-सम्मान मिलेगा। जातक ईगो रखने वाला और झगड़ालू प्रवृति का होगा। यदि चंद्रमा इस घर में पीड़ित हुआ तो जातक को माता से दूर करा देगा। चौथे घर में बैठे चंद्रमा परर यदिद गुरु की दृष्टि नहीं पड़ रही हो तो जातक कामुक प्रवृति में लिप्त रहेगा।*

*3. चौथे घर में मंगलः चौथे घर में मंगल की स्थित जातक के माता या दोस्तों से दूरियां को दर्शाता है। कम उम्र में ही जातक के सिर से मां का साया उठ जाता है। राजनीति के क्षेत्र में जातक को सफलता मिलती है। खुद का घर भी जातक के पास होता है लेकिन घर में खुशियां नहीं रहती हैं।*

*4. चौथे घर में बुधः इस घर में यदि बुध बैठा हो तो जातक का झुकाव शिक्षा अथवा प्रशासनिक विभाग की तरफ अधिक रहेगा। जातक सत्तारूढ़ सरकार का आलोचक होगा साथ ही अपने जीवन में बहुत ख्याति प्राप्त करेगा। जातक के पिता जमीन से जुड़े व्यक्ति होंगे। चौथे घर का बुध जातक को दूर की यात्रा का सुख प्रदान कराता है साथ ही उसे कला, संगीत का भी आनंद प्राप्त होता है।*

*5. चौथे घर में गुरुः जातक की सोच दार्शनिक होगी। चौथे घर का गुरु जातक को बहुत बुद्धिमान बनाता है। इस घर में गुरु होने से जातक को समय-समय पर भगवान का आशीर्वाद हासिल होता है। ये जातक बहुत अधिक धार्मिक, सभी काम पाप-पुण्य सोच कर करने वाला और दुश्मनों से डरने वाला होगा।*

*6. चौथे घर में शुक्रः इस घर में बैठा शुक्र जातक को बहुत भाग्यशाली बनाता है। जातक को जीवन में अनेक वाहनों का सुख प्राप्त होगा। खुद का घर नसीब होगा। जो बेहद साज-सज्जा वाला और साफ-सुथरा होगा। माता के प्रति जातक की बहुत ही अधिक श्रद्धा होगी। इसके जीवन में कई दोस्त बनेंगे।*

*7. चौथे घर में शनिः जातक का प्रारंभिक जीवन बीमारियों से घिरा होगा। माता से दूर जीवन बीतेगा। वात-पित्त की बीमारी से परेशान रहेगा। स्वभाव से सुस्त होगा। जातक को जीवन में खुद के घर का सुख नहीं मिलेगा और वाहन की तरफ से उसे हमेशा परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। रिशतेदार जातक को पसंद नहीं करेंगे। जातक अकेले जीवन जीना अधिक पसंद करेगा।*

*8. चौथे घर में राहुः चौथे घर में राहु के प्रभाव से जातक मंद बुद्धि का स्वामी बनता है। बुरे कामों के कारण बदनामी झेलता है। लोगों को ठगने का जातक काम करता है।*

*9. चौथे घर में केतुः घर और माता के सुख से दूर जातक का जीवन बीतेगा। पैतृक संपत्ति हासिल नहीं होगी। जीवन में कई बार अचानक बदलाव का सामना करना पड़ेगा, साथ ही कई तरह के बुरे अनुभव भी जातक को प्राप्त होंगे।*

Wednesday, December 19, 2018

When will I buy my own house and how that house would be as per Astrology ?

*खुद का घर कब और कैसा होगा-*

*मंगल को भूमि का और चतुर्थ भाव का कारक माना जाता है,इसलिए अपना मकान बनाने के लिए मंगल की स्थिति कुंडली में शुभ तथा बली होनी चाहिए.स्वयं की भूमि अथवा मकान बनाने के लिए चतुर्थ भाव का बली होना आवश्यक होता है,तभी व्यक्ति घर बना पाता है.मंगल का संबंध जब जन्म कुंडली में चतुर्थ भाव से बनता है तब व्यक्ति अपने जीवन में कभी ना कभी खुद की प्रॉपर्टी अवश्य बनाता है.मंगल यदि अकेला चतुर्थ भाव में स्थित हो तब अपनी प्रॉपर्टी होते हुए भी व्यक्ति को उससे कलह ही प्राप्त होते हैं अथवा प्रॉपर्टी को लेकर कोई ना कोई विवाद बना रहता है.मंगल को भूमि तो शनि को निर्माण माना गया है.*
*इसलिए जब भी दशा/अन्तर्दशा में मंगल व शनि का संबंध चतुर्थ/चतुर्थेश से बनता है और कुंडली में मकान बनने के योग मौजूद होते हैं तब व्यक्ति अपना घर बनाता है.चतुर्थ भाव /चतुर्थेश पर शुभ ग्रहों का प्रभाव घर का सुख देता है.चतुर्थ भाव/चतुर्थेश पर पाप व अशुभ ग्रहो का प्रभाव घर के सुख में कमी देता है और व्यक्ति अपना घर नही बना पाता है.चतुर्थ भाव का संबंध एकादश से बनने पर व्यक्ति के एक से अधिक मकान हो सकते हैं.एकादशेश यदि चतुर्थ में स्थित हो तो इस भाव की वृद्धि करता है और एक से अधिक मकान होते हैं.*
*यदिचतुर्थेश,एकादश भाव में स्थित हो तब व्यक्ति की आजीविका का संबंध भूमि से बनता है.कुंडली में यदि चतुर्थ का संबंध अष्टम से बन रहा हो तब संपत्ति मिलने में अड़चने हो सकती हैं.जन्म कुंडली में यदि बृहस्पति का संबंध अष्टम भाव से बन रहा हो तब पैतृक।  संपत्ति मिलने के योग बनते हैं.चतुर्थ,अष्टम व एकादश का संबंध बनने पर व्यक्ति जीवन में अपनी संपत्ति अवश्य बनाता है और हो सकता है कि वह अपने मित्रों के सहयोग से मकान बनाएं.*
*चतुर्थ का संबंध बारहवें से बन रहा हो तब व्यक्ति घर से दूर जाकर अपना मकान बना सकता है या विदेश में अपना घर बना सकता है.जो योग जन्म कुंडली में दिखते हैं वही योग बली अवस्था में नवांश में भी मौजूद होने चाहिए.भूमि से संबंधित सभी योग चतुर्थांश कुंडली में भी मिलने आवश्यक हैं.चतुर्थांश कुंडली का लग्न/लग्नेश,चतुर्थ भाव/चतुर्थेश व मंगल की स्थिति का आंकलन करना चाहिए.यदि यह सब बली हैं तब व्यक्ति मकान बनाने में सफल रहता है.*