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Saturday, December 26, 2020

Good and Bad Yoga of Mars

मंगल का जातक के जीवन पर प्रभाव और उपाय
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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मंगल मेष और व्रश्चिक राशियों का स्वामी है। यह मकर राशि में उच्च और कर्क राशि में नीचस्थ होता है ।

जन्म कुंडली मे मंगल के योग जीवन की दशा बदलने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते है। कुंडली में मंगल की अच्छी दशा बेहद कामयाब बनाती है. वहीं इस ग्रह की बुरी दशा इंसान से सब कुछ छीन भी सकती है. मंगल के बहुत से शुभ और अशुभ योग हैं।

जन्म कुंडली के 1,4,7,8,12 भावों में मंगल की उपस्थिति जातक को मांगलिक घोषित करती है,हालाँकि कई स्थितियां ऐसी होती हैं जिनके कारण जातक का मंगल दोष भंग होता है अथवा आंशिक मांगलिक होता है ।इसका विस्तृत विवरण कुछ समय पश्चात करेंगे।

ऐसा लिखा गया है:

लग्ने व्यये च पाताले यामित्रे चाष्टमे कुज:।
कन्या वै मृतभर्ता स्याद् भर्ता भार्या हनिष्यति।।

1, 12, 4, 7, 8 इन स्थानों में जिसके मंगल हो वह मंगली होता है, जो वर, कन्या मंगली हो और उनका विवाह हो तो शुभ है और जो वर मंगली और कन्या सादी या कन्या मंगली वर सादा हो तो अशुभ है।

यामित्रे च यदा सोरिर्लग्ने वा हिबुकेथवा
नवमे द्वादशे चैव भौम दोषो न विद्मते।।

जिसके 7, 1, 4, 9, 12 इन स्थानों में शनिश्चर हो तो मंगली का दोष उसको नहीं होता।

 (ज्योतिष सर्वसंग्रह)

मांगलिक होने, आंशिक मांगलिक होने, मांगलिक होते हुए भी मांगलिक न होने बारे बहुत अधिक अवधारणाएं बन गयी हैं। 

विभिन्न प्रदेशों में भिन्न भिन्न पैमाने हैं।

मांगलिक कन्या का अमांगलिक वर और मांगलिक वर का अमांगलिक कन्या के साथ विवाह अपने आपमें सम्पूर्ण विषय है।

कुंडली मिलान के समय सप्तम भाव के साथ धन, वाणी, कुटुम्ब भाव, सुख भाव, संतान भाव, भाग्य भाव, लाभ भाव और शयन सुख भाव देखने और दोनों कुंडलियों का इस परिप्रेक्ष्य में मिलान करना और तुलनात्मक अध्ययन अति आवश्यक है।

केवल मात्र कम्पयूटर अथवा मोबाइल में उपलब्ध कुंडली मिलान साफ्टवेयर से काम नहीं चलाना चाहिए।

मंगल पराक्रम, शौर्य, साहस, सेना, सेना पति, शत्रु, रकपात्त, जोखिम,सामर्थ्य, क्रोध, भूमि,लघु भ्राता,ऑपरेशन, पुत्र, सन्तान से सम्बंधित है।

मंगल को सातवीं दृष्टि के साथ साथ चौथी और आठवीं विशेष दृष्टि भी प्राप्त है।

मंगल कुंडली में नीचस्थ हो, अशुभ ग्रहों से द्रष्टय हो, अशुभ भाव में हो तो जातक के जीवन पर अत्यधिक दुष्प्रभाव डालता है।

 यदि मंगल का सम्बन्ध छटे भाव से हो अथवा उपस्थित हो तो बड़े से बड़ा शत्रु भी जातक के सामने टिक नहीं सकता । 

सातवें घर पर मंगल की दृष्टि या उपस्थिति वैवाहिक जीवन को उथल पुथल कर सकती है ।

मंगल शुभ ग्रहों के साथ हो, शुभ भाव में हो, शुभ ग्रहों से द्रष्टय हो तो जातक को जीवन में
असीमित ऊचांई तक ले जाता है ।

ऐसे जातक बड़े बड़े शूरवीर, योद्धा, सेनापति बनते हैं, सर्जन, इंजीनयर, होटल व्यवसायी बनते हैं और अपने व्यवसाय,  लड़ाई के मैदान में एक इतिहास बना जाते हैं। उनका सारा सीना शूरवीरता के कारण मिले तमगों से भरा होता है। 

शौर्यता, शूरवीरता, साहस, सफल उद्यमी का एक ऐसा उदाहरण जिसे वर्तमान और आने वाली पीढ़ियां अपना आदर्श मान लेती हैं। 

एक सम्मानपूर्ण, शौर्य से भरा हुआ जीवन, मान, सम्मान, आदर, प्रतिष्ठा सब कुछ मिलता है।

केवल मंगल को लेकर ही सारी कुंडली की व्याख्या नहीं हो सकती, इसके साथ साथ दूसरे ग्रह, भाव, दृष्टि, शुभ, अशुभ, महादशा, दशा, गोचर सब कुछ देखने के बाद ही कुंडली की व्याख्या हो सकती है।

इसलिए मंगल से परेशान न हों।

मंगल को मंगल रहने दें, अपने जीवन में अपने जीवन साथी के जीवन में अमंगल न बनने दें ।

मंगल के प्रमुख शुभ और अशुभ योग
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मंगल का पहला अशुभ योग 
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👉 किसी कुंडली में मंगल और राहु एक साथ हों तो अंगारक योग बनता है.
👉अक्सर यह योग बड़ी दुर्घटना का कारण बनता है.
👉 इसके चलते लोगों को सर्जरी और रक्त से जुड़ी गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ता है.
👉 अंगारक योग इंसान का स्वभाव बहुत क्रूर और नकारात्मक बना देता है.
👉 इस योग की वजह से परिवार के साथ रिश्ते बिगड़ने लगते हैं.

मंगल का दूसरा अशुभ योग 
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अंगारक योग के बाद मंगल का दूसरा अशुभ योग है मंगल दोष. यह इंसान के व्यक्तित्व और रिश्तों को नाजुक बना देता है.
👉 कुंडली के पहले, चौथे, सातवें, आठवें और बारहवें स्थान में मंगल हो तो मंगलदोष का योग बनता है.
👉 इस योग में जन्म लेने वाले व्यक्ति को मांगलिक कहते हैं.
👉 कुंडली की यह स्थिति विवाह संबंधों के लिए बहुत संवेदनशील मानी जाती है.

मंगल का तीसरा अशुभ योग 
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नीचस्थ मंगल तीसरा सबसे अशुभ योग है. जिनकी कुंडली में यह योग बनता है, उन्हें अजीब परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है.
👉 इस योग में कर्क राशि में मंगल नीच का यानी कमजोर हो जाता है.
👉  जिनकी कुंडली में नीचस्थ मंगल योग होता है, उनमें आत्मविश्वास और साहस की कमी होती है.
👉 यह योग खून की कमी का भी कारण बनता है.
👉 कभी–कभी कर्क राशि का नीचस्थ मंगल इंसान को डॉक्टर या सर्जन भी बना देता है.

मंगल का चौथा अशुभ योग 
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मंगल का एक और अशुभ योग है जो बहुत खतरनाक है. इसे शनि मंगल (अग्नि योग) कहा जाता है. इसके कारण इंसान की जिंदगी में बड़ी और जानलेवा घटनाओं का योग बनता है.
👉  ज्योतिष में शनि को हवा और मंगल को आग माना जाता है.
👉  जिनकी कुंडली में शनि मंगल (अग्नि योग) होता है उन्हें हथियार, हवाई हादसों और बड़ी दुर्घटनाओं से सावधान रहना चाहिए.
👉  हालांकि यह योग कभी–कभी बड़ी कामयाबी भी दिलाता है.

मंगल का पहला शुभ योग 
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मंगल के शुभ योग में भाग्य चमक उठता है. लक्ष्मी योग मंगल का पहला शुभ योग है.
👉  चंद्रमा और मंगल के संयोग से लक्ष्मी योग बनता है.
👉  यह योग इंसान को धनवान बनाता है.
👉  जिनकी कुंडली में लक्ष्मी योग है, उन्हें नियमित दान करना चाहिए।

मंगल का दूसरा शुभ योग 
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👉 मंगल से बनने वाले पंच-महापुरुष योग को रूचक योग कहते हैं.
👉 जब मंगल मजबूत स्थिति के साथ मेष, वृश्चिक या मकर राशि में हो तो रूचक योग बनता है.
👉 यह योग इंसान को राजा, भू-स्वामी, सेनाध्यक्ष और प्रशासक जैसे बड़े पद दिलाता है.
👉  इस योग वाले व्यक्ति को कमजोर और गरीब लोगों की मदद करनी चाहिए ।

मंगल के अशुभ योगों के उपाय
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1👉 मंगल कृत अरिष्ट शांति के लिए किसी भी शुक्ल पक्ष के मंगलवार से शुरू करके लाल वस्त्र पहनकर श्री हनुमान जी की मूर्ती से सामने कुशाशन पर बैठा कर गेरू अथवा लाल चंदन का टीका लगाकर एवं घी की ज्योति जगाकर श्री हनुमानाष्टक अथवा हनुमान चालीसा का प्रतिदिन काम से कम 21 संख्या में पाठ करे।ऐसा नियमित 41 दिन तक करने पर कठिन से कठिन कार्य की सिद्धि होती है।श्री हनुमानाष्टक पाठ के प्रारंभ में श्री हनुमत-स्तवन के सात मंत्रो का भी पाठ करने से विशेष लाभ होता है।पाठ के बाद किशमिश या लड्डू का भोग लगाना शुभ रहेगा।

2👉 हर मंगलवार को स्नान आदि से निवृत होकर लाल वस्त्र एवं लाल चंदन का तिलक धारण कर कुशाशन पर बैठ कर 41 दिन नियमित रूप से 108 बार हनुमान चालीसा का पाठ एवं लड्डू का भोग लगाने से भौमकृत अरिष्ट की शांति होती है।

3👉 जन्म कुंडली में मंगल योग कारक होकर भी शुभ फल ना दे रहा हो तो हर मंगल वार कपिला गाय को मीठी रोटियां खिलाकर नमस्कार करना चाहिए गौ को हरा चारा जल सेवा एवं लाल वस्त्र पहना कर अलंकृत करने से मंगल के अशुभ फल की शांति होती है।

4👉 अपने इष्ट देव को घर में ही 27 मंगलवार सिंदूर का तिलक लगाकर खुद भी प्रसाद स्वरूप तिलक लगाना शुभदायक रहेगा।

5👉 सोमवार की रात्रि को ताँबे के बर्तन में पानी सिराहने रख कर मंगलवार की प्रातः घर में लगाये हुए गुलाब के पौधों को वही जल मंगल का बीज मंत्र पढ़ते हुए डाले।

6👉 किसी भी विशेष यात्रा पर जाने से पहले शहद का सेवन शुभ रहेगा।

7👉 यदि कुंडली में मंगल नीच राशिगत हो या अस्त हो तो शरीर पर सोने या तांबे का गहना या अन्य कोई वस्तु धारण नहीं करना चाहिए।इस स्तिथि में लाल रंग के वस्रों एवं लाल चंदन का भी परहेज करना चाहिए।

8👉 मंगल अशुभ होने की स्तिथि में मंगल सम्बंधित वस्तुओ (ताम्र बर्तन, इलेक्ट्रॉनिक वस्तु, लाल वस्त्र, गुड़ आदि) के उपहार विशेष कर मंगलवार या मंगल के नक्षत्रो में ग्रहण ना करे अपतु इनका दान इन दिनों विशेष लाभदाय रहेगा।

9👉 गेंहू तथा मसूर की दाल के सात-सात दाने लाल पत्थर पर सिंदूर का तिलक लगाकर इनको लाल वस्त्र में लपेटकर मंगलवार को मंगल का बीज मंत्र पढ़ते हुए बहते जल में प्रवाहित करें।

10👉 27 मंगलवार किसी अंध विद्यालय में या किसी अंगहीन व्यक्ति को मीठा भोजन कराना शुभ होगा।

11👉 मंगल की अशुभता में माँस-मछली-शराब आदि तामसिक भोजन का परहेज विशेष जरूरी है।

12👉 बिना नमक का एक समय भोजन या फलाहारी रहते हुए मंगलवार का व्रत रखना कल्याण प्रद रहेगा।

13👉 सोमवार की रात्रि सरहाने ताम्र पात्र में जल रख कर प्रातः बरगद की जड़ में मंगल के बीज मंत्र या ब्राह्मण को वैदिक मन्त्र से जल चढ़ाना शुभ रहेगा।

14👉 कर्ज से छुटकारे एवं संतान सुख के लिए ज्योतिषी से परामर्श कर सवा दस रत्ती का मूंगा धारण करना, भौम गायत्री मंत्र का नियमानुसार जप ,तथा मंगल स्त्रोत्र का पाठ करना कल्याणकारी रहता है।

15👉 ऋण, रोग एवं शत्रु भय से मुक्ति के लिए एवं आयोग्य,धन - संपदा - पुत्र प्राप्ति के लिए मंगल यंत्र धारण तथा मंगल की औषधियों से नियमित स्नान इसके अतिरिक्त मंगल के वैदिक मंत्रों का निर्दिष्ट अनुसार ब्राह्मणों द्वारा जप और दशांश हवन करना शीघ्र कल्याणकारी रहेगा।

16👉 कुंडली में मांगलिक आदि दोष के कारण मंगल अशुभ फल दे रहा हो तो जातक/जातिका को श्री सुंदरकांड का नियमित 108 दिन तक हनुमान जी की चोला -जनेऊ एवं भोग लगाकर पाठ करने से वैवाहिक एवं पारिवारिक सुखों में वृद्धि करता है।इसके अतिरिक्त भौम शांति के लिए मंगल चंडिका स्त्रोत्र का पाठ भी विशेष लाभप्रद माना गया है।

17👉 अनंतमूल की जड़ मंगलवार को अनुराधा नक्षत्र में लाल धागे से दाएं बाजू में बाँधने से भौम कृत अरिष्ट की शांति होती है।
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Tuesday, December 22, 2020

Saturn in 7th House and Astrology

♦️सातवे भाव में स्थित शनि का विवाह पर प्रभाव👇🏼 
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जन्मकुंडली का सातवाँ भाव विवाह और वैवाहिक जीवन का भाव होता है।इस भाव से ही जातक/जातिका के वैवाहिक जीवन के बारे में विचार किया जाता है।ज्योतिष में जातक शब्द पुरुष और जातिका शब्द स्त्री के लिए बोला जाता है।
🔸सातवे भाव में बैठा शनि वैवाहिक जीवन के लिए शुभ नही माना जाता।
🔸सातवे भाव का शनि विवाह होने में बहुत देर कराता है।सातवे भाव में बैठे शनि के कारण जातक/जातिका का विवाह सामान्य आयु से अधिक आयु में होता है।मकर और कुम्भ अपनी राशि के अतिरिक्त अन्य किसी भी राशि में सातवें भाव में शनि के होने से विवाह में देरी होती है।रिश्ते आते ही नही है आते भी है तो शादी की बात नही बन पाती।
🔸सप्तम भाव में शनि दिग्बल प्राप्त करता है जिस कारण इस भाव में यह बलि होता है फिर भी विवाह होने में देर कराता है।
🔸शनि यदि सातवे भाव में अपनी शत्रु राशि या नीचराशि मेष में बैठा हो तब यह विवाह होने में बहुत देर कराता है लगभग 32 से 35 या इससे भी ऊपर आयु निकल जाती है।ऐसी स्थिति में भी विवाह जब ही हो पाता है जब जातक/जातिका का सप्तमेश और जातक का पत्नी कारक शुक्र और जातिका का पति कारक गुरु शुभ और बलि स्थिति में हो।
🔸शनि के सप्तम भाव में अशुभ स्थिति में होने से तथा इसके साथ ही सप्तमेश और विवाह कारक गुरु/शुक्र की स्थिति कमजोर या पाप ग्रहो से दूषित होने पर विवाह होना मुश्किल होता है।
🔸शनि की सातवें भाव में अशुभ स्थिति के कारण विवाह भी नापसंद का होता है।
🔸शनि की सप्तम भाव में अशुभ स्थिति से लड़की को लड़का या तो अपनी आयु से काफी बड़ी आयु का मिलता है या अपनी आयु से छोटी आयु का मिलता है।लड़के की कुंडली में ऐसी स्थिति से लड़की लड़के से आयु में 1 से 3 साल बड़ी या अधिक आयु की भी होती है।
🔸शनि के सातवे भाव में होने पर विवाह होने के बाद भी वैवाहिक जीवन तब ही चल पाता है जब सप्तमेश और कारक ग्रह शुभ और बलवान हो या सप्तम भाव पर गुरु शुभभाव का स्वामी होकर बलि होकर अपनी दृष्टि डालता हो।
🔸सातवे भाव में शनि के साथ राहु केतु या मंगल हो तब विवाह होना असंभव होता है यदि ऐसी स्थिति में सप्तमेश और कारक ग्रहो के बलि या शुभ होने के कारण विवाह हो भी जाए तब विवाह अधिक दिन ठीक प्रकार से नही चलता दाम्पत्य जीवन पूरी तरह से दुःखमय हो जाता है।

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Monday, December 21, 2020

Bhakut Dosh

भारतीय संस्कृति में शादी से पूर्व गुण मिलान करने की परम्परा प्राचीन काल से चली आ रही है तथा ज्योतिष को मानने वाले गुण मिलान को अत्यधिक महत्त्व देते है। सामान्यतः ज्योतिषी कुंडली मिलान (Kundli Milan) के क्रम में यदि भकूट दोष बन रहा है तो शादी नहीं करने के लिए सलाह देते हैं। हालांकि केवल एक दोष के आधार पर कभी भी शादी न करने की सलाह नहीं देनी चाहिए क्योकि ऐसे अनेक दम्पति है जिनके kundali में भकूट दोष है फिर भी सुखमय दाम्पत्य जीवन व्यतीत कर रहे है। अतः विवाह आदि के लिए कुंडली मिलान की प्रक्रिया में केवल गुण मिलान कर लेना ही पर्याप्त नहीं है यदि कोई ज्योतिषी ऐसा करते है तो यह उचित नहीं है ऐसा करने से ही ज्योतिष और ज्योतिषी के प्रति अविश्वास पैदा होता है। अतः विवाह के सम्बन्ध में कोई निर्णय लेने से पहले लड़का और लड़की की कुंडली में ग्रहो की स्थिति, उच्च, नीच, योग इत्यादि पर विचार करके ही शादी करने और न करने का फैसला लेना चाहिए।

भकूट दोष क्या होता है-

अगर पुरुष और स्त्री की कुंडली में चंद्रमा 6-8, 9-5 या 12-2 का संयोजन कर रहा हो, तब भाकूत दोष बनता है। अगर नर का चंद्र राशि मेष है, और महिला का कन्या है, तब 6-8 का भाकूत दोष बनता है, क्योंकि स्त्री का चंद्र राशि नर के चंद्र राशि से छठे और नर का चंद्र राशि स्त्री के चंद्र राशि से आठवें नंबर पर होता है। इसी तरह का भाकूत दोष चंद्र राशि के 9-5 और 12-2 संयोजन के लिए भी माना जाता है। 6-8 का भाकूत दोष शादी जोड़ो के लिए स्वास्थ्य की गंभीर समस्या पैदा कर सकता है, 9-5 का भाकूत दोष संतान की समस्या का कारण होता है, और 12-2 का भाकूत दोष वित्तीय समस्याएं पैदा करता है।

भकूट दोष का दाम्पत्य जीवन पर प्रभाव-

जन्मकुंडली मिलान में तीन प्रकार से भकूट दोष बनता है जिसकी चर्चा ऊपर की गई है। मुहूर्तचिन्तामणि में इसके दाम्पत्य जीवन में आने वाले प्रभाव के सम्बन्ध में कहा गया है।

मृत्युषडष्टके ज्ञेयोऽपत्यहानिर्नवात्मजे।
द्विद्र्वादशे निर्धनत्वं द्वयोरन्यत्र सौख्यकृत्।।

अर्थात षड़-अष्टक 6/8 भकूट दोष होने से वर-वधू में से एक की मृत्यु हो जाती है या आपस में लड़ाई झगड़ा होते रहता है। नवम-पंचम ( 9/5) भकूट दोष होने से संतान की हानि होती है या संतान के जन्म में मुश्किल आती है या फिर संतान होती ही नहीं। द्वादश-दो ( 1२/२) भकूट दोष होने से वर-वधू को निर्धनता का सामना करना पड़ता या दोनों बहुत ही खर्चीले होते है।

भकूट दोष का परिहार-

भकूट मिलान में तीन प्रकार के दोष होते हैं. जैसे षडाष्टक दोष, नव-पंचम दोष और द्वि-द्वार्दश दोष होता है. इन तीनों ही दोषों का परिहार भिन्न – भिन्न प्रकार से हो जाता है.

1. षडाष्टक परिहार-
  • यदि वर-वधु की मेष/वृश्चिक, वृष/तुला, मिथुन/मकर, कर्क/धनु, सिंह/मीन या कन्या/कुंभ राशि है तब यह मित्र षडाष्टक होता है अर्थात इन राशियों के स्वामी ग्रह आपस में मित्र होते हैं. मित्र राशियों का षडाष्टक शुभ माना जाता है।
  • यदि वर-वधु की चंद्र राशि स्वामियों का षडाष्टक शत्रु वैर का है तब इसका परिहार करना चाहिए।
  • मेष/कन्या, वृष/धनु, मिथुन/वृश्चिक, कर्क/कुंभ, सिंह/मकर तथा तुला/मीन राशियों का आपस में शत्रु षडाष्टक होता है इनका पूर्ण रुप से त्याग करना चाहिए।
  • यदि तारा शुद्धि, राशियों की मित्रता हो, एक ही राशि हो या राशि स्वामी ग्रह समान हो तब भी षडाष्टक दोष का परिहार हो जाता है।

नव पंचम का परिहार-
  • नव पंचम दोष का परिहार भी शास्त्रों में दिया गया है. जब वर-वधु की चंद्र राशि एक-दूसरे से 5/9 अक्ष पर स्थित होती है तब नव पंचम दोष माना जाता है. नव पंचम का परिहार निम्न से हो जाता है।
  • यदि वर की राशि से कन्या की राशि पांचवें स्थान पर पड़ रही हो और कन्या की राशि से लड़के की राशि नवम स्थान पार पड़ रही हो तब यह स्थिति नव-पंचम की शुभ मानी गई है।
  • मीन/कर्क, वृश्चिक/कर्क, मिथुन/कुंभ और कन्या/मकर यह चारों नव-पंचम दोषों का त्याग करना चाहिए।
  • यदि वर-वधु की कुंडली के चंद्र राशिश या नवांशपति परस्पर मित्र राशि में हो तब नव-पंचम का परिहार होता है.

द्वि-द्वार्दश योग का परिहार-
  • लड़के की राशि से लड़की की राशि दूसरे स्थान पर हो तो लड़की धन की हानि करने वाली होती है लेकिन 12वें स्थान पर हो तब धन लाभ कराने वाली होती है।
  • द्वि-द्वार्द्श योग में वर-वधु के राशि स्वामी आपस में मित्र हैं तब इस दोष का परिहार हो जाता है।
  • मतान्तर से सिंह और कन्या राशि द्वि-द्वार्दश होने पर भी इस दोष का परिहार हो जाता है.

भकूट दोष का निदान-

  • वर-वधू दोनों की जन्म कुंडलियों में चन्द्रमा मेष-वृश्चिक तथा वृष-तुला राशियों में होने पर षडाष्टक की स्थिति में भी भकूट दोष नहीं माना जाता है क्योकि क्योंकि मेष-वृश्चिक राशियों का स्वामी मंगल हैं तथा वृष-तुला राशियों का स्वामी शुक्र हैं। अतः एक ही राशि होने के कारण दोष समाप्त माना जाता है।
  • इसी प्रकार वर वधु की कुंडली में चन्द्रमा मकर-कुंभ राशियों में होकर भकूट दोष का निर्माण कर रहा है तो एक दूसरे से 12-2 स्थानों पर होने के पश्चात भी भकूट दोष नहीं माना जाता है क्योंकि इन दोनों राशियों के स्वामी शनि हैं।
  • यदि वर-वधू दोनों की जन्म कुंडलियों में चन्द्र राशियों के स्वामी आपस में मित्र हैं तो भी भकूट दोष का प्रभाव कम हो जाता है जैसे कि मीन-मेष तथा मेष-धनु में भकूट दोष होता है परन्तु उसका प्रभाव कम होता है क्योंकि इन दोनों ही राशियों के स्वामी गुरू तथा मंगल हैं जो कि आपस में मित्र हैं।
  • यदि दोनो कुंडलियों में नाड़ी दोष नहीं है तो भी भकूट दोष होने के बाद भी इसका प्रभाव कम हो जाता है।
  • यदि कुंडली मिलान में ग्रहमैत्री, गणदोष तथा नाड़ी दोष नहीं है और भकूट दोष है तो भकूट दोष का प्रभाव कम हो जाता है।

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Friday, December 18, 2020

विवाह पंचमी विशेष

🌼विवाह पंचमी विशेष 🌼

आज 19 दिसंबर को विवाह पंचमी मनाई जाएगी। मार्गशीष मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को विवाह पंचमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान राम और सीता का विवाह हुआ था। इसी वजह से हिंदू धर्म में विवाह पंचमी का खास महत्व है। इस दिन भगवान राम और सीता जी की पूजा अर्चना की जाती है. मान्यता है कि जो लोग भी सच्चे दिल से विवाह पंचमी की पूजा करते हैं उनकी सभी समस्याएं दूर हो जाती है। इसके साथ ही वैवाहिक जीवन सुखी रहता है। वहीं जिनकी शादी में अड़चन आ रही है उन्हें भी सुयोग्य जीवनसाथी की प्राप्ति होती है।

  सीता जन्मभूमि जनकपुरधाम (नेपाल) और अयोध्या में आज भी विवाह पंचमी बहुत धूमधाम से मनाई जाती है। इस दिन भगवान राम और सीता का विवाह कार्यक्रम रखा जाता है और मंदिरों में विशेष पूजा की जाती है।

🙏🏼 *_पूजा विधि_*

*_सबसे पहले सुबह स्नान कर के साफ-सुथरे कपड़े पहन लें. इसके बाद श्री राम विवाह का संकल्प लें। अब भगवान राम और माता सीता की मूर्ति स्थापित करें। इसके बाद भगवान राम को पीले और माता सीता को लाल वस्त्र अर्पित करें। इसके बाद बालकाण्ड में विवाह प्रसंग का पाठ करें। इस दिन बालकाण्ड में भगवान राम और सीता जी के विवाह प्रसंग का पाठ करना शुभ माना जाता है। इस दिन रामचरितमानस का पाठ करने से भी पारिवारिक जीवन सुखमय होता है। भगवान राम और माता सीता की पूजा करने से घरेलू कलह दूर हो जाती है।

विपरीत भाव का आकर्षण (opposite bhave attraction)



विपरीत भाव का आकर्षण

कोई भी चीज हमारे विपरीत हो तो हमे आकर्षित करती है। ओर दोनो विपरीत भाव एक दूसरे के पूरक भी है।

लग्न हम है तो सप्तम हमारा विपरीत यानी opposit सेक्स हमे आकर्षित करेगा। लग्न हम है तो सप्तम हमारा प्रतिद्वंदी, हमे आकर्षित करेगा। लग्न हम है तो सप्तम ग्राहक। ग्राहक को देखते ही हमारी बाहें खिल उठती है।

द्वितीय भाव धन है तो अष्टम भाव अकस्मात धन। द्वितीय विद्या है तो अष्टम गुप्त विद्या। द्वितीय भोजन है तो अष्टम भोजन के निकलने का द्वार।

नवम भाग्य है तो तृतीय पराक्रम। मतलब पराक्रम किये बिना भाग्य कहा से बनेगा। तृतीय काम है तो नवम धर्म। तृतीय भावनाओं के पनपने का स्थान है तो नवम उच्च कोटि की बूद्धि का स्थान।

चतुर्थ सुख है तो दसम कर्म का स्थान। मतलब जबतक कर्म नही करोगे बैठे बिठाए सुख नही मिलेगा।

पंचम बूद्धि है तो एकादश इच्छयापुर्ति या लाभ का स्थान। मतलब बूद्धि लगाए बिना कुछ नही मिलने वाला।

षष्टम प्रतियोगिता है संघर्ष है तो द्वादश मोक्ष। मतलब मोक्ष चाहिए तो उसके लिए बैराग का संघर्ष करो। भक्ति का संघर्ष करो।

शुक्र स्त्री है तो उसको पानी पूरी आकर्षित करती है यानी मंगल। शुक्र स्त्री है तो उसको सिंदूर, बिंदी, लाल साड़ी आदि आकर्षित करती है मतलब मंगल।

बुध बूद्धि है तो उसको गुरु आकर्षित करता है क्योंकि बुध का काम तो ग्रहण करने का है आगे उस ग्रहण की हुई चीज को सोचने का, चिंतन करने का काम तो गुरु का ही तो है।

चन्द्रमा क्रिया शील है तो वो हमेशा चाहता है कि वो एक जगह एकाग्रह हो। स्थतिर हो। और ये स्थतिर कौन है शनी।स्थिरता तो शनी ही तो देता है।

सूर्य आत्मा है तो तो आत्मा को बैराग की ओर कौन लेके जाता है शनी। बैराग शनी ही तो है। 

तो इस तरह विपरीत भाव या ग्रह एक दूसरे के पूरक भी है और एक दूसरे को आकर्षित भी करते है। अट्रैक्शन भी करते है। अब अपनी अपनी कुंडली मे देख लो आपको क्या क्या आकर्षित करता है। कथा यही समाप्त हुई। चढ़ावा चढ़ाओ ओर अपने अपने घर जाओ।

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Tuesday, December 8, 2020

Saturn and Moon Conjunction

*विषयोग शनि+चंद्र युति-*

*विषयोग एक ऐसा क्रूर योग जो अपने नकारात्मक प्रभाव से व्यक्ति की जीवन को बेहद संघर्ष पूर्ण बना देता है,जब पानी रूपी मन का कारक चंद्रमा, + शनि रूपी विष से संयोग करता है, तो व्यक्ति अक्सर ग्रहस्थी औऱ सन्यास के बीच फंस जाता है,मैंने स्वमं के अनुभव में भी इस योग से पीड़ित व्यक्तियों को अक्सर असमंजस में ही फंसे देखा है, शनि के दुष्प्रभाव में आकर मन का कारक चंद्रमा व्यक्ति के जीवन में विचित्र स्थितियां खड़ी कर देता है,आज जानते है विषयोग के बारे में-*

*प्राणियों के पूर्व के जन्मों में किये गए शुभा-शुभ कर्मों का ही प्रतिफल ही विषयोग है। ज्योतिष ग्रंथों के अनुसार किसी भी जातक की जन्मकुंडली में यदि शनि एवं चन्द्र एक साथ बैठे हों तो,  विषयोग निर्मित होता है। विषयोग मानव को उसके पूर्व के जन्मों में नारी के प्रति किये गए क्रूर-कठोर एवं अशोभनीय आचरण की ओर संकेत करता है। इस योग का प्रभाव जातक के जीवन में शत-प्रतिशत घटित होता है इसीलिए इसे ज्योतिषशास्त्र के सर्वाधिक प्रभावशाली योगों में गिना जाता है।*

*विषयोग के दुष्प्रभाव-*

*जो जन्मकाल से आरंभ होकर मृत्यु पर्यंत अपने अशुभ प्रभाव देता रहता है। इस योग के समय जन्म लेने वाला जातक यदि कुत्ते को भी रोटी खिलाए तो देर-सवेर वह कुत्ता भी उसे काट खायेगा। कहने का तात्पर्य यह है कि इस योग वाली कुंडली का जातक अपने ही मित्रों सम्बन्धियों के द्वारा ठगा जाता है। ये जिस किसी भी व्यक्ति की मदद करते हैं उनसे अपयश मिलना तय रहता है।  कुंडली में शनि एवं चन्द्रमा की बलाबल स्थिति के अनुसार कुछ राहत की उम्मीद की जा सकती है। कुंडली में जिस भाव में भी विषयोग बनता है, प्राणी को उस भाव से ही सम्बंधित कष्ट मिलते हैं अथवा उस भाव से सम्बंधित कारकत्व पदार्थों का अभाव रहता है फलितवाचन के समय ऐसा पाया ही गया है। इसका सूक्ष्म विवेचन अष्टक वर्ग के 'द्रेष्काण' में गहनता से किया जाता है जो जातक द्वारा पूर्व के जन्मों में किसी स्त्री को दिये गये कष्ट की ओर संकेत करता है। पुनः वही स्त्री प्रतिशोध लेने के लिए मनुष्य योनि में विषयोग वाले प्राणी की माँ, पत्नी, पुत्री बहन आदि के रूप में आती है।* 

*अशुभ ग्रहों के कारण योग बन रहा है, तो व्यक्ति का जीवन नर्क के समान हो जाता है। ऐसा ही एक अशुभ योग है 'विष योग"। जन्म कुंडली में विष योग का निर्माण शनि और चंद्रमा की युति से होता है। यह योग जातक के लिए बेहद कष्टकारी माना जाता है। नवग्रहों में शनि को सबसे मंद गति के लिए जाना जाता है और चंद्र अपनी तीव्रता के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन शनि अधिक पॉवरफुल होने के कारण चंद्र को दबाता है। इस तरह यदि किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली के किसी स्थान में शनि और चंद्र साथ में आ जाए तो विष योग बन जाता है। इसका दुष्प्रभाव तब अधिक होता है जब आपस में इन ग्रहों की दशा-अंतर्दशा चल रही हो। विष योग के प्रभाव से व्यक्ति जीवनभर अशक्तता में रहता है। मानसिक रोगों, भ्रम, भय, अनेक प्रकार के रोगों और दुखी दांपत्य जीवन से जूझता रहता है। यह योग कुंडली के जिस भाव में होता है उसके अनुसार अशुभ फल व्यक्ति को मिलते हैं।*

*विभिन्न भावों में ‘विष योग’ का फल-*

*प्रथम भाव (लग्न)- इस योग के कारण माता के बीमार रहने या उसकी मृत्यु से किसी अन्य स्त्री (बुआ अथवा मौसी) द्वारा उसका बचपन में पालन-पोषण होता है। उसे सिर और स्नायु में दर्द रहता है। शरीर रोगी तथा चेहरा निस्तेज रहता है। जातक निरूत्साही, वहमी एवं शंकालु प्रवृत्ति का होता है। आर्थिक संपन्नता नहीं होती। नौकरी में पदोन्नति देरी से होती है। विवाह देर से होता है। दांपत्य जीवन सुखी नहीं रहता। इस प्रकार जीवन में कठिनाइयां भरपूर होती हैं।* 

*द्वितीय भाव- घर के मुखिया की बीमारी या मृत्यु के कारण बचपन आर्थिक कठिनाई में व्यतीत होता है। पैतृक संपत्ति मिलने में बाधा आती है। जातक की वाणी में कटुता रहती है। वह कंजूस होता है। धन कमाने के लिए उसे कठिन परिश्रम करना पड़ता है। जीवन के उत्तरार्द्ध में आर्थिक स्थिति ठीक रहती है। दांत, गला एवं कान में बीमारी की संभावना रहती है।*

*तृतीय भाव -जातक की शिक्षा अपूर्ण रहती है। वह नौकरी से धन कमाता है। भाई-बहनों के साथ संबंध में कटुता आती है। नौकर विश्वासघात करते हैं। यात्रा में विघ्न आते हैं। श्वांस के रोग होने की संभावना रहती है।*

*चतुर्थ भाव- माता के सुख में कमी, अथवा माता से विवाद रहता है। जन्म स्थान छोड़ना पड़ता है। मध्यम आयु में आय कुछ ठीक रहती है, परंतु अंतिम समय में फिर से धन की कमी हो जाती है। स्वयं दुखी दरिद्र होकर दीर्घ आयु पाता है। उसके मृत्योपरांत ही उसकी संतान का भाग्योदय होता है। पुरूषों को हृदय रोग तथा महिलाओं को स्तन रोग की संभावना रहती है।* 

*पंचम भाव -शिक्षा प्राप्ति में बाधा आती है। वैवाहिक सुख अल्प रहता है। संतान देरी से होती है, या संतान मंदबुद्धि होती है। स्त्री राशि में कन्यायें अधिक होती हैं। संतान से कोई सुख नहीं मिलता।*

*षष्ठ भाव- जातक को दीर्घकालीन रोग होते हैं। ननिहाल पक्ष से सहायता नहीं मिलती। व्यवसाय में प्रतिद्धंदी हानि करते हैं। घर में चोरी की संभावना रहती है।*

*सप्तम भाव- स्त्री की कुंडली में विष योग होने से पहला विवाह देर से होकर टूटता है, और वह दूसरा विवाह करती है। पुरूष की कुंडली में यह युति विवाह में अधिक विलंब करती है। पत्नी अधिक उम्र की या विधवा होती है। संतान प्राप्ति में बाधा आती है। दांपत्य जीवन में कटुता और विवाद के कारण वैवाहिक सुख नहीं मिलता। साझेदारी के व्यवसाय में घाटा होता है। ससुराल की ओर से कोई सहायता नहीं मिलती।*

*अष्टम भाव -दीर्घकालीन शारीरिक कष्ट और गुप्त रोग होते हैं। टांग में चोट अथवा कष्ट होता है। जीवन में कोई विशेष सफलता नहीं मिलती। उम्र लंबी रहती है। अंत समय कष्टकारी होता है।*

*नवम भाव -भाग्योदय में रूकावट आती है। कार्यों में विलंब से सफलता मिलती है। यात्रा में हानि होती है। ईश्वर में आस्था कम होती है। कमर व पैर में कष्ट रहता है। जीवन अस्थिर रहता है। भाई-बहन से संबंध अच्छे नहीं रहते।*

*दशम भाव -पिता से संबंध अच्छे नहीं रहते। नौकरी में परेशानी तथा व्यवसाय में घाटा होता है। पैतृक संपत्ति मिलने में कठिनाई आती है। आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं रहती। वैवाहिक जीवन भी सुखी नहीं रहता।*

*एकादश भाव - बुरे दोस्तों का साथ रहता है। किसी भी कार्य में लाभ नहीं मिलता। 1 संतान से सुख नहीं मिलता। जातक का अंतिम समय बुरा गुजरता है। बलवान शनि सुखकारक होता है।*

*द्वादश स्थान - जातक निराश रहता है। उसकी बीमारियों के इलाज में अधिक समय लगता है। जातक व्यसनी बनकर धन का नाश करता है। अपने कष्टों के कारण वह कई बार आत्महत्या तक करने की सोचता है।*

*यदि आपके साथ भी कुछ ऐसे ही घटनाएं घटित हो रही है, या विषयोग से पीड़ित है तो समय रहते पूर्ण विश्लेषण करवा कर इस दोष का निवारण जरूर करवाएं।*

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सरकारी जॉब योग

*सरकारी जॉब योग-*

*1.जन्म-कुंडली में दशम स्थान-*

*जन्म-कुंडली में दशम स्थानको (दसवां स्थान) को तथा छठे भाव को जॉब आदि के लिए जाना जाता है। सरकारी नौकरी के योग को देखने के लिए इसी घर का आकलन किया जाता है। दशम स्थान में अगर सूर्य, मंगल या ब्रहस्पति की दृष्टि पड़ रही होती है साथ ही उनका सम्बन्ध छठे भाव से हो तो सरकारी नौकरी का प्रबल योग बन जाता है।*

 *कभी-कभी यह भी देखने में आता है कि जातक की कुंडली में दशम में तो यह ग्रह होते हैं लेकिन फिर भी जातक को संघर्ष करना पड़ रहा होता है तो ऐसे में अगर सूर्य, मंगल या ब्रहस्पति पर किसी पाप ग्रह (अशुभ ग्रह) की दृष्टि पड़ रही होती है तब जातक को सरकारी नौकरी प्राप्ति में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। अतः यह जरूरी है कि आपके यह ग्रह पाप ग्रहों से बचे हुए रहें।*

*2. जन्म कुंडली में जातक का लग्न-*
*जन्म कुंडली में यदि जातक का लग्न मेष, मिथुन, सिंह, वृश्चिक, वृष या तुला है तो ऐसे में शनि ग्रह और गुरु (वृहस्पति) का एक-दूसरे से केंद्र या त्रिकोण में होना, सरकारी नौकरी के लिए अच्छा योग उत्पन्न करते हैं।*

*3. जन्म कुंडली में यदि केंद्र में अगर चन्द्रमा, ब्रहस्पति एक साथ होते हैं तो उस स्थिति में भी सरकारी नौकरी के लिए अच्छे योग बन जाते हैं। साथ ही साथ इसी तरह चन्द्रमा और मंगल भी अगर केन्द्रस्थ हैं तो सरकारी नौकरी की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।*

*4. कुंडली में दसवें घर के बलवान होने से तथा इस घर पर एक या एक से अधिक शुभ ग्रहों का प्रभाव होने से जातक को अपने करियर क्षेत्र में बड़ी सफलताएं मिलतीं हैं तथा इस घर पर एक या एक से अधिक बुरे ग्रहों का प्रभाव होने से कुंडली धारक को आम तौर पर अपने करियर क्षेत्र में अधिक सफलता नहीं मिल पाती है।*

*5. ज्योतिष शास्त्र में सूर्य तथा चंद्र को राजा या प्रशासन से सम्बंध रखने वाले ग्रह के रूप में जाना जाता है। सूर्य या चंद्र का लग्न, धन, चतुर्थ तथा कर्म से सम्बंध या इनके मालिक के साथ सम्बंध सरकारी नौकरी की स्थिति दर्शाता है। सूर्य का प्रभाव चंद्र की अपेक्षा अधिक होता है।*

*6. लग्न पर बैठे किसी ग्रह का प्रभाव व्यक्ति के जीवन में सबसे अधिक प्रभाव रखने वाला माना जाता है। लग्न पर यदि सूर्य या चंद्र स्थित हो तो व्यक्ति शाषण से जुडता है और अत्यधिक नाम कमाने वाला होता है।*

*7. चंद्र का दशम भाव पर दृष्टी या दशमेश के साथ युति सरकारी क्षेत्र में सफलता दर्शाता है। यधपि चंद्र चंचल तथा अस्थिर ग्रह है जिस कारण जातक को नौकरी मिलने में थोडी परेशानी आती है। ऐसे जातक नौकरी मिलने के बाद स्थान परिवर्तन या बदलाव के दौर से बार बार गुजरते है।*

*8. सूर्य धन स्थान पर स्थित हो तथा दशमेश को देखे तो व्यक्ति को सरकारी क्षेत्र में नौकरी मिलने के योग बनते है। ऐसे जातक खुफिया ऐजेंसी या गुप चुप तरीके से कार्य करने वाले होते है।*

*9. सूर्य तथा चंद्र की स्थिति दशमांश कुंडली के लग्न या दशम स्थान पर होने से व्यक्ति राज कार्यो में व्यस्त रहता है ऐसे जातको को बडा औहदा प्राप्त होता है।*

*10. यदि ग्रह अत्यधिक बली हो तब भी वें अपने क्षेत्र से सम्बन्धित सरकारी नौकरी दे सकते है। मंगल सैनिक, या उच्च अधिकारी, बुध बैंक या इंश्योरेंस, गुरु- शिक्षा सम्बंधी, शुक्र फाइनेंश सम्बंधी तो शनि अनेक विभागो में जोडने वाला प्रभाव रखता है।*

*11. सूर्य चंद्र का चतुर्थ प्रभाव जातक को सरकारी क्षेत्र में नौकरी प्रदान करता है। इस स्थान पर बैठे ग्रह सप्तम दृष्टि से कर्म स्थान को देखते है।*

*12. सूर्य यदि दशम भाव में स्थित हो तो व्यक्ति को सरकारी कार्यो से अवश्य लाभ मिलता है। दशम स्थान कार्य का स्थान हैं। इस स्थान पर सूर्य का स्थित होना व्यक्ति को सरकारी क्षेत्रो में अवश्य लेकर जाता है। सूर्य दशम स्थान का कारक होता है जिस कारण इस भाव के फल मिलने के प्रबल संकेत मिलते है।*

*13. यदि किसी जातक की कुंडली में दशम भाव में मकर राशि में मंगल हो या मंगल अपनी राशि में बलवान होकर प्रथम, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम या दशम में स्थित हो तो सरकारी नौकरी का योग बनता है ।*

*14. यदि मंगल स्वराशि का हो या मित्र राशि का हो तथा दशम में स्थित हो या मंगल और दशमेश की युति हो तो सरकारी नौकरी का योग बनता है ।*

*15. चंद्र केंद्र या त्रिकोण में बली हो तो सरकारी नौकरी का योग बनाता है ।*

*16. यदि सूर्य बलवान होकर दशम में स्थित हो या सूर्य की दृष्टि दशम पर हो तो जातक सरकारी नौकरी में जाता है ।*

*17. यदि किसी जातक की कुंडली में लग्न में गुरु या चौथे भाव में गुरु हो या दशमेश ग्यारहवे भाव में स्थित हो तो सरकारी नौकरी का योग बनता है ।*

*18. यदि जातक की कुंडली में दशम भाव पर सूर्य, मंगल या गुरु की दृष्टि पड़े तो यह सरकारी नौकरी का योग बनता है ।*

*19. यदि १० भाव में मंगल हो, या १० भाव पर मंगल की दृष्टी हो,*

*20. यदि मंगल ८ वे भाव के अतिरिक्त कही पर भी उच्च राशी मकर (१०) का होतो।*

*21. मंगल केंद्र १, ४, ७, १०, या त्रिकोण ५, ९ में हो तो.*

*22. यदि लग्न से १० वे भाव में सूर्य (मेष) , या गुरू (४) उच्च राशी का हो तो। अथवा स्व राशी या मित्र राशी के हो।*

*23. लग्नेश (१) भाव के स्वामी की लग्न पर दृष्टी हो।*

*24. लग्नेश (१) +दशमेश (१०) की युति हो।*

*25. दशमेश (१०) केंद्र १, ४, ७, १० या त्रिकोण ५, ९ वे भाव में हो तो। उपरोक्त योग होने पर जातक को सरकारी नौकरी मिलती है। जितने ज्यादा योग होगे , उतना बड़ा पद प्राप्त होगा।*

*26. भाव:कुंडली के पहले, दसवें तथा ग्यारहवें भाव और उनके स्वामी से सरकारी नौकरी के बारे में जान सकते हैं।*

*27.सूर्य. चंद्रमा व बृहस्पति सरकारी नौकरी मै उच्च पदाधिकारी बनाता है।*

*28. भाव :द्वितीय, षष्ठ एवं दशम्‌ भाव को अर्थ-त्रिकोण सूर्य की प्रधानता होने पर सरकारी नौकरी प्राप्त करता है।*

*29. नौकरी के कारक ग्रहों का संबंध सूर्य व चन्द्र से हो तो जातक सरकारी नौकरी पाता है।*

*30. दसवें भावमें शुभ ग्रह होना चाहिए।*

*31. दसवें भाव में सूर्य तथा मंगल एक साथ होना चाहिए।*

*32. पहले, नवें तथा दसवें घर में शुभ ग्रहों को होना चाहिए।*

*33. पंच महापुरूष योग: जीवन में सफलता एवं उसके कार्य क्षेत्र के निर्धारण में महत्वपूर्ण समझे जाते हैं।पंचमहापुरूष योग कुंडली में मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र एवं शनि अपनी स्वराशि अथवा उच्च राशि का होकर केंद्र में स्थित होने पर महापुरुष योग बनता है।*

*34. पाराशरी सिद्धांत के अनुसार, दसवें भाव के स्वामी की नवें भाव के स्वामी के साथ दृष्टि अथवा क्षेत्र और राशि स्थानांतर संबंध उसके लिए विशिष्ट राजयोग का निर्माण करते हैं।*

*कुंडली से जाने नौकरी प्राप्ति का समय नियम:*

*1. लग्न के स्वामी की दशा और अंतर्दशा में*

*2. नवमेश की दशा या अंतर्दशा में*

*3. षष्ठेश की दशा या, अंतर्दशा में*

*4. प्रथम,दूसरा , षष्ठम, नवम और दशम भावों में स्थित ग्रहों की दशा या अंतर्दशा में*

*5. दशमेश की दशा या अंतर्दशा में*

*6. द्वितीयेश और एकादशेश की दशा या अंतर्दशा में*

*7. नौकरी मिलने के समय जिस ग्रह की दशा और अंतर्दशा चल रही है उसका संबंध किसी तरह दशम भाव या दशमेश से ।*

*8. द्वितीयेश और एकादशेश की दशा या अंतर्दशा में भी नौकरी मिल सकती है।*

*9. छठा भाव :छठा भाव नौकरी का एवं सेवा का है। छठे भाव का कारक भाव शनि है।*

*10. दशम भाव या दशमेश का संबंध छठे भाव से हो तो जातक नौकरी करता है।*

*11. राहु और केतु की दशा, या अंतर्दशा में 

*जीवन की कोई भी शुभ या अशुभ घटना राहु और केतु की दशा या अंतर्दशा में हो सकती है।*

*12. गोचर: गुरु गोचर में दशम या दशमेश से केंद्र या त्रिकोण में ।*
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*13. गोचर : नौकरी मिलने के समय शनि और गुरु एक-दूसरे से केंद्र, या त्रिकोण में हों तो नौकरी मिल सकती है।*

*14. गोचर : नौकरी मिलने के समय शनि या गुरु का या दोनों का दशम भाव और दशमेश दोनों से या किसी एक से संबंध होता है।*

*15. कुंडली का पहला, दूसरा, चौथा, सातवा, नौवा, दसवा, ग्यारहवा घर तथा इन घरों के स्वामी अपनी दशा और अंतर्दशा में जातक को कामयाबी प्रदान करते है।*

Sunday, December 6, 2020

*मणियों का रहस्यमय चिकित्सकीय उपयोग*

*मणियों का रहस्यमय चिकित्सकीय उपयोग* 

*मणियों* का प्रयोग प्राचीन काल से ही भारतीय लोग करते आए हैं। भारतीय *राजा महाराजाओं*  और *देवी देवताओं* के *परिधान, आभूषण* और *मुकुट* आदि में *मणियों* को पिरोया जाता था। *मणियों* का प्रयोग *आभूषणों की सुन्दरता*  के लिहाज से तो किया ही जाता था लेकिन इन सबके पीछे एक और *रहस्य*  था वह यह कि *आभूषणों* में *मणियों* को व्यवस्थित ढंग से स्थापित करने का एक *वैज्ञानिक तरीका*  था । आभूषण में *भिन्न-भिन्न मणियों* को शरीर के अंग विशेष के आधार पर स्थापित किया जाता था। कौन सी *मणि* किस अंग विशेष के समीप रहने से उस अंग को *अपने अंदर निहित ऊर्जा* के द्वारा *शक्ति प्रदान करती है और निरोगी बनाती है,* के आधार पर आभूषणों में *मणियों* को स्थापित किया जाता था।

मणियों की *माला* और *मुद्रिका* धारण करते हुए आज भी लोगों को देखा जा सकता है। *इन मणियों के स्पर्श का प्रभाव इतना गहरा होता है कि यह व्यक्ति के अंतर्मन तक को झकझोर देती हैं।* 

*मणि चिकित्सा*  भारत में पुराने समय से प्रचलित है, जिसका प्रयोग आज भी भिन्न-भिन्न रूपों हो रहा है। *आयुर्वेद* के *आचार्यों*  द्वारा *मणियों*  का प्रयोग *भस्म*  और *पिष्टी*  के रूप में आज भी प्रचलित है। 

 *रहस्यमयी मणि चिकित्सा* 

पुराने समय में *घर की माताएं छोटे बच्चों को एक लाल रंग की मणि धागे में पिरोकर गले* में पहना दिया करती थीं। जिसके प्रभाव से बच्चों को *काली खांसी जिसे अंग्रेजी में Hooping cough* कहा जाता है, नहीं होती थी। यह मणि के स्पर्श का ही प्रभाव था। बाद में *आयुर्वेद के आचार्यों के द्वारा इस मणि का प्रयोग भस्म और पिष्टी के रूप में किया जाने लगा।* यह एक उदाहरण मात्र है। ऐसे अनगिनत प्रयोग हमारी भारतीय परंपराओं में प्रचलित है। 

उपरोक्त उदाहरण को प्रस्तुत करने का उद्देश्य केवल इतना है कि मणियां हमारे जीवन में कितनी उपयोगी हैं और उनका प्रयोग कर हम अपने परिवार व समाज को निरोगी जीवन प्रदान कर हेल्दी बना सकते हैं। 

 *मणियों के प्रभाव से मानव शरीर में पाए जाने वाले सातों चक्र यथा मूलाथार, स्वाधिष्ठान, मणिपूरक, अनाहद, विशुद्ध, आज्ञा और सहस्रार को ऊर्जावान बनाया जा सकता है।* यह सत्य है कि जब यह चक्र निर्बल होते हैं या संतुलित अवस्था की सीमा से अधिक सक्रिय हो जाते हैं तो व्यक्ति रुग्ण हो जाता है। इसे एक उदाहरण के द्वारा समझने में आसानी होगी यथा  --- *जब किसी व्यक्ति को रक्तज या पित्तज ( खूनी बवासीर ) हो जाती है तो इससे यह प्रमाणित होता है कि उस व्यक्ति का मूलाथार अत्यंत सक्रिय है। और यदि व्यक्ति को वातज ( वादी ) बवासीर हो जाए तो यह सिद्ध होता है कि उस व्यक्ति का मूलाथार निष्क्रिय है।* इस असंतुलन को मणियों के प्रभाव से संतुलित कर व्यक्ति को स्वस्थ बनाया जा सकता है। इस उदाहरण से स्पष्ट होता है कि मणियों का प्रभाव हमारे जीवन कितना उपयोगी है। 

हमने अपने चिकित्सकीय जीवन में इस बात को काफी गहराई से समझा और उपयोग किया। सबसे *आश्चर्य की बात यह है कि जहां पर कीमती रस-रसायन भी रोगी को निरोगी नही बना सके वहां पर भी इन मणियों के प्रभाव से गंभीर रोगी भी रोगमुक्त होकर स्वस्थ जीवन यापन करने लगे।*

Blood Presure {Hypertension} Reason & Remedies in Astrology

*ज्योतिष शास्त्र अनुसार ब्लड प्रेसर हाइपरटेंशन के कारण और उपाय*
*Blood Presure {Hypertension} Reason & Remedies in Astrology*

        ज्योतिषीय कारण में मैंने मेरे  ज्यादातर जातक clients की कुंडली में पाया है - निम्न रक्तचाप (low blood presure ) की दशा में चन्द्रमा का कमजोर होना या सूर्य शुक्र ग्रह का कमजोर होना डिग्री कम होना नीच नवांश या अति पीड़ित अवस्था में पाया हैं।
       High Blood Presure  (उच्च रक्तचाप) मैंने लगभग कई  कुंडलियों मे (horoscope) में देखा है की मंगल ग्रह का कुमार या युवा अंश का विशेष मजबूत अवस्था में साथ ही वहा पर राहु भी अच्छी डिग्री का और उस राहु के 5 -7- 9 वी दृष्टि  देखी है।
          अमूमन cases के क्लाइंट्स मे मैंने नोट किया है - बिना कारण का स्ट्रेस अनियंत्रित खानपान शराब मांस मदिरा का ज्यादा सेवन और उसके परिणाम 
1 स्टेज में सिर के पिछले भाग में दर्द गर्दन में दर्द साँस की तकलीफ धुंदला दिखाई देना सिर  चकराना थकान अनिंद्रा ।

        ❌❌ कई सारे लोगो की कुंडली में दोष नहीं होते हुए भी मैंने उन रोगो का कारण - गलत राशि रत्न धारण करना पाया है 

     ❌ *clients जातक स्वयं भी कम फीस/ या बिना फीस वाले ज्योतिष (एस्ट्रोलॉजर्स ) के पास ही जाना चाहते है।*
 चाहे उस ढोंगी अज्ञानी पौराणिक ज्योतिष की कंसल्टेंसी से जातक को स्वास्थ्य हानी - व्यापार हानी - सामाजिक हानी आदि भी सम्भव हो सकती है।

 *हम भाग्य के ज्ञाता है।*
          *भाग्य विधाता नही।*

*ज्योतिषिय विषय भाग्य के ज्ञाता है।*
*लेकिन भाग्य विधाता नहीं है।*