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Sunday, December 6, 2020

*मणियों का रहस्यमय चिकित्सकीय उपयोग*

*मणियों का रहस्यमय चिकित्सकीय उपयोग* 

*मणियों* का प्रयोग प्राचीन काल से ही भारतीय लोग करते आए हैं। भारतीय *राजा महाराजाओं*  और *देवी देवताओं* के *परिधान, आभूषण* और *मुकुट* आदि में *मणियों* को पिरोया जाता था। *मणियों* का प्रयोग *आभूषणों की सुन्दरता*  के लिहाज से तो किया ही जाता था लेकिन इन सबके पीछे एक और *रहस्य*  था वह यह कि *आभूषणों* में *मणियों* को व्यवस्थित ढंग से स्थापित करने का एक *वैज्ञानिक तरीका*  था । आभूषण में *भिन्न-भिन्न मणियों* को शरीर के अंग विशेष के आधार पर स्थापित किया जाता था। कौन सी *मणि* किस अंग विशेष के समीप रहने से उस अंग को *अपने अंदर निहित ऊर्जा* के द्वारा *शक्ति प्रदान करती है और निरोगी बनाती है,* के आधार पर आभूषणों में *मणियों* को स्थापित किया जाता था।

मणियों की *माला* और *मुद्रिका* धारण करते हुए आज भी लोगों को देखा जा सकता है। *इन मणियों के स्पर्श का प्रभाव इतना गहरा होता है कि यह व्यक्ति के अंतर्मन तक को झकझोर देती हैं।* 

*मणि चिकित्सा*  भारत में पुराने समय से प्रचलित है, जिसका प्रयोग आज भी भिन्न-भिन्न रूपों हो रहा है। *आयुर्वेद* के *आचार्यों*  द्वारा *मणियों*  का प्रयोग *भस्म*  और *पिष्टी*  के रूप में आज भी प्रचलित है। 

 *रहस्यमयी मणि चिकित्सा* 

पुराने समय में *घर की माताएं छोटे बच्चों को एक लाल रंग की मणि धागे में पिरोकर गले* में पहना दिया करती थीं। जिसके प्रभाव से बच्चों को *काली खांसी जिसे अंग्रेजी में Hooping cough* कहा जाता है, नहीं होती थी। यह मणि के स्पर्श का ही प्रभाव था। बाद में *आयुर्वेद के आचार्यों के द्वारा इस मणि का प्रयोग भस्म और पिष्टी के रूप में किया जाने लगा।* यह एक उदाहरण मात्र है। ऐसे अनगिनत प्रयोग हमारी भारतीय परंपराओं में प्रचलित है। 

उपरोक्त उदाहरण को प्रस्तुत करने का उद्देश्य केवल इतना है कि मणियां हमारे जीवन में कितनी उपयोगी हैं और उनका प्रयोग कर हम अपने परिवार व समाज को निरोगी जीवन प्रदान कर हेल्दी बना सकते हैं। 

 *मणियों के प्रभाव से मानव शरीर में पाए जाने वाले सातों चक्र यथा मूलाथार, स्वाधिष्ठान, मणिपूरक, अनाहद, विशुद्ध, आज्ञा और सहस्रार को ऊर्जावान बनाया जा सकता है।* यह सत्य है कि जब यह चक्र निर्बल होते हैं या संतुलित अवस्था की सीमा से अधिक सक्रिय हो जाते हैं तो व्यक्ति रुग्ण हो जाता है। इसे एक उदाहरण के द्वारा समझने में आसानी होगी यथा  --- *जब किसी व्यक्ति को रक्तज या पित्तज ( खूनी बवासीर ) हो जाती है तो इससे यह प्रमाणित होता है कि उस व्यक्ति का मूलाथार अत्यंत सक्रिय है। और यदि व्यक्ति को वातज ( वादी ) बवासीर हो जाए तो यह सिद्ध होता है कि उस व्यक्ति का मूलाथार निष्क्रिय है।* इस असंतुलन को मणियों के प्रभाव से संतुलित कर व्यक्ति को स्वस्थ बनाया जा सकता है। इस उदाहरण से स्पष्ट होता है कि मणियों का प्रभाव हमारे जीवन कितना उपयोगी है। 

हमने अपने चिकित्सकीय जीवन में इस बात को काफी गहराई से समझा और उपयोग किया। सबसे *आश्चर्य की बात यह है कि जहां पर कीमती रस-रसायन भी रोगी को निरोगी नही बना सके वहां पर भी इन मणियों के प्रभाव से गंभीर रोगी भी रोगमुक्त होकर स्वस्थ जीवन यापन करने लगे।*

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