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Monday, March 21, 2022

Empty House and astrology

कुंडली में कोई भाव खाली हो तो हम क्या समझें ? 


हम यह जानते ही हैं कि हमारी कुंडली हमारे पिछले जन्मके कर्मों का आईना है । हमारे संचित कर्मों के हिसाब से हमारा जन्म होता है और सारे ग्रह भी कर्मोंका ही अच्छा या बुरा फल देते हैं । हर इंसान की कुंडली उसका एटीएम कार्ड है । बैंक में जितना बैलेंस होगा उतना ही एटीएम मशीन से वह निकाल पाएगा । 

आज हम एक नए विषय के ऊपर चर्चा करेंगे । हम सब जानते हैं की कुंडलीमें 12 खाने होते हैं मतलब 12 भाव होते है । हर एक भाव जिंदगी के अलग-अलग पहलु का, सुखों का और दुखों का वितरण करता है । 

लेकिन आपको पता है ही की कुंडली के सारे भावों में ग्रह नहीं होते । कुछ भावमें एक से अधिक ग्रह एक साथ होते हैं तो कुछ भाव एकदम खाली होते हैं । इनमें कोई भी ग्रह नहीं होता । 

इसका मतलब क्या हुआ ? जो भाव खाली है उसका कोई फल नहीं मिलेगा हमको ? और जो भाव में ज्यादा ग्रह है उस भावका उत्तम परिणाम मिलेगा ? 

जी नहीं । ऐसा कुछ भी नहीं है । आज हम उस विषय पर चर्चा करेंगे । 

जो जो भाव खाली हैं और जिन भाव में एक भी ग्रह नहीं बैठा उस भाव का फल इंसान को बिना कुछ पुरुषार्थ किए अपने आप मिल जाता है । उस भावके फल को प्राप्त करने के लिए कोई एनर्जी वेस्ट नहीं करनी पड़ती । यह उसका प्रारब्ध है कि उस भाव का फल उसको अपने आप मिलता रहे । 

जिस भाव में ग्रह बैठे हो उसका मतलब यही है कि उस भाव को ग्रह एनर्जी दे रहे हैं, पावर ट्रांसमिट कर रहे हैं । तो पुरुषार्थ करना ही पड़ेगा । जिस भाव में ग्रह बैठे हैं उस भाव के ऊपर उसका लक्ष्य होगा, गोल होगा, फोकस होगा, इच्छा होगी और पुरुषार्थ होगा । 

जिस भाव में मंगल शनि राहु या केतु जैसे ग्रह बैठे हो उस भावका फल प्राप्त करने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है । बहुत पुरुषार्थ करना पड़ता है । और जिस भाव में अकेला चंद्र बुध शुक्र या गुरु बैठे हैं उस भाव के फल के लिए थोड़ा सा पुरुषार्थ भी परिणाम दे देता है । 

लेकिन जिस भाव का कारक कोई शत्रु ग्रह होता है उस भाव में शुभ ग्रह को भी अपना फल देने में संघर्ष करना पड़ता है । जैसे कि सप्तम भाव शादी का है और उसका कारक शुक्र है । तो अगर अकेला बुध सप्तम भाव में बैठता है तो जल्दी शादी करवा देता है क्योंकि बुध और शुक्र मित्र है ।

लेकिन अगर बलवान गुरु सप्तम स्थान में बैठता है तो जल्दी शादी नहीं होती क्योंकि सप्तम स्थान का कारक शुक्र है जो गुरु का जानी दुश्मन है । उसी तरह 11वे स्थानका कारक गुरु है तो वहां शुक्र फल देने में लाचार बन जाता है । 

12वा स्थान पति पत्नी का पर्सनल बेडरूम है । पर्सनल रिलेशनशिप है । लव रोमांस शारीरिक संबंध 12वे स्थान से देखे जाते हैं । अब वहां मंगल शनि राहु या केतु जैसा पाप ग्रह बैठा हो तो ऐसे सुख प्राप्त करने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है । कभी लेट मैरिज होती हैं या कभी मैरिज होने के बावजूद भी पति या पत्नी से प्यार और रोमांस नहीं मिलता । 

एक उदाहरण कुंडली से इसको समझेंगे । आचार्य रजनीश जी की वृषभ लग्नकी कुंडली में अष्टम स्थान में धनु राशिमे 5 ग्रह बैठे हैं और उच्च का गुरु तीसरे स्थान में बैठा हैं । तीन और आठ का परिवर्तन भी है ।
 
अष्टम स्थान ध्यानका समाधिका और कुंडलिनी का है । रजनीश जी का पूरा लक्ष्य मेडिटेशनका, ईश्वर की खोजका था । नए नए विषयोंको खोजनेका था, संशोधन का था । फिर जो भी प्राप्त हुआ वह संदेश पूरी दुनिया को पहुंचाने का था ।  

संदेश या कम्युनिकेशन का स्थान तीसरा स्थान है । अष्टम स्थानका अधिपति गुरु खुद उच्च का बनकर कम्युनिकेशन के स्थान में बैठा है । तो जो ज्ञान उन्होंने प्राप्त किया वह ज्ञान पूरी दुनियाको दिया । 

मैं एक ऐसे इंसानको जानता हूं जिसका जन्म 4 फरवरी 1962 का है । उसका मिथुन लगन है । 8 ग्रह अष्टम स्थान में बैठे हैं । यह इंसान 60 साल का हो गया है । आज तक ना कोई नौकरी की है ना कोई धंधा । पिताजी का कमाया हुआ धन और संपत्ति एंजॉय कर रहा है ।  

अच्छे माता-पिता मिले, अच्छी बीवी मिली, अच्छे संतान मिले, बेटी की शादी विदेश में हुई । अच्छा मकान है, गाड़ी है । पिताजी ने जो प्रॉपर्टी बनवाई उसके भाड़ेकी इनकम हर महीने आती रहती है । टाइम पास करने के लिए स्टॉक मार्केट में थोड़ा बहुत करता रहता है बस । उसकी कुंडली के 12 भावमें से 10 भाव एकदम खाली है । पुरुषार्थ करने की जरूरत ही नहीं है । अनायास अपने आप सब मिलता गया । 

जिस स्थान में कोई ग्रह बैठा हो उस स्थान के ऊपर हमारी एनर्जी जाती है हमारा फोकस रहता है और हमको पुरुषार्थ करना पड़ता है । 

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